कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका, कोर्ट ने AAP सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए. याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है. उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की.
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए।
याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है।उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है।उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
कैदियों की दाम्पत्य मुलाकात के लिए PIL दायर, हाईकोर्ट ने ‘आप’ सरकार से मांगा जवाब
न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दाम्पत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन तथा जस्टिस ब्रिजेश सेठी की बैंच ने याचिका में उठाए गए मुद्दे को 'बेहद दिलचस्प' बताया और दिल्ली सरकार तथा जेल महानिदेशक को नोटिस भेज कर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दाम्पत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि अदालतों ने इस पर प्रगतिवादी रवैया अपनाया है तथा अनेक देशों ने दाम्पत्य मुलाकात को यह देखते हुए कि यह एक अहम मानवाधिकार है, मंजूरी दी हुई है, लेकिन दिल्ली जेल कानून 2018 इस मुद्दे पर खामोश है। अध्ययन बताते हैं कि दाम्पत्य मुलाकातों से जेल अपराधों में कमी आती है और कैदियों में सुधार होता है।
जेल में दांपत्य जीवन का अधिकार दिया जाना संभव नहीं
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेल में दांपत्य जीवन का अधिकार दिया जाना संभव नहीं - Indias News | DailyHunt
मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की पीठ के समक्ष जेल महानिदेशक ने हलफनामा दाखिल करते यह जानकारी दी है. जेल महानिदेशक ने पीठ को कहा कि कैदी वैवाहिक जिम्मेदारियों का निर्वहन पैरोल या फरलो पर रिहा होने के दौरान कर सकता है.
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं।
जेलों में पति-पत्नी को मुलाकात की अनुमति की मांग, हाईकोर्ट में याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है. दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए दायर की गई याचिका
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए।याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि अदालतों द्वारा इस पर प्रगतिवादी रवैया अपनाया है तथा अनेक देशों ने दांपत्य मुलाकात को यह देखते हुए कि यह एक अहम मानवाधिकार है, मंजूरी दी हुई है लेकिन दिल्ली जेल कानून 2018 इस मुद्दे पर खामोश है
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है. दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं.
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका, अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
मेंटल हेल्थकेयर कानून – जनहित याचिका
मेंटल हेल्थकेयर कानून लागू करने को जनहित याचिका
अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि संसद ने यह कानून 7 अप्रैल 2017 को पारित किया था। केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना 29 मई 2018 को जारी कर दी थी। इतना समय बीतने के बाद भी यह कानून राजधानी में अब तक लागू नहीं किया गया है। इस याचिका में दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस व दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी पक्षकार बनाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि राजधानी में कानून लागू करने, राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी, जिला मेंटल हैल्थ रिव्यू बोर्ड बनाने तथा इसके अन्य प्रावधान लागू करने का निर्देश दिया जाए। याची का कहना है कि मानसिक बीमारियों को लेकर भारतीय समाज की सोच बेहद खराब है। इस कारण इससे पीड़ित लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव झेलना पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून लागू करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर
याचिकाकर्ता वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिए जाने का आग्रह किया कि राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और जिला मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड का गठन करे तथा कानून के प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से लागू करे। याचिका में कहा गया है, ‘‘मानसिक रूप से अस्वस्थ अधिकतर लोग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं या उचित चिकित्सा मिलने पर समाज में रहने योग्य हो जाते हैं। मानसिक बीमारी के साथ जुड़े सामाजिक कलंक के कारण जीवन के हर मोड़ पर उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।’’ इसमें कहा गया है कि मानसिक समस्या तब बढ़ जाती है जब पीड़ित लोगों को न केवल समाज की तरफ से, बल्कि परिवार, दोस्तों और नियोक्तओं की ओर से भी भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।
मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के सम्मान अधिकार-मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 को लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017,जो 29 मई 2018 से लागू हुआ था,के शुरूआती पैराग्राफ में वर्णित किया गया है,''मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं देने वाला अधिनियम और ऐसे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाएं देते समय या इससे जुड़े मामलों में उनके अधिकारों की रक्षा करने,उनके अधिकारों को बढ़ावा देने और उन्हें पूरा करना।''
मानसिक स्वास्थ्य कानून लागू करने संबंधी याचिका पर उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार, पुलिस से जवाब मांगा
याचिका दायर करने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अनुरोध किया है कि दिल्ली सरकार को राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और जिला मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड के गठन का और कानून के प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया जाए।
दिल्ली पुलिसकर्मियों की वर्दी पर लगाए
दिल्ली पुलिसकर्मियों की वर्दी पर लगाए जाएं कैमरे, उप राज्यपाल को लिखा गया पत्र
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से इस बाबत दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल को खत लिखा गया है. उन्होंने पत्र में लिखा, इसी वर्ष मुखर्जी नगर पुलिस स्टेशन के सामने पुलिसकर्मी द्वारा ऑटो ड्राइवर को उसके बेटे सामने बेरहमी से पीटे जाने की घटना के बाद चिंता जाहिर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था. उनकी तरफ से हाईकोर्ट से दरख्वास्त की गई थी कि पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए उनकी वर्दी पर कैमरे लगाने और हिंसक व आकस्मिक स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए उचित उपकरणों की खरीद करने की आवश्यकता है, ताकि कानून का उल्लंघन करने वालों पर काबू पाया जा सके और जीवन की हानि व मुकदमेबाजी को कम किया जा सके
सुझाव / जनता से पुलिस के व्यवहार की निगरानी के लिए पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं-दिल्ली हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा।
दिल्ली हाईकोर्ट का सुझाव- जनता से पुलिस के व्यवहार की निगरानी के लिए पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस से दिशा-निर्देशों की मांग की, जिसमें पुलिस के उचित व्यवहार को सुनिश्चित करने और पारदर्शी अभियोजन के लिए पुलिस को बॉडी वॉर्न कैमरा से लैस करने के सुझाव हैं। गौरतलब है कि हाल ही में मुखर्जी नगर में एक टेम्पो ड्राइवर और उसके बेटे की पिटाई के मामले में पुलिस पर अतिरिक्त बल प्रयोग का आरोप लगा था। इसके मद्देनजर एक याचिका पर सोमवार को कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
मुखर्जी नगर मामला : पुलिस के लिए बॉडी कैमरे का सुझाव
एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दिए गए सुझाव पर विचार करने और उस पर फैसला लेने के लिए कहा। अदालत ने हालांकि यह भी साफ किया कि वह अधिकारियों को कोई निर्देश नहीं दे रही है, वे वकील के सुझावों को मानने या न मानने के लिए फ्री हैं। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने संबंधित याचिका का निपटारा कर दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- पुलिसकर्मियों के कन्धों पर लगाए जाएँ कैमरे, पता चल सके इनका.?
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
दिल्ली में बिगड़ी कानून-व्यवस्था संबंधी याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई आज
मुखर्जीनगर से संबंधित एक याचिका निपटाई
हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर मारपीट मामले में दायर याचिका का निबटारा करते हुए दिल्ली पुलिस को याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में अधिवक्ता अमित साहनी ने पुलिस को अत्यधिक बल प्रयोग न करने का निर्देश देने की मांग की थी।
हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर मारपीट मामले में दायर याचिका का निबटारा करते हुए दिल्ली पुलिस को याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में अधिवक्ता अमित साहनी ने पुलिस को अत्यधिक बल प्रयोग न करने का निर्देश देने की मांग की थी।
पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं-दिल्ली हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
PIL – OTP FOR INTERNATIONAL TRANSACTIONS
दिल्ली हाईकोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों पर लेन-देन के लिए OTP की अनिवार्यता की मांग करने वाली PIL खारिज की
याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों पर लेनदेन के लिए ओटीपी की आवश्यकता को अनिवार्य करने से बड़े पैमाने पर जनता के साथ धोखा करने की घटनाओं को रोका जा सकेगा। उन्होंने कहा था कि भुगतान गेटवे जो भारत में संचालित नहीं हैं, उनके लिए ओटीपी प्रमाणीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है। कार्ड खोने की स्थिति में यह ग्राहक को असुरक्षित बनाता है।
PIL TO CONVENE MEETINGS OF SENTENCE REVIEW BOARD REGULARLY
दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में किया गया दावा, नियमित रूप से नहीं हो रही SRB बैठकें
दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक बोर्ड की बैठकें करने के लिए हाई कोर्ट के निर्देश का अनुपालन कथित तौर पर नहीं करने को लेकर उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई की याचिका में मांग की गई है। अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी बैठकें हर तिमाही होनी चाहिए।
एसआरबी बैठकें नियमित रूप से नहीं हो रही: अदालत में दायर याचिका में दावा
अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी बैठकें हर तिमाही होनी चाहिए।
एसआरबी की बैठकों से जुड़े आदेश की अनदेखी का मांगा जवाब
एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी की मीटिंग हर तीन महीने में होनी चाहिए। उन्होंने याचिका में कहा है कि हाई कोर्ट ने पिछले साल 21 अक्टूबर को एसआरबी को जेल नियमावली के मुताबिक बैठकें करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक अक्टूबर के आदेश के बाद से अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
हर तीन माह में जरूर हो सजा समीक्षा बोर्ड की बैठक: हाईकोर्ट
पेश जनहित याचिका दायर कर अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा था कि एसआरबी के 16 जुलाई 2004 के आदेश व दिल्ली जेल नियम 2018 के अनुसार बोर्ड की बैठक तिमाही में कम से कम एक बार होनी चाहिए लेकिन अक्तूबर 2018 से अक्तूबर 2019 के बीच बोर्ड ने केवल 19 जुलाई 2019 को एक ही बैठक की है।
हर तीन महीने में सजा समीक्षा बोर्ड की बैठक के लिए जनहित याचिका दायर
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ सोमवार को सुनवाई कर सकती है। एसआरबी का गठन आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की सजा की समीक्षा करने और उपयुक्त मामलों में समय से पहले रिहाई के बारे में सिफारिशें करने के लिए किया गया था।याचिका में कहा गया है कि बोर्ड की बैठक नहीं होने से उन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है जो विचार के लिए जरूरी सभी मापदंडों को पूरा करते हैं लेकिन उनके मामलों पर विचार नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने चार अक्टूबर को अधिकारियों को एक ज्ञापन दिया और एसआरबी आदेश और जेल नियमावली को लागू करने का अनुरोध किया। यह सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया है कि बोर्ड की बैठक बिना किसी रूकावट के हर तीन महीने में बुलाई जाए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने अभी तक ज्ञापन का कोई जवाब नहीं दिया है।
JUDGE MOVES COURT FOR SEEKING DIVORCE
महिला जज ने खटखटाया अदालत का दरवाजा
जिला जज एके चावला ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के पूर्व पति से इस संबंध में 5 अक्टूबर तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। इससे पहले गाखर के अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि महिला मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने सीनियर जज पर जो आरोप लगाए हैं, उससे संबंधित जवाब देने के लिए उन्हें समय चाहिए।
दिल्लीः न्यायाधीश दम्पति को मिला तलाक
दिल्ली की एक अदालत ने हरियाणा के एक पूर्व न्यायाधीश को उनकी पत्नी से तलाक को मंजूरी दे दी। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर गाखड़ के तलाकनामे पर सुनवाई की। गाखड़ ने याचिका 2009 में दायर की थी। उस वक्त वह हरियाणा में न्यायाधीश के पद पर थे और उनकी पत्नी गोमती दिल्ली की तीस हजारी अदालत में न्यायाधीश थीं।
न्यायाधीश दम्पति को मिला तलाक
अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर गाखड़ के तलाकनामे पर सुनवाई की। गाखड़ ने याचिका 2009 में दायर की थी। उस वक्त वह हरियाणा में न्यायाधीश के पद पर थे और उनकी पत्नी गोमती दिल्ली की तीस हजारी अदालत में न्यायाधीश थीं।
गाखड़ के वकील साहनी ने याचिका में कहा है कि न्यायाधीश दम्पति ने पांच जनवरी, 2009 को दिल्ली में सोच-समझकर शादी की थी। वर्ष 2006 में दोनों ने हरियाणा लोक सेवा (विधिक) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दोनों की पहली बार चण्डीगढ़ स्थित न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान मुलाकात हुई थी।
गाखड़ ने कहा कि उसी दौरान दोनों की सगाई हो गई। लेकिन मोनाचा के गुस्सैल स्वभाव के कारण दोनों के बीच सगाई टूट गई। इसके बाद मोनाचा ने अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने का वादा किया और दोनों ने जनवरी 2009 में शादी कर ली।
गाखड़ के वकील साहनी ने याचिका में कहा है कि न्यायाधीश दम्पति ने पांच जनवरी, 2009 को दिल्ली में सोच-समझकर शादी की थी। वर्ष 2006 में दोनों ने हरियाणा लोक सेवा (विधिक) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दोनों की पहली बार चण्डीगढ़ स्थित न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान मुलाकात हुई थी।
गाखड़ ने कहा कि उसी दौरान दोनों की सगाई हो गई। लेकिन मोनाचा के गुस्सैल स्वभाव के कारण दोनों के बीच सगाई टूट गई। इसके बाद मोनाचा ने अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने का वादा किया और दोनों ने जनवरी 2009 में शादी कर ली।
नौकरी जाने का कारण बनने वाली पत्नी से तलाक उचित
उल्लेखनीय है कि हरियाणा के एक पूर्व सिविल जज ने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दिल्ली में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यरत अपनी पत्नी से तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। याचिका में व्यक्ति का कहना था कि उसने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। विवाह के बाद उसकी पत्नी ने हरियाणा में अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी हासिल कर ली और खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी। इतना ही नहीं, उसकी पत्नी ने इंटरनेट पर अपना प्रोफाइल बनाते हुए उसे विवाह के लिए रिश्ते खोजने वाली एक वेबसाइट पर भी डाल दिया। यही नहीं, महिला जज ने अपने पति के खिलाफ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में शिकायत की। जिसके कारण महिला जज के पति को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। शिकायतकर्ता का आरोप है महिला जज अक्सर उसे फोन पर धमकाती है और उसके घर पर जाकर झगड़ा करती है। जिससे उसकी जिंदगी नर्क बन गई है। लिहाजा, उसे तलाक दिया जाए। अदालत ने पत्नी के पति की नौकरी जाने का कारण बनने को तलाक का ठोस आधार मानते हुए पूर्व जज को उसकी पत्नी से तलाक प्रदान किया।
नौकरी जाने का कारण बनने वाली पत्नी से तलाक
हरियाणा के एक पूर्व सिविल जज ने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दिल्ली में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यरत अपनी पत्नी से तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की थी।
याचिका में पूर्व सिविल जज ने कहा था कि उन्होंने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। बाद में उनकी पत्नी ने हरियाणा में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली। खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी।
याचिका में पूर्व सिविल जज ने कहा था कि उन्होंने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। बाद में उनकी पत्नी ने हरियाणा में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली। खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी।
धोखाधड़ी के मामले की दोबारा जांच के आदेश
धोखाधड़ी के मामले की दोबारा जांच के आदेश
इस मामले में याचिकाकर्ता सुनीता की ओर एडवोकेट अमित साहनी ने अदालत में पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने मुख्य आरोपी राकेश राणा के खिलाफ सबूत नहीं जुटाए हैं। राकेश राणा ने कृष्णा नगर स्थित एक मकान पर जीआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड से साढ़े छह लाख रुपए का लोन लिया था। लेकिन उसने इस बात को छुपा लिया और उक्त मकान को प्रवीण गुप्ता से बेच दिया। बाद में प्रवीण गुप्ता ने इस मकान को आरोपी रीना देवी को बेच दिया। रीना से यह मकान सुनीता ने लिया तब उसे पता चला कि इस मकान पर लोन है।
अदालत ने कानून की खामी को दूर करने की मांग संबंधी याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने सामाजिक कायकर्ता एवं वकील अमित साहनी की इस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा विधि एवं न्याय मंत्रालय से जवाब मांगा। अदालत इस मामले पर अगली सुनवाई 16 जुलाई को करेगी। याचिका में कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची एक भादसं की धाराओं 326 (खतरनाक हथियार या साधन से जानबूझकर गंभीर जख्म पहुंचाना), 327 (धन ऐंठने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना या अवैध कृत्य के लिए बाध्य करना), 363ए (भिक्षावृति के लिए नाबालिग का अपहरण एवं उसे अपंग बनाना) 377 (अप्राकृतिक यौनाचार), 386 (व्यक्ति को मौत का डर दिखाना पैसा ऐंठना) 392(डकैती), 409 (जनसेवक द्वारा विश्वासघात) की मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई का प्रावधान करती है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की दृष्टि से अमान्य है। इन अपराधों के लिए दस साल के कारावास से लेकर उम्रकैद तक की सजा के प्रावधान है। याचिका में उच्च न्यायालय से दरख्वास्त किया गया है कि वह संबंधित अधिकारियों को इस पर विचार करने तथा उनकी सुनवाई ‘प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत’ के बजाय ‘सत्र अदालत’ द्वारा किये जाने की व्यवस्था कर प्रक्रियागत कानून में अंतर्निहित खामी को दूर करने के लिए कहे।