ओपी चौटाला की रिहाई पर अदालत ने सुरक्षित रखा फैसला
शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल जेल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि वे जेल में 7 साल गुजार चुके हैं, ऐसे में केंद्र की विशेष छूट नीति के तहत वे जल्द रिहाई के हकदार हैं। वकील अमित साहनी के जरिए दाखिल याचिका में विशेष छूट के संबंध में केंद्र सरकार की 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना का हवाला दिया गया है।
चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करे दिल्ली सरकार : उच्च न्यायालय
ए.के. चावला ने सरकार से कहा कि एक सप्ताह के भीतर हरियाणा के पूर्व हरियाणा ओ.पी. चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करने के तत्काल बाद अपने निर्णय से अदालत को अवगत कराएं। चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि दिल्ली जेल नियम की पैरोल और फर्लो गाइडलाइन के अनुसार, कोई भी दोषी साल में दो बार आठ सप्ताहों के पैरोल का हकदार है और चूंकि चौटाला ने एक साल से अधिक समय से पैरोल नहीं लिया है, लिहाजा वह पैरोल पर रिहा किए जाने के हकदार हैं।
ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित चौटाला के वकील की दलील उम्र, विकलांगता और नियम हमारे पक्ष में, इसलिए करें रिहाई
जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचर्स (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे 83 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायाधीश मनमोहन और संगीता सहगल की खंडपीठ में मंगलवार को मामले की सुनवाई हुई, जिसमें चौटाला के वकील अमित साहनी ने दलील रखी कि उन्हें नियमों के तहत छूट मिले, उनकी बढ़ती उम्र और विकलांगता को भी ध्यान में रखा जाए।
पूर्व सीएम OP चौटाला की रिहाई पर दिल्ली HC ने दिल्ली सरकार को दिए दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश – Janta TV | DailyHunt
जेबीटी भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश दिए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा था, वह सुना दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा, चौटाला की रिहाई याचिका पर विचार करे दिल्ली सरकार
February 20, 2019 नई दिल्ली (उत्तम हिन्दू न्यूज): दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली सरकार को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओ.पी. चौटाला को 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों को विशेष छूट देने के प्रावधान के तहत यहां की तिहाड़ जेल से रिहा करने की याचिका पर विचार करने को कहा। चौटाला की तरफ से पेश वकील एन. हरिहरण और अमित साहनी ने अदालत को बताया कि केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों, 55 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं और ट्रांसजेंडरों को विशेष छूट का लाभ देने के लिए कहा है और अगर इनलोगों ने अपनी सजा की आधी अवधि पार कर ली है तो उन्हें रिहा करने के लिए कहा है।
हरियाणा के पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर सुनवाई पूरी, दिल्ली HC ने फैसला सुरक्षित रखा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश संगीता सहगल की खंडपीठ में मंगलवार को मामले की सुनवाई हुई. ओपी चौटाला के वकील अमित सहनी ने बताया कि इस सप्ताह किसी भी दिन अदालत अपना फैसला सुना सकती है.
सजायाफ्ता चौटाला ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट से लगाई गुहार
शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में 10 साल की जेल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा है कि शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट का रुख कर आम आदमी पार्टी सरकार के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें उन्हें 3 सप्ताह के फरलो के दौरान किसी राजनीतिक गतिविधि से रोक दिया गया।
पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई मामले में सुनवाई पूरी, दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई मामले में आज दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई। दिल्ली हाईकोर्ट ने तमाम पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया है। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।इस दौरान दिल्ली सरकार ने भी हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा।
जेबीटी घोटाला : जानें क्यों दिल्ली सरकार ने किया चौटाला की पैरोल याचिका का विरोध
दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की पैरोल याचिका का विरोध किया। इनेलो नेता ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने नवंबर 2018 में जेल अधिकारियों के साथ पैरोल के लिए आवेदन किया था। आवेदन में, उन्होंने दावा किया कि परिवार के मुखिया होने के नाते उन्हें अपने दो बेटों के बीच विवाद का निपटारा करना है।
हरियाणा के पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका में ओपी चौटाला ने केंद्र सरकार के 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना के हवाले से दलील दी थी। अधिसूचना के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके पुरुष, 70 फीसदी वाले दिव्यांग व बच्चे अगर अपनी आधी सजा काट चुके हैं तो राज्य सरकार उसकी रिहाई पर विचार कर सकती है।
बीमार पत्नी की देखभाल के लिए ओपी चौटाला को मिली पैरोल
शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में 10 साल की सजा काट रहे इनेलो के अध्यक्ष और हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला को 2 हफ्ते की पैरोल मिल गई है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला की ओर से पेश अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने ओपी चौटाला को उनकी पत्नी की मेडिकल रिपोर्ट व संबंधित दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए थे, जिसपर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने ओमप्रकाश चौटाला को राहत दे दी है.
JBT भर्ती घोटाला: INLD अध्यक्ष ओपी चौटाला को राहत, दिल्ली HC ने दी दो हफ्ते की पैरोल – Live India | DailyHunt
जानकारी के मुताबिक 10 साल की सजा काट रहे इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष और हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला को 2 हफ्ते की पैरोल मिली है। गौरतलब है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला की ओर से पेश अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि उनके मुवक्किल की पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और हरियाणा के सिरसा स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
बीमार पत्नी की देखभाल के लिए चौटाला को दो सप्ताह की पैरोल मंजूर
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में दस साल के कारावास की सजा काट रहे इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला को बीमार पत्नी की देखभाल के लिए दो सप्ताह की पैरोल मंजूर की। अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये दायर याचिका में 82 साल के नेता ने कहा था कि उनकी पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला को मिला 3 हफ्ते का पैरोल
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य के आधार पर तीन हफ्ते के पौरोल को मंज़ूरी दे दी है। चौटाला के अधिवक्ता अमित साहनी ने अदालत को बताया था कि उनके मुवक्किल का मेदांता अस्पताल में इलाज चल रहा है। उनकी उम्र और गंभीर हालत को देखते हुए मेदांता में ही इलाज के लिए पैरोल दी जाए।
ओपी चौटाला की याचिका पर मांगा दिल्ली सरकार से जवाब
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला की पैरोल संबंधी याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और सिरसा के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती हैं। 82 वर्षीय नेता बीमारी के समय पत्नी के साथ रहना चाहते हैं।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और सिरसा के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती हैं। 82 वर्षीय नेता बीमारी के समय पत्नी के साथ रहना चाहते हैं।
शिक्षक भर्ती घोटाला: ओम प्रकाश चौटाला ने मांगा 60 दिनों का पैरोल
शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की कैद की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला इलाज कराने के वास्ते 60 दिनों के पैरोल की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दिया। चौटाला की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
अजय चौटाला को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत
इंडियन नैशनल लोकदल (इनैलो) के नेता अजय सिंह चौटाला को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है।
अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला का स्वास्थ्य अभी भी खराब है।
अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला का स्वास्थ्य अभी भी खराब है।
टीचर भर्ती घोटाला: चौटाला की जमानत बढ़ी – Navbharat Times
दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके विधायक बेटे अजय चौटाला की अंतरिम जमानत की अवधि 1 अगस्त तक के लिए बढ़ा दी।
चौटाला की तरफ से सीनियर ऐडवोकेट एन. हरिहरन और ऐडवोकेट अमित साहनी अदालत में पेश हुए थे। हाईकोर्ट ने जूनियर बेसिक टीचर्स भर्ती घोटाला मामले में चौटाला सहित 55 दोषियों की अपील पर 11 जुलाई 2014 को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला बाद में सुनाने की बात कही थी।
चौटाला की तरफ से सीनियर ऐडवोकेट एन. हरिहरन और ऐडवोकेट अमित साहनी अदालत में पेश हुए थे। हाईकोर्ट ने जूनियर बेसिक टीचर्स भर्ती घोटाला मामले में चौटाला सहित 55 दोषियों की अपील पर 11 जुलाई 2014 को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला बाद में सुनाने की बात कही थी।
जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाला: चौटाला और उनके बेटे की जमानत 1 अगस्त तक बढ़ी
चौटाला पिता-पुत्र की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी अदालत में पेश हुए।
20 दिन मे आत्मसमर्पण करें चौटाला
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले में आरोपी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला द्वारा खराब सेहत के बावजूद जींद रैली को संबोधित करने के मामले को लेकर सीबीआइ ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष आपत्ति जाहिर की।
खंडपीठ ने इस संबंध में ओपी चौटाला की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि इस मामले में मेडिकल बोर्ड गठित न किया जाए। चौटाला का स्वास्थ्य अभी भी खराब है, हालांकि वे पहले से कुछ स्वस्थ हैं। कुछ दिनों में वे बिलकुल ठीक हो जाएंगे। इसके लिए उन्हें 20 दिन की मोहलत दी जाए। इस अवधि के बाद वे खुद ही जेल के समक्ष आत्मसमर्पण कर देंगे।
खंडपीठ ने इस संबंध में ओपी चौटाला की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि इस मामले में मेडिकल बोर्ड गठित न किया जाए। चौटाला का स्वास्थ्य अभी भी खराब है, हालांकि वे पहले से कुछ स्वस्थ हैं। कुछ दिनों में वे बिलकुल ठीक हो जाएंगे। इसके लिए उन्हें 20 दिन की मोहलत दी जाए। इस अवधि के बाद वे खुद ही जेल के समक्ष आत्मसमर्पण कर देंगे।
चौटाला की जमानत अवधि में हुई बढ़ोतरी
शिक्षक भर्ती घोटाले में आरोपी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की अंतरिम जमानत की अवधि दिल्ली हाई कोर्ट ने बढ़ा दी है
चौटाला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन और अधिवक्ता अमित साहनी ने अदालत को बताया कि चौटाला को अभी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो पाया है और अस्पताल में उपचार चल रहा है। ऐसे में उनकी अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ा दी जाए।
चौटाला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन और अधिवक्ता अमित साहनी ने अदालत को बताया कि चौटाला को अभी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो पाया है और अस्पताल में उपचार चल रहा है। ऐसे में उनकी अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ा दी जाए।
हाई कोर्ट ने बढ़ाई चौटाला की जमानत – Navbharat Times
दिल्ली हाई कोर्ट ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके विधायक बेटे अजय चौटाला की अंतरिम जमानत की अवधि शुक्रवार को एक अगस्त तक बढ़ा दी। चौटाला पिता-पुत्र की तरफ से अधिवक्ता वकील अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
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हरियाणा के शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला 4 हफ्ते की पैरोल पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा।
चौटाला पिता-पुत्र की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
चौटाला पिता-पुत्र की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
अभी कुछ और दिन जेल से बाहर रहेंगे पूर्व सीएम
एक घोटाला मामले में सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम की अंतरिम जमानत अवधि बढ़ा दी गई है।
चौटाला के अधिवक्ता अमित साहनी ने अदालत को बताया कि उनका मुवक्किल वर्तमान में चिकित्सा कारणों से मेदांता अस्पताल की आईसीयू में भर्ती है।
मुवक्किल के भाई की अंतिम संस्कार संबंधी कई रस्में रह गई हैं और यदि डॉक्टरों ने इजाजत दे दी तो चौटाला अपने भाई के घर जाना चाहते हैं। इसलिए उनकी अंतरिम जमानत अवधि चार सप्ताह के लिए बढ़ाई जाए।
चौटाला के अधिवक्ता अमित साहनी ने अदालत को बताया कि उनका मुवक्किल वर्तमान में चिकित्सा कारणों से मेदांता अस्पताल की आईसीयू में भर्ती है।
मुवक्किल के भाई की अंतिम संस्कार संबंधी कई रस्में रह गई हैं और यदि डॉक्टरों ने इजाजत दे दी तो चौटाला अपने भाई के घर जाना चाहते हैं। इसलिए उनकी अंतरिम जमानत अवधि चार सप्ताह के लिए बढ़ाई जाए।
शिक्षक भर्ती घोटाला: चौटाला को झटका, हाईकोर्ट ने रखी सजा बरकरार
साल 1999-2000 के हरियाणा में हुए जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले में दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। चौटाला के वकील अमित साहनी ने कहा, ‘कोर्ट ने ओपी चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला की सजा को बरकरार रखा है। वे हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।’
इनेलो नेता अजय चौटाला की पैरोल अर्जी : दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा आप सरकार से जवाब
इनेलो नेता अजय चौटाला की पैरोल अर्जी : दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा आप सरकार से जवाब
अजय चौटाला ने अपने वकील अमित साहनी के जरिए दाखिल अपनी अर्जी में दलील दी है कि दिल्ली सरकार ने अवैध तरीके से उनका पैरोल आवेदन खारिज कर दिया।
अजय चौटाला ने अपने वकील अमित साहनी के जरिए दाखिल अपनी अर्जी में दलील दी है कि दिल्ली सरकार ने अवैध तरीके से उनका पैरोल आवेदन खारिज कर दिया।
जेबीटी शिक्षक घोटाला: सजायाफ्ता अजय चौटाला की पैरोल याचिका HC से खारिज
दिल्ली हाईकोर्ट ने आज इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अजय सिंह चौटाला की पैरोल संबंधी याचिका खारिज कर दी। इससे पहले आठ फरवरी को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पैरोल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। चौटाला की तरफ से वकील अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
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हरियाणा के शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला 4 हफ्ते की पैरोल पर
चौटाला पिता-पुत्र की तरफ से वकील अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
चौटाला पिता-पुत्र की तरफ से वकील अमित साहनी अदालत में मौजूद हुए।
ओमप्रकाश चौटाला की पैरोल अर्जी पर HC ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा
न्यायमूर्ति ए के चावला ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह 82 साल के चौटाला की अर्जी पर 30 दिसंबर के पहले स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे । चौटाला की तरफ से पेश हुए वकील अमित साहनी ने दिल्ली सरकार के 14 दिसंबर के फैसले को भी दरकिनार करने की मांग की, जिसके जरिए मेडिकल आधार पर मांगे गए छह महीने के उनके पैरोल की अर्जी खारिज कर दी गई थी ।
चौटाला पिता-पुत्र की पेरोल याचिका पर आज सुनवाई, दिल्ली सरकार देगी जवाब
चौटाला पिता-पुत्र की पेरोल याचिका पर आज सुनवाई, दिल्ली सरकार देगी जवाब
चौटाला पिता-पुत्र के वकील अमित साहनी ने कहा कि दोनों को अपने परिवार में एक शादी में शामिल होना है जो फरवरी के महीने में हो रही है और इसमें धार्मिक रस्मों के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक है।
चौटाला पिता-पुत्र के वकील अमित साहनी ने कहा कि दोनों को अपने परिवार में एक शादी में शामिल होना है जो फरवरी के महीने में हो रही है और इसमें धार्मिक रस्मों के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक है।
चौटाला पिता-पुत्र की पेरोल अर्जी पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा के शिक्षक भर्ती घोटाला कांड में साल की सजा भुगत रहे पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला की इलाज के लिए पेरोल अर्जी पर दिल्ली सरकार से दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। चौटाला पिता पुत्र के वकील अमित साहनी ने कहा कि दोनों को अपने परिवार में एक शादी में शामिल होना है जो फरवरी के महीने में हो रही है।
दिल्ली HC ने ओपी चौटाला की याचिका पर मांगा दिल्ली सरकार से जवाब
चौटाला ने बीमार पत्नी की देखभाल करने के लिए 2 माह की पैरोल मांगी है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और सिरसा के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती हैं।
अजय चौटाला की पैरोल पर दिल्ली सरकार ने नहीं दायर की रिपोर्ट
जे.बी.टी. शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा पाए अजय चौटाला की तरफ से दायर की गई पैरोल याचिका पर दिल्ली सरकार ने न्यायालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट दायर नहीं की। चौटाला के वकील अमित साहनी ने कहा कि परिवार में एक शादी में शामिल होना है जो फरवरी के महीने में हो रही है और इसमें धार्मिक रस्मों के लिये उनकी उपस्थिति आवश्यक है।
पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने को चौटाला को 3 हफ्ते की पैरोल
चौटाला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित साहनी दिल्ली हाईकोर्ट में पैरोल की गुहार लगाई।साहनी ने याचिका तत्काल सुनने का अनुरोध किया। साथ ही कोर्ट को बताया कि परिवार व सामाजिक ताने बाने से जुड़ने के लिए चौटाला को पैरोल चाहिए।
अजय चौटाला की पैरोल याचिका पर दिल्ली सरकार को आपत्ति
जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले में दस साल कैद की सजा पाए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता अजय चौटाला की पैरोल याचिका पर दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में आपत्ति जताई है। चौटाला की ओर से वकील अमित साहनी ने तर्क रखा कि उनके मुवक्किल की तबीयत ठीक नहीं है और उन्हे पैरोल प्रदान करना जरूरी है ताकि वह अपना ठीक ढंग से इलाज करवा सके।
जेबीटी घोटाला: अदालत ने चौटाला को तीन सप्ताह के पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि उन्हें इससे पहले इस साल की शुरुआत मे पैरोल मिली थी और छह महीने से अधिक होने के कारण वह पैरोल पाने के हकदार हैं।
पत्नी बीमार, देखभाल के लिए ओपी चौटाला को मिली दो हफ्ते की पैरोल
शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में 10 साल की सजा काट रहे ओपी चौटाला को 2 हफ्ते की पैरोल मिल गई है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और सिरसा के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती हैं।
हाईकोर्ट ने पीजी एग्जाम में शामिल होने के लिए अजय चौटाला को पैरोल दी
दिल्ली हाई कोर्ट ने जेल में बंद इनेलो नेता अजय चौटाला को पीजी डिप्लोमा की परीक्षा में शामिल होने के लिए जस्टिस आशुतोष कुमार ने की तारीख पर उपस्थित होने के लिए चौटाला के आवेदन को मंजूरी दी. अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। आवेदन में उन्होंने 28 जून से 12 जुलाई तक चलने वाली पीजी डिप्लोमा की परीक्षा में शामिल होने के लिए पैरोल मांगा था।
चौटाला को बीमार पत्नी की देखभाल के लिए मिला दो सप्ताह का पैरोल
शिक्षक भर्ती घोटाले में दस साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी स्नेहलता गंभीर रूप से बीमार हैं और सिरसा के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती हैं।
कोर्ट ने चौटाला की याचिका पर दिल्ली सरकार से जवाब मांगा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला की याचिका पर सोमवार को आप सरकार से जवाब मांगा। चौटाला ने अपनी बीमार पत्नी की देखभाल करने के लिए 2 माह का पैरोल मांगा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की 78 वर्षीय पत्नी अस्पताल के सघन निगरानी कक्ष आईसीयू में हैं। 82 वर्षीय नेता ने चिकित्सीय आधार पर भी उन्हें पैरोल देने का अनुरोध किया है।
पीजी परीक्षा में शामिल होने के लिए अजय चौटाला को पैरोल
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल में बंद इनेलो नेता अजय चौटाला को पीजी डिप्लोमा की परीक्षा में शामिल होने के लिए आज उन्हें पैरोल की मंजूरी दे दी। यह परीक्षा 12 जुलाई तक चलनी है। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
इनेलो नेता अजय चौटाला को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली पैरोल
अजय चौटाला शनिवार को सिरसा में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा परीक्षा में शामिल होने के लिए आज उन्हें पैरोल की मंजूरी दे दी। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने स्नातकोत्तर परीक्षा के लिए अजय चौटाला को पैरोल पर किया रिहा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल में बंद इनेलो नेता अजय सिंह चौटाला को पैरोल पर रिहा कर दिया जिससे कि वह हरियाणा के सिरसा में होने वाली अपनी स्नातकोत्तर डिप्लोमा परीक्षा में शामिल हो सकें।अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिए दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश
जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश दिए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा था, वह सुना दिया है।
ओम प्रकाश चौटाला की पत्नी हैं गंभीर बीमार, दिल्ली हाईकोर्ट से मांगी तीन महीने की पैरोल
चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि पैरोल व फर्लो दिशा-निर्देश, दिल्ली जेल नियम के अनुसार, एक दोषी साल भर में आठ हफ्ते के लिए दो बार पैरोल का हकदार है और चौटाला ने एक साल से ज्यादा समय से पैरोल नहीं लिया है, वह पैरोल पर रिहा किए जाने के हकदार हैं. न्यायमूर्ति संगीता ढिंगरा सहगल ने दिल्ली सरकार से इस पर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.
ओम प्रकाश चौटाला की पत्नी हैं गंभीर बीमार, दिल्ली हाईकोर्ट से मांगी तीन महीने की पैरोल
चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि पैरोल व फर्लो दिशा-निर्देश, दिल्ली जेल नियम के अनुसार, एक दोषी साल भर में आठ हफ्ते के लिए दो बार पैरोल का हकदार है और चौटाला ने एक साल से ज्यादा समय से पैरोल नहीं लिया है, वह पैरोल पर रिहा किए जाने के हकदार हैं. न्यायमूर्ति संगीता ढिंगरा सहगल ने दिल्ली सरकार से इस पर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.
हरियाणा के पूर्व सीएम ओपी चौटाला की पैरोल याचिका पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की पैरोल याचिका पर दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। चौटाला ने पौत्र अर्जुन चौटाला की सगाई में शामिल होने के लिए चार सप्ताह की पैरोल मांगी है। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
हरियाणा के पूर्व सीएम ने की पैरोल अवधि बढ़ाने की मांग, चौटाला की अर्जी पर दिल्ली सरकार को नोटिस
हाईकोर्ट ने हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला की अर्जी पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। चौटाला ने पैरोल अवधि चार सप्ताह बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दायर की है। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
पोते की सगाई में शामिल होने के लिए ओम प्रकाश चौटाला को मिली सात दिनों की पैरोल
पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला को दो हफ्तों के पैरोल मिली. ओम प्रकाश चौटाला का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन और वकील अमित साहनी ने चार सप्ताह की पैरोल मांगते हुए कहा था कि चौटाला के पोते की सगाई की तिथि 18 जुलाई तय हुई है और वहां उनकी उपस्थिति अनिवार्य है.
ओ पी चौटाला ने आप सरकार के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया
चौटाला (83) ने वकील अमित साहनी के जरिए दायर की अपनी याचिका में आरोप लगाया कि वह ‘‘दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और उनके पोते दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के बीच राजनीति षडयंत्र’’ का शिकार हैं।
पूर्व सीएम OP चौटाला की रिहाई पर दिल्ली HC ने दिल्ली सरकार को दिए दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश
जेबीटी भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश दिए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा था, वह सुना दिया है।
ओ पी चौटाला ने आप सरकार के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया
India News: नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में दस साल की जेल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर आप सरकार के उस फैसले को चुनौती दी जिसमें उन्हें तीन सप्ताह के फरलो के दौरान किसी राजनीतिक गतिविधि से रोक दिया गया। चौटाला (83) ने वकील अमित साहनी के जरिए दायर की अपनी याचिका में आरोप लगाया कि वह ‘‘दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और उनके पोते दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के बीच राजनीति षडयंत्र’’ का शिकार हैं।
ओपी चौटाला की रिहाई पर हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, दिल्ली सरकार को दिया ये निर्देश – HBN | Haryana Breaking News
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला की रिहाई को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया है। ओपी चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा था, वह सुना दिया है।
जेबीटी घोटाला / पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिए दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश
जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई परबुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश दिए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के अप्रैल 2019 के फैसले को निरस्त कर दिया है और इस मामले पर दोबारा फैसला देने के निर्देश दिए हैं।
ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित
ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षितजूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचर्स (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे 83 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश… न्यायाधीश मनमोहन और संगीता सहगल की खंडपीठ में मंगलवार को मामले की सुनवाई हुई, जिसमें चौटाला के वकीलों ने दलील रखी कि उन्हें नियमों के तहत छूट मिले, उनकी बढ़ती उम्र और विकलांगता को भी ध्यान में रखा जाए।
शिक्षक भर्ती घोटाले : ओपी चौटाला को मिली राहत, दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया बड़ा निर्देश
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका में ओपी चौटाला ने केंद्र सरकार के 18 जुलाई, 2018 की अधिसूचना के हवाले से दलील दी थी. अधिसूचना के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके पुरुष, 70 फीसद दिव्यांग अगर अपनी आधी सजा काट चुके हैं तो राज्य सरकार रिहाई पर विचार कर सकती है. याचिका में चौटाला ने कहा कि उनकी उम्र 83 साल की हो गई है और भ्रष्टाचार के मामले में वे सात साल की सजा काट चुके हैं.
ओम प्रकाश चौटाला की पत्नी हैं गंभीर बीमार, दिल्ली हाईकोर्ट से मांगी तीन महीने की पैरोल
चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि पैरोल व फर्लो दिशा-निर्देश, दिल्ली जेल नियम के अनुसार, एक दोषी साल भर में आठ हफ्ते के लिए दो बार पैरोल का हकदार है और चौटाला ने एक साल से ज्यादा समय से पैरोल नहीं लिया है, वह पैरोल पर रिहा किए जाने के हकदार हैं.
चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करे दिल्ली सरकार : उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओ.पी. चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करे। चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि दिल्ली जेल नियम की पैरोल और फर्लो गाइडलाइन के अनुसार, कोई भी दोषी साल में दो बार आठ सप्ताहों के पैरोल का हकदार है
चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करे दिल्ली सरकार : उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओ.पी. चौटाला की पैरोल याचिका पर विचार करे चौटाला के वकील अमित साहनी ने अदालत से कहा कि दिल्ली जेल नियम की पैरोल और फर्लो गाइडलाइन के अनुसार, कोई भी दोषी साल में दो बार आठ सप्ताहों के पैरोल का हकदार है और चूंकि चौटाला ने एक साल से अधिक समय से पैरोल नहीं लिया है, लिहाजा वह पैरोल पर रिहा किए जाने के हकदार हैं।
हरियाणाः इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला के फार्म हाउस पर ईडी की छापेमारी
हरियाणाः इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला के फार्म हाउस पर ईडी की छापेमारी। उनके अधिवक्ता अमित साहनी ने यह भी कहा था कि वर्ष 2013 में जब चौटाला को सजा सुनाई गई थी तो इस पीसी एक्ट में अधिकतम सजा 7 वर्ष थी। याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई और उच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है।
पूर्व ओ.पी. चौटाला की रिहाई याचिका पर विचार करे दिल्ली सरकार: उच्च न्यायालय | 🗳️ LatestLY हिन्दी
दिल्ली उच्च न्यायालय (High Court) ने बुधवार को दिल्ली सरकार को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओ.पी. चौटाला को 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों को विशेष छूट देने के प्रावधान के तहत यहां की तिहाड़ जेल से रिहा करने की याचिका पर विचार करने को कहा. चौटाला की तरफ से पेश वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों, 55 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं और ट्रांसजेंडरों को विशेष छूट का लाभ देने के लिए कहा है और अगर इनलोगों ने अपनी सजा की आधी अवधि पार कर ली है तो उन्हें रिहा करने के लिए कहा है.
चौटाला की रिहाई पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिए दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश
नई दिल्ली। जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकारको दोबारा फैसला सुनाने के निर्देश दिए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा था, वह सुना दिया है।
हरियाणा के पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका में ओपी चौटाला ने केंद्र सरकार के 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना के हवाले से दलील दी थीलिया है।
हरियाणा के पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका में ओपी चौटाला ने केंद्र सरकार के 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना के हवाले से दलील दी थी। अधिसूचना के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके पुरुष, 70 फीसदी वाले दिव्यांग व बच्चे अगर अपनी आधी सजा काट चुके हैं तो राज्य सरकार उसकी रिहाई पर विचार कर सकती है। याचिका में चौटाला ने कहा कि उनकी उम्र 83 साल की हो गई है और भ्रष्टाचार के मामले में वे सात साल की सजा काट चुके हैं।
ओपी चौटाला की पैरोल अवधि चार सप्ताह बढ़ी, पत्नी के देहांत पर मिली थी राहत
ओपी चौटाला की पैरोल अवधि 4 सप्ताह के लिए बढ़ा दी गई है। बता दें कि पत्नी के देहांत पर 11 अगस्त को दिल्ली सरकार ने चौटाला को पैरोल दी थी। कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन और अमित साहनी ने कहा था कि चौटाला के समुदाय में मृत्यु के 40 दिन तक कई तरह के रीति रिवाज पूरे किए जाते हैं। इसलिए पैरोल अवधि को चार सप्ताह के लिए बढ़ाया जाए।
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पोते की सगाई के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला को एक सप्ताह की पैरोल
हाईकोर्ट ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को पोते अर्जुन चौटाला की सगाई में शामिल होने के लिए एक सप्ताह की पैरोल प्रदान कर दी है। हालांकि, चौटाला ने चार सप्ताह की पैरोल मांगी थी। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवायी करते हुए यह निर्देश दिया।
पूर्व कांग्रेसी नेता सुशील शर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीन सप्ताह के पैरोल पर रिहा
जानकारी के मुताबिक, दोषी सुशील शर्मा ने छह महीने के पैरोल की मांग की थी. उसने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिए दायर याचिका में दिल्ली सरकार के पिछले साल के 28 नवंबर के आदेश को चुनौती दी थी. दिल्ली सरकार ने नियमित पैरोल के लिए उनका आवेदन खारिज कर दिया था. सुशील शर्मा ने दिल्ली सरकार के फैसले के खिलाफ आवेदन दि
नैना साहनी कांडः जानिए क्या थी उस खौफनाक रात की कहानी, जब तंदूर में जलाई गई एक लाश
याचिका पर जिरह करते हुए सुशील के वकील अमित साहनी ने कहा कि वह साढ़े 23 साल की सजा काट चुका है, जबकि उसे 20 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था।
तंदूर हत्याकांड: दिल्ली हाई कोर्ट ने सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश दिया
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी पत्नी की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे युवा कांग्रेस के पूर्व नेता सुशील कुमार शर्मा को जेल से फौरन रिहा करने का शुक्रवार को आदेश दिया.
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशानिर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्र कैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है.
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशानिर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्र कैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है.
तंदूर हत्याकांड : अदालत ने दिया सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश
उच्च न्यायालय ने सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) की सिफारिशों को खारिज और रद्द कर दिया। दरअसल, बोर्ड ने शर्मा की समय से पहले रिहाई के लिए दिए गए अनुरोध को खारिज कर दिया था। इसके अलावा अदालत ने एसआरबी की सिफारिशों का उपराज्यपाल द्वारा ‘नॉन स्पीकिंग एफर्मेशन’ भी खारिज कर दिया, हालांकि उपराज्यपाल सक्षम प्राधिकार हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह हम सरकार को सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश देते हैं।
इससे पहले अदालत ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था और सजा में कमी की अवधि सहित 2 दशक से अधिक समय तक जेल में काटने के आधार पर हिरासत से रिहाई की मांग करने वाली शर्मा की याचिका पर उसका (दिल्ली सरकार का) रुख जानना चाहा था।
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशा-निर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है।
इससे पहले अदालत ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था और सजा में कमी की अवधि सहित 2 दशक से अधिक समय तक जेल में काटने के आधार पर हिरासत से रिहाई की मांग करने वाली शर्मा की याचिका पर उसका (दिल्ली सरकार का) रुख जानना चाहा था।
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशा-निर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है।
तंदूर हत्याकांड : अदालत ने दिया सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशा-निर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है।
23 साल बाद सुशील शर्मा की रिहाई का आदेश
बेंच ने यह आदेश जेल में बंद सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका पर दिया है। शर्मा की ओर से वकील साहनी ने बेंच को बताया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है।
नैना साहनी तंदूर कांड : सुशील शर्मा की तत्काल रिहाई का आदेश
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने शर्मा द्वारा दाखिल रिहाई की याचिका को मंजूर कर लिया। सजा समीक्षा बोर्ड ने शर्मा की समयपूर्व रिहाई की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि वह अपनी पत्नी की क्रूर हत्या के लिए दोषी है। शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है।
नैना साहनी तंदूर कांड : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया सुशील शर्मा की तत्काल रिहाई का आदेश
शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है.
कांग्रेस कार्यकर्ता नैना साहनी की दो जुलाई 1995 की रात हत्या हो गई थी. उसके पति सुशील शर्मा ने उसे गोली मारी थी और उसके शव के टुकड़े कर एक रेस्तरां के तंदूर में जलाने का प्रयास किया था.
कांग्रेस कार्यकर्ता नैना साहनी की दो जुलाई 1995 की रात हत्या हो गई थी. उसके पति सुशील शर्मा ने उसे गोली मारी थी और उसके शव के टुकड़े कर एक रेस्तरां के तंदूर में जलाने का प्रयास किया था.
23 साल बाद सुशील शर्मा की रिहाई का आदेश
बेंच ने यह आदेश जेल में बंद सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका पर दिया है। शर्मा की ओर से वकील साहनी ने बेंच को बताया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है।
तंदूर कांड: HC ने दिल्ली सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों की मदद मांगी
बेंच ने कहा, ‘प्रधान सचिव (गृह), जीएनसीटीडी के साथ-साथ कानून सचिव से अनुरोध है कि वे इस सुनवाई के बाद अदालत की सहायता के लिए सुनवाई की अगली तारीख पर उपस्थित रहें.’ शर्मा की ओर से याचिका दायर करने वाले वकील अमित साहनी ने कहा कि – ‘दोषी पिछले 29 सालों से जेल में है. और सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के दिशानिर्देशों के अनुसार वो समय से पहले रिहाई के हकदार हैं.’
Naina Sahni तंदूर कांड सजा काट रहे सुशील शर्मा को तुरंत रिहा करें: दिल्ली हाईकोर्ट
याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि सुशील शर्मा का मामला पहली श्रेणी में आता है। वह 29 साल की सजा अब तक काट चुका है। इसमें से परोल व जमानत की अवधि हटा दी जाए तो वह 23 साल व छह माह की सजा काट चुका है।
नैना साहनी तंदूर कांड : सुशील शर्मा की तत्काल रिहाई का आदेश
नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को युवा कांग्रेस के पूर्व नेता सुशील कुमार शर्मा की तुरंत रिहाई का आदेश जारी किया है। सुशील 1995 में अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है।
शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है।
तंदूर कांड: जिस ने देश को हिला कर रख दिया था
याचिका पर जिरह करते हुए सुशील के वकील अमित साहनी ने कहा कि वह साढ़े 23 साल की सजा काट चुका है, जबकि उसे 20 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था।
उच्च न्यायालय ने तंदूर काण्ड के सजायाफ्ता सुशील शर्मा की रिहाई के आदेश दिए
शर्मा के वकील अमित साहनी ने उच्च न्यायालय को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है . वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है।
तंदूर कांड की कहानी का सच और नतीजा
शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है।
नैना साहनी तंदूर हत्याकांड: दोषी सुशील शर्मा को बड़ी राहत, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया तत्काल रिहाई का आदेश
सजा समीक्षा बोर्ड ने शर्मा की समयपूर्व रिहाई की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि वह अपनी पत्नी की क्रूर हत्या के लिए दोषी है. शर्मा के वकील अमित साहनी ने अदालत को बताया कि शर्मा 1995 से जेल में बंद है और वह अपनी अधिकतम निर्धारित सजा को पहले ही पूरा कर चुका है.
तंदूर हत्याकांड के दोषी सुशील शर्मा को तुरंत रिहा करो: दिल्ली हाईकोर्ट | सुरभि सलोनी
बैंच ने यह आदेश जेल में बंद सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका पर दिया है। शर्मा की ओर से वकील साहनी ने बैंच को बताया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है। याचिका में साहनी ने कहा है कि जहां तक उनके मुवक्किल का सवाल है तो वह 23 साल छह माह कैद और अच्छे व्यावहार के लिए मिली सजा माफी (रिमिशन) को मिलाकर 29 साल की सजा पूरी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल का अपराध पहली श्रेणी का है और ऐसे में अब रिहा किया जाना चाहिए। यचिका में कहा गया है कि सरकार ने बिना कारण बताए उनके मुवक्किल की रिहाई की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है।
तंदूर हत्याकांड: अदालत ने सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश दिया
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशानिर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्र कैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है।
पत्नी का मर्डर करके लाश के टुकड़े तंदूर में जलाए, सजा काट रहे पति की रिहाई के आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने 1995 तंदूर हत्याकांड मामले के दोषी सुशील शर्मा की तुरंत रिहाई के आदेश दे दिए हैं। उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पूछा था कि क्या किसी व्यक्ति को हत्या के अपराध में अनिश्चितकाल के लिए जेल में बंद रखा जा सकता
इस मामले में सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में बेंच को बताया गया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है।
इस मामले में सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में बेंच को बताया गया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है।
पत्नी का मर्डर करके लाश के टुकड़े तंदूर में जलाए, सजा काट रहे पति की रिहाई के आदेश
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और एस.डी. सहगल की बेंच ने सरकार से यह बताने के लिए कहा था कि 29 साल की सजा पूरी कर चुके शर्मा को क्यों नहीं रिहा किया गया। इस मामले में सुशील शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में बेंच को बताया गया था कि उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। साहनी ने बताया कि इसके तहत उम्रकैद की सजा पाए किसी कैदी का पहला अपराध है तो 20 साल, गंभीर अपराध होने पर 25 साल की सजा के बाद रिहा करने का प्रावधान किया है।
तंदूर हत्याकांड: पूर्व कांग्रेसी नेता को सुप्रीम कोर्ट ने पैरोल पर रिहा किया
सूत्रों के मुताबिक- दोषी सुशील शर्मा ने छह महीने के पैरोल की मांग की थी। उसने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिए दायर याचिका में दिल्ली सरकार के पिछले साल के 28 नवंबर के आदेश को चुनौती दी थी। दिल्ली सरकार ने नियमित पैरोल के लिए उनका आवेदन खारिज कर दिया था। सुशील शर्मा ने दिल्ली सरकार के फैसले के खिलाफ आवेदन दिया था।
जेसिका हत्याकांड में HC ने दिया दिल्ली सरकार को निर्देश, मनु शर्मा की पैरोल 3 दिन में निबटाए
मनु के वकील अमित साहनी ने याचिका पर बहस से पहले ही कहा कि उनके मुवक्किल की परीक्षा 31 दिसम्बर से शुरू होनी है।
जेसिका लाल मर्डर केसः दिल्ली सरकार को निर्देश, ‘मनु शर्मा की पैरोल का 3 दिन में निबटारा करें’
इससे पहले याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि उनके मुवक्किल की परीक्षा 31 दिसंबर 2016 से शुरू होनी है।
इसके बाद उन्हें 19 जनवरी को शादी के पंजीकरण के लिए विवाह पंजीयक के समक्ष पेश होना है। इसके लिए तीन माह की पैरोल जरूरी है। सरकार ने अभी तक इस अर्जी पर कोई निर्णय नहीं लिया है।
इसके बाद उन्हें 19 जनवरी को शादी के पंजीकरण के लिए विवाह पंजीयक के समक्ष पेश होना है। इसके लिए तीन माह की पैरोल जरूरी है। सरकार ने अभी तक इस अर्जी पर कोई निर्णय नहीं लिया है।
मनु शर्मा की पैरोल पर 3 दिन में फैसला करे दिल्ली सरकार: HC
जस्टिस प्रतिभा रानी ने आदेश में यह भी कहा कि सरकार अपने निर्णय से मनु शर्मा अथवा उसके वकील को जेल अधीक्षक के जरिये अवगत करवाए। इससे पहले याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि उनके मुवक्किल की परीक्षा 31 दिसंबर 2016 से शुरू होनी है।
जेसिका हत्याकांड: हाई कोर्ट ने मनु शर्मा को पैरोल दी
शर्मा ने अपने वकील अमित साहनी के जरिए हाई कोर्ट का रुख किया था। उसने दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने की मांग की कि वह पैरोल की अवधि एक महीने के लिए बढ़ाने पर फैसला करे। दिल्ली सरकार ने पिछले साल 27 दिसंबर को शर्मा को दो हफ्ते की पैरोल दी थी ताकि वह 31 दिसंबर 2016 से एलएलबी के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल हो सके। उसकी पैरोल 12 जनवरी को खत्म हो रही थी।
एलएलबी और शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए मनु शर्मा की परोल बढ़ी
मनु शर्मा ने अपनी वकील अमित साहनी की तरफ से हाई कोर्ट में परोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाने की याचिका डाली थी। दिल्ली सरकार ने मनु शर्मा को एलएलबी कोर्स के लिए 27 दिसंबर को दो हफ्तों की परोल दी थी। इसकी अवधि 12 जनवरी को समाप्त हो रही थी।
जेसिका हत्याकांड: हाई कोर्ट का आदेश- पैरोल पर 3 दिन में फैसला करे दिल्ली सरकार
मनु शर्मा की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि तीन महीने की जरूरत है. दोषी को अगले साल 19 जनवरी को चंडीगढ़ में अपनी शादी के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होना है. सरकार ने इस साल अक्तूबर से उनके आवेदन पर अब तक कोई फैसला नहीं किया
जेसिका लाल हत्याकांड : अदालत ने आप सरकार से मनु शर्मा के पैरोल पर फैसला करने को कहा
शर्मा की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि तीन महीने की जरूरत है क्योंकि दोषी को अगले साल 19 जनवरी को चंडीगढ़ में अपनी शादी के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होना है।
साहनी ने कहा कि सरकार ने इस साल अक्तूबर से उनके आवेदन पर अब तक कोई फैसला नहीं किया है।
साहनी ने कहा कि सरकार ने इस साल अक्तूबर से उनके आवेदन पर अब तक कोई फैसला नहीं किया है।
Jessica Lal murder case : HC asks AAP govt to decide Manu Sharma’s parole
जस्टिस प्रतिभा रानी की वेकेशन बेंच ने शर्मा के वकील अमित साहनी की दलीलों को सुनने के बाद ये आदेश दिया। अमित साहनी ने कोर्ट से कहा कि मनु शर्मा को अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए 19 जनवरी को चंडीगढ़ के रजिस्ट्रार के समक्ष पेश होना है।
जेसिका हत्याकांड: उच्च न्यायालय ने मनु शर्मा को पैरोल दी
शर्मा ने अपने वकील अमित साहनी के जरिए उच्च न्यायालय का रूख किया था । उसने दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने की मांग की कि वह पैरोल की अवधि एक महीने के लिए बढ़ाने पर फैसला करे ।
जेसिका लाल मर्डर: अब फैसला दिल्ली सरकार के हाथ में, हाईकोर्ट ने मनु शर्मा की याचिका का किया निपटारा
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के चार अक्तूबर तथा दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुये रद करने की मांग की थी। बोर्ड ने मनु शर्मा के आवेदन को खारिज कर दिया था और दिल्ली सरकार ने उसे सही ठहराया था।
जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा की नहीं होगी रिहाई, दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से मांगी राय
हत्यारे मनु शर्मा की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि वह आदतन अपराधी नहीं है और उसने जेसिका लाल की हत्या गुस्से में की थी।
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के चार अक्तूबर तथा दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुये रद करने की मांग की थी।
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के चार अक्तूबर तथा दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुये रद करने की मांग की थी।
जेसिका लाल की हत्या के दोषी मनु शर्मा की समय पूर्व रिहाई पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कही ये बात
मनु शर्मा ने वकील अमित साहनी के मार्फत हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें चार अक्टूबर 2018 को एसआरबी की सिफारिशों को दरकिनार करने का आग्रह किया था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसने बिना क्षमा के 15 साल और क्षमा के साथ 20 वर्ष से अधिक की जेल काट ली है। इसलिए वह समय से पहले रिहा होने का पात्र है।
जेसिका लाल हत्याकांड: सजा पूरी होने से पहले ही जेल से बाहर आना चाहता है मनु शर्मा, लगाई अर्जी
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के चार अक्तूबर तथा दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुये रद करने की मांग की थी। बोर्ड ने मनु शर्मा के आवेदन को खारिज कर दिया था और दिल्ली सरकार ने उसे सही ठहराया था।
जेसिका लाल हत्याकांड: मनु शर्मा की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का सरकार को नोटिस
मनु शर्मा ने अप्रैल 1999 में दक्षिणी दिल्ली के महरौली में जेसिका लाल की हत्या की थी। वहीं, दिल्ली सरकार के वकील अमित साहनी ने याचिका दायर कर शर्मा को जवाब देने के लिए कुछ और समय की मांग की है।
दिल्ली HC ने तिहाड़ जेल प्रशासन से कहा,, मनु शर्मा की पैरोल पर जल्द लें फैसला
मनु शर्मा की तरफ से अधिवक्ता अमित साहनी ने पीठ को बताया कि पैरोल की मांग वाली याचिका जेल प्रशासन के पास नौ महीने से लंबित है, जबकि इस पर चार सप्ताह के अंदर फैसला किया जाना था। मनु शर्मा को 1999 में मॉडल जेसिका लाल की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
जेसिका लाल हत्याकांडः मनु शर्मा के पैरोल पर तिहाड़ को सात दिन में निपटारा करने के निर्देश
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर के समक्ष मनु शर्मा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अमित साहनी ने कहा कि मनु शर्मा करीब 17 साल जेल में बिता चुका है और पारिवारिक जरूरतों के मद्देनजर आठ सप्ताह की पैरोल के लिए आवेदन किया था।
मनु शर्मा ने रिहाई के लिए हाई कोर्ट में दी याचिका
मनु शर्मा की ओर से एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका दायर की है।
जेसिका लाल हत्याकांड: हाई कोर्ट ने जेल प्रशासन से मनु शर्मा के परोल पर एक हफ्ते में फैसला लेने को कहा
शर्मा की ओर से पेश अधिवक्ता अमित साहनी ने बताया कि उनके मुवक्किल को समाज और परिवार से जुड़े रहने के लिए आठ हफ्ते के परोल पर रिहा किया जाए। उन्होंने बताया कि शर्मा की अर्जी करीब नौ महीने से जेल प्रशासन के समक्ष लंबित है और वह फैसला नहीं कर रहा, इसलिए वह इस देरी को चुनौती दे रहे हैं।
उम्रकैद पाए 31 कैदियों की जल्द रिहाई को मंजूरी, मनु शर्मा का केस 5वीं बार टला
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के चार अक्तूबर तथा दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुये रद करने की मांग की थी। बोर्ड ने मनु शर्मा के आवेदन को खारिज कर दिया था और दिल्ली सरकार ने उसे सही ठहराया था।
जेसिका हत्याकांड/ समय पूर्व रिहाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा मुजरिम | Hari Bhoomi
मनु शर्मा (43) ने वकील अमित साहनी के मार्फत याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने एसआरबी द्वारा चार अक्टूबर, 2018 को उसकी अर्जी नामंजूर किये जाने और तत्पश्चात दिल्ली सरकार द्वारा सात दिसंबर, 2018 को बोर्ड की सिफारिश मंजूर कर लिये जाने को चुनौती दी है।
जेसिका के हत्यारे मनु शर्मा को अदालत से फिलहाल राहत नहीं
मनु शर्मा ने वकील अमित साहनी के जरिये याचिका दायर की है।
मनु शर्मा की समय से पहले रिहाई पर एसआरबी करे विचार: उच्च न्यायालय
मनु शर्मा मॉडल जेसिका लाल की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। जेसिका की 1999 में में हत्या कर दी गई थी। मनु शर्मा ने वकील अमित साहनी के जरिये याचिका दायर की है। याचिका ने एसआरबी द्वारा 4 अक्टूबर 2018 को उसकी अर्जी को नामंजूर किये जाने के बाद दिल्ली सरकार द्वारा 7 दिसंबर 2018 को बोर्ड की सिफारिश मंजूर कर लिए जाने को चुनौती दी है।
जेसिका की जान लेने वाले ने मांगी रिहाई
अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर की गई याचिका में उन्होंने कहा कि सजा समीक्षा बोर्ड की सभी शर्तों को याचिकाकर्ता पूरी करता है और उसे रिहा किया जाना चाहिए। मनु शर्मा बगैर किसी राहत के 15 साल की सजा काट चुका है और वह समय पूर्व रिहाई के योग्य है। मनु ने दावा किया कि एसआरबी का 19 जुलाई का फैसला रद्द किए जाने के योग्य है। दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए राहुल मेहरा ने कहा कि गत तीन साल से शर्मा सेमी-ओपन जेल में थे, अब वह ओपन-जेल में हैं।
जेसिका हत्याकांड : दिल्ली सरकार को मनु शर्मा की याचिका पर विचार करने को कहा
अदालत वकील अमित साहनी के जरिए मनु शर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एसआरबी ने 4 अक्टूबर 2018 को मनु शर्मा की याचिका को खारिज करने की अनुशंसा की थी।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
जेसिका लाल मर्डर केस: हाईकोर्ट ने मनु शर्मा की समय पूर्व रिहाई पर दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिए याचिका दायर कर समय पूर्व रिहाई के मुद्दे पर सक्षम अधिकारी के 19 सितंबर 2019 के रद्द करने की मांग की है जिसमें एसआरबी की 19 जुलाई 2019 की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए मनु शर्मा के आग्रह को खारिज कर दिया गया था।
जेसिका हत्याकांड : दिल्ली सरकार को मनु शर्मा की याचिका पर विचार करने को कहा
अदालत वकील अमित साहनी के जरिए मनु शर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एसआरबी ने 4 अक्टूबर 2018 को मनु शर्मा की याचिका को खारिज करने की अनुशंसा की थी।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
मनु शर्मा की याचिका पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगी स्टेटस रिपोर्ट
अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर की गई याचिका में उन्होंने कहा कि सजा समीक्षा बोर्ड की सभी शर्तों को याचिकाकर्ता पूरी करता है और उसे रिहा किया जाना चाहिए।
मॉडल जेसिका हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा ने लगाई रिहाई की याचिका, दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
जस्टिस बृजेश सेठी ने 30 मार्च तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट में वक्त से पहले रिहा नहीं करने की अनुशंसा पर मुहर लगी थी। याचिका में 19 सितंबर 2019 के उस आदेश को निरस्त करने की मांग की है जिसमें सेंटेंस रिव्यू बोर्ड के उस फैसले पर मुहर लगाई गई है। जिसमें मनु शर्मा को वक्त से पहले रिहा नहीं करने की अनुशंसा की गई है। मनु शर्मा की ओर से वकील अमित साहनी ने कोर्ट से कहा कि मनु शर्मा की वक्त से पहले रिहाई की मांग को खारिज करने का फैसला मनमाना और भेदभावपूर्ण है।
सजा समीक्षा बोर्ड ने उम्रकैद पाए 31 कैदियों की जल्द रिहाई को मंजूरी दी, मनु शर्मा का केस 5वीं बार टाला
मनु शर्मा के वकील अमित साहनी की तरफ से कहा गया कि ‘हम दोबारा हाईकोर्ट का रुख करेंगे’. उन्होंने कहा कि ‘बोर्ड के सदस्य अपनी मनमर्जी के मुताबिक 14 मापदंडों को पूरा नहीं करने वाले दोषियों को रिहा कर दिया गया’. साहनी के अनुसार, ‘उनके मुवक्किल ने 23 वर्षों से अधिक वक्त (सजा में छूट के साथ) कैद में गुजारा है’. उन्होंने कहा कि ‘हमें यकीन है कि अदालत हमें राहत देगी, क्योंकि यह समय से पहले रिहाई के लिए सबसे उपयुक्त मामला था’.
साहनी ने कहा कि ‘खुद जेसिका लाल की बहन सबरीना ने जेल अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा था कि उसने शर्मा को माफ कर दिया है और अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो उन्हें कोई समस्या नहीं होगी’. उन्होंने यहां तक कहा कि “ऐसा लगता है कि 14-पैरामीटर नियम केवल अन्य कैदियों पर लागू होता है.”
साहनी ने कहा कि ‘खुद जेसिका लाल की बहन सबरीना ने जेल अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा था कि उसने शर्मा को माफ कर दिया है और अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो उन्हें कोई समस्या नहीं होगी’. उन्होंने यहां तक कहा कि “ऐसा लगता है कि 14-पैरामीटर नियम केवल अन्य कैदियों पर लागू होता है.”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेसिका के हत्यारे मनु शर्मा के पैरोल पर एक हफ्ते में फैसला करने को कहा
न्यायालय ने कहा, ‘जेल प्रशासन को निर्देश दिया जाता है कि वह शर्मा की पैरोल अर्जी को एक हफ्ते के भीतर निपटाए.’ शर्मा की ओर से पेश वकील अमित साहनी ने बताया कि उनके मुवक्किल को समाज और परिवार से जुड़े रहने के लिए आठ हफ्ते के पैरोल पर रिहा किया जाए. उन्होंने बताया कि शर्मा की अर्जी करीब नौ महीने से जेल प्रशासन के समक्ष लंबित है और वह फैसला नहीं कर रहा, इसलिए वह इस देरी को चुनौती दे रहे हैं. दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील राहुल मेहरा ने कहा कि शर्मा को पहले जेल प्रशासन के फैसले का इंतजार करना चाहिए और उसके बाद जरूरत पड़ने पर उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए.
जेसिका हत्याकांड : दिल्ली सरकार को मनु शर्मा की याचिका पर विचार करने को कहा
अदालत वकील अमित साहनी के जरिए मनु शर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एसआरबी ने 4 अक्टूबर 2018 को मनु शर्मा की याचिका को खारिज करने की अनुशंसा की थी।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
जेसिका लाल हत्याकांड के आरोपी मनु शर्मा की जल्द रिहाई के लिए दिल्ली सरकार को कोर्ट में दी चुनौती
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित साहनी के जरिये याचिका दायर कर सजा माफी बोर्ड के 4 अक्तूबर और दिल्ली सरकार के सात दिसंबर 2018 के निर्णय को चुनौती देते हुए रद्द करने की मांग की है। बोर्ड ने मनु शर्मा के आवेदन को खारिज कर दिया था और दिल्ली सरकार ने उसे सही ठहराया था।
जेसिका लाल हत्याकांड : समय से पहले दोषी की रिहाई याचिका पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है। इसमें कहा गया कि शासन शर्मा के साथ अनुचित व्यवहार कर रहा है। वह जेल में 23 वर्ष (छूट सहित) बिता चुका है उसके बावजूद उसका मामला चार बार खारिज कर दिया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को उच्च न्यायालय ने जेसिका लाल की 1999 में हुई हत्या के मामले में दिसंबर 2006 में दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
जेसिका लाल हत्याकांड : समय से पहले दोषी की रिहाई याचिका पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी मनु शर्मा की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप सरकार से जवाब मांगा।
शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है।.
शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है।.
जेसिका हत्याकांड : दिल्ली सरकार को मनु शर्मा की याचिका पर विचार करने को कहा
अदालत वकील अमित साहनी के जरिए मनु शर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एसआरबी ने 4 अक्टूबर 2018 को मनु शर्मा की याचिका को खारिज करने की अनुशंसा की थी। एसआरबी एक वैधानिक निकाय है, जिसमें दिल्ली के गृहमंत्री, कानून सचिव और गृह सचिव समेत अन्य सदस्य होते हैं।
उम्रकैद पाए 31 कैदियों की जल्द रिहाई को मंजूरी, मनु शर्मा का केस 5वीं बार टला
इससे पहले बोर्ड द्वारा सितंबर 2019 में अपनी पिछली बैठक में मनु शर्मा की समय पूर्व रिहाई को खारिज किए जाने के बाद इस साल की शुरुआत में शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, “यह चौंकाने वाला है. दरअसल, बोर्ड जिन 14 पैरामीटर्स को रिहाई के लिए उचित मानता है, शर्मा उन सभी 14 मापदंडों को पूरा करते हैं. इसके अलावा मनु शर्मा ने अर्ध-खुली जेल (सेमी ओपन जेल) में समय बिता चुके हैं. अब वह खुली जेल में हैं. यहां तक की जेल एवं कल्याण अधिकारी की तरफ से भी उनके जेल में रहे आचरण को लेकर एक सकारात्मक रिपोर्ट दी गई है.
जेसिका लाल हत्याकांड: मनु शर्मा की समयपूर्व रिहाई याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है। इसमें कहा गया कि शासन शर्मा के साथ अनुचित व्यवहार कर रहा है। वह जेल में 23 बरस (छूट सहित) बिता चुका है उसके बावजूद उसका मामला चार बार खारिज कर दिया गया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को उच्च न्यायालय ने जेसिका लाल की 1999 में हुई हत्या के मामले में दिसंबर 2006 में दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल 2010 में उसकी उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को उच्च न्यायालय ने जेसिका लाल की 1999 में हुई हत्या के मामले में दिसंबर 2006 में दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल 2010 में उसकी उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था।
जेसिका मर्डरः दोषी मनु की रिहाई की याचिका पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
याचिका में मनु शर्मा ने आग्रह किया है कि 19 सितंबर 2019 के सक्षम प्राधिकार के आदेश को दरकिनार किया जाए। याचिका में उस आदेश को खारिज करने का आग्रह किया गया है जिसमें उसकी समयपूर्व रिहाई की याचिका अस्वीकार करने की एसआरबी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया था। शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है।
जेसिका लाल हत्याकांड : मनु शर्मा को रिहा करने की मांग पर HC ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा
मनु शर्मा ने अधिवक्ता अमित शाहनी के माध्यम से सजा समीक्षा बोर्ड के 19 जुलाई के आदेश को चुनौती दी है। बोर्ड ने शर्मा की उस मांग को सिरे से ठुकरा दिया था, जिसमें उसने समय से पहले जेल से रिहा करने की मांग की थी। शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को बताया कि उनका मुवक्किल 17 साल की सजा काट चुका है। उन्होंने नैना साहनी हत्याकांड में दोषी को समय से पहले रिहा करने के उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए अपने मुवक्किल शर्मा की रिहाई की मांग की है।
सजा समीक्षा बोर्ड ने जेसिका लाल हत्याकांड के दोषी मनु शर्मा की समय से पहले रिहाई की सिफारिश की
सूत्रों के अनुसार सोमवार को दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन की अध्यक्षता में हुई बोर्ड की बैठक में यह सिफारिश की गयी।
यह छठी बार है कि समय पूर्व रिहाई की शर्मा की अर्जी इस बोर्ड के सामने आयी जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत काम करती है।
सूत्रों ने कहा, ‘‘ अब फाइल अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजी जाएगी।’’
शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, ‘‘ मनु शर्मा समय पूर्व रिहाई के लिए जरूरी सभी मापदंड पूरा करते हैं।’’
यह छठी बार है कि समय पूर्व रिहाई की शर्मा की अर्जी इस बोर्ड के सामने आयी जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत काम करती है।
सूत्रों ने कहा, ‘‘ अब फाइल अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजी जाएगी।’’
शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, ‘‘ मनु शर्मा समय पूर्व रिहाई के लिए जरूरी सभी मापदंड पूरा करते हैं।’’
सजा समीक्षा बोर्ड ने जेसिका लाल हत्याकांड के दोषी मनु शर्मा की समय से पहले रिहाई की सिफारिश की
दिल्ली सजा समीक्षा बोर्ड ने जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा की समय से पहले रिहाई की सिफारिश की है। सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। हालांकि इस सिफारिश पर अंतिम फैसला उपराज्यपाल अनिल बैजल करेंगे। सूत्रों के अनुसार सोमवार को दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन की अध्यक्षता में हुई बोर्ड की बैठक में यह सिफारिश की गयी।
यह छठी बार है कि समय पूर्व रिहाई की शर्मा की अर्जी इस बोर्ड के सामने आयी जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत काम करती है। सूत्रों ने कहा, ‘‘ अब फाइल अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजी जाएगी।” शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, ‘‘ मनु शर्मा समय पूर्व रिहाई के लिए जरूरी सभी मापदंड पूरा करते हैं।”
यह छठी बार है कि समय पूर्व रिहाई की शर्मा की अर्जी इस बोर्ड के सामने आयी जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत काम करती है। सूत्रों ने कहा, ‘‘ अब फाइल अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजी जाएगी।” शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, ‘‘ मनु शर्मा समय पूर्व रिहाई के लिए जरूरी सभी मापदंड पूरा करते हैं।”
जेसिका लाल हत्याकांड : समय से पहले दोषी की रिहाई याचिका पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
शर्मा की ओर से अधिवक्ता अमित साहनी ने अपने मुवक्किल की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि समय पूर्व रिहाई की उसकी याचिका अधिकारियों ने अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से अस्वीकार की है। इसमें कहा गया कि शासन शर्मा के साथ अनुचित व्यवहार कर रहा है। वह जेल में 23 वर्ष (छूट सहित) बिता चुका है उसके बावजूद उसका मामला चार बार खारिज कर दिया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को उच्च न्यायालय ने जेसिका लाल की 1999 में हुई हत्या के मामले में दिसंबर 2006 में दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
उम्रकैद पाए 31 कैदियों की जल्द रिहाई को मंजूरी, मनु शर्मा का केस 5वीं बार टला
मनु शर्मा. फाइल फोटो सात सदस्यीय सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) ने शुक्रवार को 31 कैदियों की जल्द रिहाई को मंजूरी दे दी. वहीं अन्य कैदियों की याचिका खारिज कर दी गई. बोर्ड ने सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा के मामले को पांचवीं बार स्थगित कर दिया
इससे पहले बोर्ड द्वारा सितंबर 2019 में अपनी पिछली बैठक में मनु शर्मा की समय पूर्व रिहाई को खारिज किए जाने के बाद इस साल की शुरुआत में शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, “यह चौंकाने वाला है. दरअसल, बोर्ड जिन 14 पैरामीटर्स को रिहाई के लिए उचित मानता है, शर्मा उन सभी 14 मापदंडों को पूरा करते हैं. इसके अलावा मनु शर्मा ने अर्ध-खुली जेल (सेमी ओपन जेल) में समय बिता चुके हैं. अब वह खुली जेल में हैं. यहां तक की जेल एवं कल्याण अधिकारी की तरफ से भी उनके जेल में रहे आचरण को लेकर एक सकारात्मक रिपोर्ट दी गई है.
इससे पहले बोर्ड द्वारा सितंबर 2019 में अपनी पिछली बैठक में मनु शर्मा की समय पूर्व रिहाई को खारिज किए जाने के बाद इस साल की शुरुआत में शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शर्मा के वकील अमित साहनी ने कहा, “यह चौंकाने वाला है. दरअसल, बोर्ड जिन 14 पैरामीटर्स को रिहाई के लिए उचित मानता है, शर्मा उन सभी 14 मापदंडों को पूरा करते हैं. इसके अलावा मनु शर्मा ने अर्ध-खुली जेल (सेमी ओपन जेल) में समय बिता चुके हैं. अब वह खुली जेल में हैं. यहां तक की जेल एवं कल्याण अधिकारी की तरफ से भी उनके जेल में रहे आचरण को लेकर एक सकारात्मक रिपोर्ट दी गई है.
महिला जज ने खटखटाया अदालत का दरवाजा
जिला जज एके चावला ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के पूर्व पति से इस संबंध में 5 अक्टूबर तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। इससे पहले गाखर के अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि महिला मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने सीनियर जज पर जो आरोप लगाए हैं, उससे संबंधित जवाब देने के लिए उन्हें समय चाहिए।
दिल्लीः न्यायाधीश दम्पति को मिला तलाक
दिल्ली की एक अदालत ने हरियाणा के एक पूर्व न्यायाधीश को उनकी पत्नी से तलाक को मंजूरी दे दी। अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर गाखड़ के तलाकनामे पर सुनवाई की। गाखड़ ने याचिका 2009 में दायर की थी। उस वक्त वह हरियाणा में न्यायाधीश के पद पर थे और उनकी पत्नी गोमती दिल्ली की तीस हजारी अदालत में न्यायाधीश थीं।
न्यायाधीश दम्पति को मिला तलाक
अदालत ने वकील अमित साहनी के माध्यम से दायर गाखड़ के तलाकनामे पर सुनवाई की। गाखड़ ने याचिका 2009 में दायर की थी। उस वक्त वह हरियाणा में न्यायाधीश के पद पर थे और उनकी पत्नी गोमती दिल्ली की तीस हजारी अदालत में न्यायाधीश थीं।
गाखड़ के वकील साहनी ने याचिका में कहा है कि न्यायाधीश दम्पति ने पांच जनवरी, 2009 को दिल्ली में सोच-समझकर शादी की थी। वर्ष 2006 में दोनों ने हरियाणा लोक सेवा (विधिक) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दोनों की पहली बार चण्डीगढ़ स्थित न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान मुलाकात हुई थी।
गाखड़ ने कहा कि उसी दौरान दोनों की सगाई हो गई। लेकिन मोनाचा के गुस्सैल स्वभाव के कारण दोनों के बीच सगाई टूट गई। इसके बाद मोनाचा ने अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने का वादा किया और दोनों ने जनवरी 2009 में शादी कर ली।
गाखड़ के वकील साहनी ने याचिका में कहा है कि न्यायाधीश दम्पति ने पांच जनवरी, 2009 को दिल्ली में सोच-समझकर शादी की थी। वर्ष 2006 में दोनों ने हरियाणा लोक सेवा (विधिक) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दोनों की पहली बार चण्डीगढ़ स्थित न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान मुलाकात हुई थी।
गाखड़ ने कहा कि उसी दौरान दोनों की सगाई हो गई। लेकिन मोनाचा के गुस्सैल स्वभाव के कारण दोनों के बीच सगाई टूट गई। इसके बाद मोनाचा ने अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने का वादा किया और दोनों ने जनवरी 2009 में शादी कर ली।
नौकरी जाने का कारण बनने वाली पत्नी से तलाक उचित
उल्लेखनीय है कि हरियाणा के एक पूर्व सिविल जज ने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दिल्ली में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यरत अपनी पत्नी से तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। याचिका में व्यक्ति का कहना था कि उसने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। विवाह के बाद उसकी पत्नी ने हरियाणा में अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी हासिल कर ली और खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी। इतना ही नहीं, उसकी पत्नी ने इंटरनेट पर अपना प्रोफाइल बनाते हुए उसे विवाह के लिए रिश्ते खोजने वाली एक वेबसाइट पर भी डाल दिया। यही नहीं, महिला जज ने अपने पति के खिलाफ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में शिकायत की। जिसके कारण महिला जज के पति को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। शिकायतकर्ता का आरोप है महिला जज अक्सर उसे फोन पर धमकाती है और उसके घर पर जाकर झगड़ा करती है। जिससे उसकी जिंदगी नर्क बन गई है। लिहाजा, उसे तलाक दिया जाए। अदालत ने पत्नी के पति की नौकरी जाने का कारण बनने को तलाक का ठोस आधार मानते हुए पूर्व जज को उसकी पत्नी से तलाक प्रदान किया।
नौकरी जाने का कारण बनने वाली पत्नी से तलाक
हरियाणा के एक पूर्व सिविल जज ने अपने अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दिल्ली में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यरत अपनी पत्नी से तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की थी।
याचिका में पूर्व सिविल जज ने कहा था कि उन्होंने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। बाद में उनकी पत्नी ने हरियाणा में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली। खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी।
याचिका में पूर्व सिविल जज ने कहा था कि उन्होंने वर्ष 2009 में हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत एक महिला जज से प्रेम विवाह किया था। बाद में उनकी पत्नी ने हरियाणा में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली। खुद के विवाहित होने की बात छिपाते हुए दिल्ली में रहने लगी।
धोखाधड़ी के मामले की दोबारा जांच के आदेश
इस मामले में याचिकाकर्ता सुनीता की ओर एडवोकेट अमित साहनी ने अदालत में पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने मुख्य आरोपी राकेश राणा के खिलाफ सबूत नहीं जुटाए हैं। राकेश राणा ने कृष्णा नगर स्थित एक मकान पर जीआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड से साढ़े छह लाख रुपए का लोन लिया था। लेकिन उसने इस बात को छुपा लिया और उक्त मकान को प्रवीण गुप्ता से बेच दिया। बाद में प्रवीण गुप्ता ने इस मकान को आरोपी रीना देवी को बेच दिया। रीना से यह मकान सुनीता ने लिया तब उसे पता चला कि इस मकान पर लोन है।
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका, कोर्ट ने AAP सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए. याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है. उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की.
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए।
याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है।उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है।उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
कैदियों की दाम्पत्य मुलाकात के लिए PIL दायर, हाईकोर्ट ने ‘आप’ सरकार से मांगा जवाब
न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दाम्पत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन तथा जस्टिस ब्रिजेश सेठी की बैंच ने याचिका में उठाए गए मुद्दे को ‘बेहद दिलचस्प’ बताया और दिल्ली सरकार तथा जेल महानिदेशक को नोटिस भेज कर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दाम्पत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि अदालतों ने इस पर प्रगतिवादी रवैया अपनाया है तथा अनेक देशों ने दाम्पत्य मुलाकात को यह देखते हुए कि यह एक अहम मानवाधिकार है, मंजूरी दी हुई है, लेकिन दिल्ली जेल कानून 2018 इस मुद्दे पर खामोश है। अध्ययन बताते हैं कि दाम्पत्य मुलाकातों से जेल अपराधों में कमी आती है और कैदियों में सुधार होता है।
जेल में दांपत्य जीवन का अधिकार दिया जाना संभव नहीं
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेल में दांपत्य जीवन का अधिकार दिया जाना संभव नहीं – Indias News | DailyHunt
मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की पीठ के समक्ष जेल महानिदेशक ने हलफनामा दाखिल करते यह जानकारी दी है. जेल महानिदेशक ने पीठ को कहा कि कैदी वैवाहिक जिम्मेदारियों का निर्वहन पैरोल या फरलो पर रिहा होने के दौरान कर सकता है.
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेल महानिदेशक ने अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के लिए पेरोल, फरलो या अंतरिम जमानत दी जाती है. जेल महानिदेशक ने कहा कि इस दौरान कैदी अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. जेल प्रबंधन ने पीठ को कहा कि कैदी दांपत्य जीवन के अधिकार का उपयोग करने के लिए पैरोल, फरलो या अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं।
जेलों में पति-पत्नी को मुलाकात की अनुमति की मांग, हाईकोर्ट में याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है. दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए दायर की गई याचिका
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है.
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।
जेलों में पति-पत्नी मुलाकात की अनुमति के लिए याचिका दायर
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने वकील एन. हरिहरन के माध्यम से याचिका दायर की। हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है।
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए।याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि अदालतों द्वारा इस पर प्रगतिवादी रवैया अपनाया है तथा अनेक देशों ने दांपत्य मुलाकात को यह देखते हुए कि यह एक अहम मानवाधिकार है, मंजूरी दी हुई है लेकिन दिल्ली जेल कानून 2018 इस मुद्दे पर खामोश है
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका,अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की. हरिहरन ने अदालत से कहा कि दांपत्य मुलाकातों के अधिकारों से इनकार करना दिल्ली की जेलों में कैदियों के मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों के अधिकारों को निष्प्रभावी करना है. दांपत्य मुलाकात की अवधारणा एक जेल के कैदी को वैध जीवनसाथी के साथ एक विशेष अवधि निजी तौर पर बिताने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे यौन गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं.
कैदियों के दांपत्य मुलाकात पर जनहित याचिका, अदालत ने आप सरकार से मांगा जवाब
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि जेल में दांपत्य मुलाकात को कैदियों और उनके पति अथवा पत्नियों के मौलिक आधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। याचिककर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वर्तमान में जेल कानून के अनुसार किसी कैदी की अपने पति अथवा पत्नी से मुलाकात जेल अधिकारी की मौजूदगी में होती है। उन्होंने इस नियम को समाप्त करने की मांग की।
CJI के इस आदेश के बाद शाहीन बाग रोड जाम मामले की SC से जल्द सुनवाई की होगी मांग
चीफ जस्टिस ने सभी मेंशनिंग करने वाले वकीलों को कहा कि वो मेंशनिंग ऑफिसर के सामने केसों को मेंशन करे. वकील अमित साहनी ने दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है.
शाहीन बाग धरने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, मॉनिटरिंग कराने की मांग
वकील अमित साहनी ने SC में दायर याचिका में कहा कि रोड जाम से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है, लेकिन दिल्ली HC ने स्थिति की मॉनिटरिंग को लेकर कोई खास दिशा निर्देश देने के बजाए पुलिस को उचित कदम उठाने को कहकर मामले का निपटारा कर दिया.
शाहीन बाग रोड खोलने को लेकर हाईकोर्ट ने कहा- पुलिस जनहित का ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करे
याचिका हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच के सामने आई थी। एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने यह याचिका दायर की है।
सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के कारण बंद शाहीन बाग-कालिंदी कुंज रोड खुलवाने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
याचिकाकर्ता अमित साहनी ने कोर्ट से याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग की कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस बारे में मेंशनिंग आफीसर के पास जाने को कहा।
शाहीन बाग इलाके में सुचारू यातायात बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका
कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग पर सुचारू तरीके से यातायात बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका दायर की है।
Shaheen Bagh protest: शाहीन बाग में सड़क खुलवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
Shaheen Bagh protest शाहीन बाग में रास्ता खुलवाने को लेकर याचिकाकर्ता अमित साहनी ने सुप्रीम कोर्ट से मामले पर जल्द सुनवाई की मांग की है।
CAA प्रदर्शन: शाहीन बाग में सड़क जाम को लेकर हाईकोर्ट का निर्देश, ‘उचित कार्रवाई करें’
नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग (shaheen bagh) इलाके में जारी विरोध प्रदर्शन के चलते पिछले करीब 1 महीने से दिल्ली-नोएडा को जोड़ने वाली कालिंदी कुंज-मथुरा रोड सड़क संख्या 13-A पूरी तरह से बंद है. वकील अमित साहनी की अर्जी पर इस सड़क को खुलवाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई.
CAA Delhi Protest Updates: शाहीन बाग का रास्ता खुलवाने के लिए HC ने पुलिस को दिया निर्देश
CAA Delhi Protest अधिवक्ता अमित साहनी के माध्यम से दायर याचिका में पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज- शाहीन बाग ओखला अंडरपास के बंद हिस्से को खुलवाने का निर्देश देने की मांग की है।
CAA के खिलाफ मुज़ाहिरा : शाहीन बाग में सड़क खुलवाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में समाअत
शहरियत तरमीमी कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग (shaheen bagh) इलाके में जारी मुजा़हिरों के चलते गुज़िश्ता करीब 1 महीने से दिल्ली-नोएडा को जोड़ने वाली कालिंदी कुंज-मथुरा रोड सड़क नंबर 13-A पूरी तरह से बंद है. अमित साहनी ने इसके खिलाफ अदालत में अर्जी दाखिल की है
शाहीन बाग मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
शाहीन बाग प्रोटेस्ट के कारण कालिंदी कुंज सड़क बंद होने के मुद्दे को लेकर एडवोकेट अमित साहनी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है।
शाहीन बाग प्रदर्शनःHC का पुलिस को दो टूक,कानून के मुताबिक करें काम, केजरीवाल सरकार ने किए हाथ खड़े
नागरिकता संशोधन एक्ट और नेशनल रजिस्टर फॉर पॉपुलेशन के खिलाफ बीते एक महीने से दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन चल रहा है। मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में वकील अमित साहनी की अर्जी पर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस से कहा है कि वह बड़ी पिक्चर देखे और आम लोगों के हित में काम करें।
शाहीन बाग का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, रोड खाली कराने की मांग
दिल्ली हाई कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के चलते बंद कालिंदी कुंज-शाहीन बाग रोड को खोलने की वकील अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.
CAA: 36 दिन से जारी शाहीन बाग का संग्राम, रास्ता खुलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी
अदालत ने दिल्ली पुलिस को उचित एक्शन लेने के लिए कहा था, लेकिन प्रदर्शनकारी नहीं माने. अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में ये मामला उठ सकता है. वकील अमित साहनी आज शाहीन बाग के मामले को सर्वोच्च अदालत में मेंशन कर सकती है.
CAA: कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई कल
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के चलते 15 दिसंबर से बंद कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने की वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के लिए सहमति जताई।
शाहीन बाग प्रदर्शन: जनहित को ध्यान में रखते हुए दिल्ली पुलिस करे कार्रवाई-हाई कोर्ट
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दिल्ली हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि प्रदर्शन के कारण पिछले 27 दिनों से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग रोड बंद है।
कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी अदालत
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गयी है।
दिल्ली के शाहीन बाग में CAA-NRC के खिलाफ अबतक प्रदर्शन जारी, SC में पहुंचा मामला – HW News Hindi
सड़क पर जारी इस संग्राम के खिलाफ अदालत तक आवाज़ पहुंच चुकी है. इस प्रदर्शन के कारण दिल्ली से नोएडा का रास्ता बंद है, जिसको लेकर कई स्थानीय नागरिकों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. अदालत ने दिल्ली पुलिस को उचित एक्शन लेने के लिए कहा था, लेकिन प्रदर्शनकारी नहीं माने. अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में ये मामला उठ सकता है. वकील अमित साहनी आज शाहीन बाग के मामले को सर्वोच्च अदालत में मेंशन कर सकती है.
शाहीन बाग में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन: पुलिस ने जाम सड़क को खाली कराना शुरू किया
मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की पीठ ने पुलिस से जनहित और कानून-व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए मामले पर गौर करने को कहा. अदालत ने वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही.
शाहीन बाग में 15 दिसंबर से CAA के विरोध में प्रदर्शन जारी, आज वकील SC से लेकर जंतर-मंतर तक करेंगे मार्च
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गयी है। बता दें की नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के कारण 15 दिसंबर को इन्हें बंद किया गया था। अस्थायी तौर पर शुरू किए गए कदम को समय समय पर बढ़ा दिया गया।
प्रदर्शनकारियों ने नहीं मानी पुलिस की अपील, जारी रहेगा विरोध प्रदर्शन
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि पुलिस को यातायात नियंत्रित करने का पूरा अधिकार है. हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया था कि वो कानून व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए कालिंदी कुंज-शाहीन बाग सड़क पर यातायात नियंत्रित करे. कोर्ट ने यह आदेश अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था.
शाहीन बाग धरना : पुलिस ने फिर किया रास्ता खोलने का आग्रह, सुप्रीम कोर्ट में अर्जी
अदालत ने कहा था कि वह सीधे तौर पर प्रदर्शन से निपटने, प्रदर्शन स्थल या यातायात को लेकर कोई निर्देश नहीं देगी क्योंकि इससे निपटना वास्तविकत स्थिति और पुलिस के विवेक पर निर्भर करता है। वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करके शाहीन बाग में स्थिति के निरीक्षण का आग्रह किया है।
CAA Protest: शाहीन बाग में रोड जाम पर हाई कोर्ट ने कहा- जल्द कार्रवाई करे पुलिस
याचिका दाखिल करने वाले वकील अमित साहनी ने कहा था कि दिल्ली से नोएडा और फरीदाबाद का रास्ता शाहीन बाग में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन के चलते 15 दिसंबर से ही जाम है. इससे लाखों लोगों को परेशानी हो रही है. साहनी ने कोर्ट इस पर जरूरी कार्रवाई करने की मांग की थी, जिससे लोगों की परेशानी कम हो सके.
कालिंदीकुंज रोड ब्लॉक मामला: हाई कोर्ट का आदेश- कानून के तहत काम करे पुलिस
दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले अमित साहनी ने मांग करते हुए कहा है कि प्रदर्शनकारी ओखला में शाहीन बाग की उस सड़क पर बैठे हुए हैं जो आगे चलकर दिल्ली-आगरा हाइवे से जुड़ जाती है. इसी सड़क पर अपोलो अस्पताल है. सुबह से शाम तक ही नहीं रातभर इस सड़क पर खासा ट्रैफिक भी रहता है. लिहाजा इस सब को देखते हुए सड़क खुलवाने के आदेश जारी किए जाएं.
कालिंदी कुंज-शाहीन बाग रोड मामला: दिल्ली HC ने कहा- जनहित को ध्यान में रख काम करे पुलिस
दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के चलते 15 दिसंबर से बंद कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने की वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि जनहित को ध्यान में रख कर काम किया जाए।
कालिंदी कुंज मार्ग खोलने का मामला हाईकोर्ट ने पुलिस पर छोड़ा, कहा जनहित का रखें ध्यान
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई है।
कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने के लिए याचिका पर दिल्ली HC ने कहा- संबंधित विभाग करे फैसला
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई।
सीएए के खिलाफ शाहीन बाग प्रदर्शन में पहुंचे कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर
मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस को निर्देश दिए थे कि सड़क खोलने के मामले में कानून-व्यवस्था को भी ध्यान में रखा जाए।
CAA Protest : शाहीन बाग में नागरिकता कानून के खिलाफ धरना-प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
वकील अमित साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
शाहीन बाग आंदोलन: कालिंदी कुंज रोड ब्लॉक पर HC का निर्देश- पुलिस कानून-व्यवस्था कायम करे
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका में कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग यानी रोड नंबर 13ए (मथुरा रोड और कालिंदी कुंज के बीच) के साथ-साथ ओखला अंडरपास को खोलने के लिए अदालत के निर्देशों की मांग की गई थी, जिसे 15 दिसंबर, 2019 को नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के कारण अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था।
CAA के विरोध में शाहीन बाग पर प्रदर्शन के लिए महिलाओं को मिल रहे 500 रुपए, शिफ्ट में होता है धरना
जनहित याचिका में याची वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने मांग की है कि कोर्ट द्वारा दिल्ली पुलिस को इस मार्ग को खुलवाने का आदेश दिया जाए ताकि लोगों को इस परेशानी से निजात मिल सके।
दिल्ली पुलिस की शाहीन बाग धरना खत्म कराने की कवायद तेज, इलाके के लोगों को समझाने की कर रही कोशिश
दिल्ली हाई कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के चलते 15 दिसंबर से बंद कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग को खोलने की वकील अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की।
दिल्ली-नोएडा रोड को बंद करने के खिलाफ याचिका पर HC का फैसला, केंद्र सरकार-पुलिस को दिया ये आदेश | Hari Bhoomi
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दायर याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी।
शाहीन बाग रोड मामला: हाईकोर्ट ने सरकार और पुलिस को जनहित को ध्यान में रखकर काम करने की दी सलाह
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि कालिंदी कुंज और शाहीन बाग के रास्ते को खोलने के लिए कोर्ट आदेश दे। रास्ता बंद होने की वजह से दूसरे वैकल्पिक रास्तों पर भारी भीड़ हो रही है।
शाहीन बाग प्रदर्शन पर दिल्ली HC का फैसला कानून के मुताबिक काम करे पुलिस-केंद्र
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गयी है। याचिका में कहा गया है कि सड़क बंद होने से रोजाना लाखों लोगों को कठिनाई होती है और वे पिछले एक महीने से अलग-अलग रास्तों से जाने के लिए बाध्य हैं।
CAA-NRC Protest: शाहीन बाग में 36 दिन से जारी विरोध प्रदर्शन, रास्ता खुलवाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर
वकील अमित साहनी आज शाहीन बाग के मामले को सर्वोच्च अदालत में मेंशन कर सकती है। बता दे, इससे पहले अदालत ने दिल्ली पुलिस को उचित एक्शन लेने के लिए कहा था, लेकिन प्रदर्शनकारी नहीं माने। जिसके बाद आज यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठ सकता है।
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अदालत ने वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही।याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के कारण 15 दिसंबर 2019 से बंद चल रहे कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग और ओखला अंडरपास को खोलने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। यह एक अस्थायी व्यवस्था थी लेकिन बाद में इसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा।
शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी टस से मस नहीं हो रहे, क्या इससे हो रहा है BJP को फायदा?
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
सीएए: कालिंदी कुंज मार्ग खोलने की याचिका पर सुनवाई आज, रास्ता बंद होने से हजारों लोग हैं परेशान
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त को कालिंदी कुंज-शाहीन बाग पट्टी और ओखला अंडरपास को बंद करने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई है।
Shaheen Bagh Protest को लेकर SC ने क्या कहा? याचिकाकर्ता अमित साहनी से जानिए
वकील अमित साहनी की याचिका पर CAA के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विरोध का अधिकार है लेकिन जगह ऐसी हो जहां दूसरों को परेशानी न हो। ऐसा अनिश्चित काल के लिए भी नहीं होना चाहिए.
शाहीन बाग पर ‘सुप्रीम’ सुनवाई: जानें बड़ी बातें
पहली याचिका वकील अमित साहनी की है जिसमें कहा गया है कि लंबे समय से शाहीन बाग में चल रहे धरने से लोगों को बेहद परेशानी हो रही है.
शाहीन बाग से धरना हटाने के लिए याचिका पर SC ने कहा- दिल्ली में चुनाव की वजह से सुनवाई टाल रहे, सोमवार को आइए
दिल्ली के शाहीनबाग में चल रहे धरना प्रदर्शन के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की. दिल्ली मे मतदान से एक दिन पहले सुनवाई हुई. एक याचिका वकील अमित साहनी ने भी दायर की है.
CAA Protest: शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे धरना-प्रदर्शन के खिलाफ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी सड़क बंद नहीं कर सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर जिनमें एक वकील अमित साहनी की याचिका भी है, केन्द्र, दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी किये.
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, ‘सार्वजनिक जगहों पर ज्यादा दिन तक धरना देना गलत’
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी एवं अन्य की तरफ से याचिका दायर की गई हैं. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
‘वहां समस्या है’: दिल्ली चुनाव बाद शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने वाली याचिका को सुनेगा सुप्रीम कोर्ट
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे धरना-प्रदर्शन के खिलाफ वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है।
शाहीन बाग : धरने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर SC ने कहा, चुनाव के बाद 10 फरवरी को करेंगे सुनवाई
गौरतलब है कि वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को कोई दिशा- निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट वकील अमित साहनी की अपील पर सुनवाई कर रहा है. साहनी ने कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग पर यातायात की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के वास्ते हाई कोर्ट का रुख किया था.
शाहीन बाग में प्रदर्शन के खिलाफ याचिकाओं पर दिल्ली चुनावों के बाद सुनवाई करेगा SC
सुप्रीम कोर्ट वकील अमित साहनी की अपील पर सुनवाई कर रहा है. साहनी ने कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग पर यातायात की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के वास्ते उच्च न्यायालय का रुख किया था. सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने 15 दिसंबर से इस मार्ग को अवरुद्ध कर रखा है.
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नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे धरना-प्रदर्शन के खिलाफ वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है।
CAA Protest: शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर एक याचिका पर कोर्ट सुनवाई करेगा.
शाहीन बाग: SC बोला- आप रास्ता नहीं रोक सकते, ऐसे प्रदर्शन करोगे तो कैसे चलेगा
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ पिछले करीब दो महीने से शाहीन बाग में चल रहे विरोध-प्रदर्शन के चलते बंद रास्ते को खुलवाने वाली वकील अमित साहनी की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए प्रदर्शनकारियों से पूछा कि पब्लिक रोड जाम करने का अधिकार आपको किसने दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सोमवार को सुनवाई करेंगे वीडियो – हिन्दी न्यूज़ वीडियो एनडीटीवी ख़बर
सुप्रीम कोर्ट ने वकील अमित साहनी की याचिका पर कहा कि इस मामले को वापस हाईकोर्ट भेजने पर भी विचार करें
शाहीन बाग में जारी प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, आ सकता है बड़ा फैसला
वकील अमित साहनी ने रास्ता रोके जाने के खिलाफ याचिका दायर की है.
शाहीन बाग में धरने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई टली, अब सोमवार को होगी
सुप्रीम कोर्ट में वकील अमित साहनी की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ चल रहे धरने से आम लोगों को दिक्कत हो रही है और प्रदर्शनकारियों को हटवाया जाए.
शाहीन बाग पर SC ने कहा- सड़क रोक कर बैठ जाने का किसी को हक नहीं
कोर्ट ने वकील अमित साहनी की याचिका पर प्रदर्शनकारियों को खरी-खोटी सुनाई लेकिन जाम हटाने को लेकर आज कोई आदेश पारित करने से मना कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में वह सरकार का जवाब देखने के बाद ही कोई आदेश पारित करेगा.
शाहीन बाग / प्रदर्शन के नाम पर अनिश्चित काल के लिए रास्ता बंद करने को लेकर दिल्ली सरकार और पुलिस को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की है…
शाहीन बाग पर SC ने कहा- आप रास्ता नहीं रोक सकते, हर कोई ऐसे प्रदर्शन करने लगे तो क्या होगा?
शाहीन बाग में करीब दो महीनों से प्रदर्शन हो रहा है. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है. (फाइल फोटो)
शाहीन बाग केस: SC ने दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार को भेजा नोटिस, 17 फरवरी को होगी सुनवाई
SC ने अंतरिम आदेश जारी करने से किया इनकार, 17 फरवरी को अगली सुनवाई. याचिका अमित साहनी ने दायर की है.
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक स्थानों पर धरना प्रदर्शन करना उचित नही
शाहीन बाग में पिछले 56 दिनों से चल रहे धरना प्रदर्शन को खत्म करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल कोई दिशा-निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया है। याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है.
CAA Protest: शाहीन बाग प्रदर्शन के खिलाफ दायर याचिका पर आज SC में सुनवाई
दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे धरना प्रदर्शन के खिलाफ वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा।
शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने वाली याचिका पर SC बोला- रोड ब्लॉक नहीं कर सकते प्रदर्शनकारी
सुप्रीम कोर्ट ने वकील अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदर्शनकारियों से कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारी सड़कों को ब्लॉक करके लोगों के लिए असुविधा पैदा नहीं कर सकते।
शाहीन बाग से धरना हटाने के लिए याचिका पर SC ने कहा- दिल्ली में चुनाव की वजह से सुनवाई टाल रहे, सोमवार को आइए
दिल्ली के शाहीनबाग में चल रहे धरना प्रदर्शन के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की. इनमें एक याचिका वकील अमित साहनी ने भी दायर की है.
शाहीन बाग प्रोटेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विरोध प्रदर्शन के लिए सड़क नहीं कर सकते ब्लॉक
राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग (Shaheen Bagh) इलाके में में पिछले करीब दो महीने से लोग CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
शाहीन बाग प्रोटेस्ट के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई, 10 फरवरी को अगली सुनवाई
दिल्ली (Delhi) में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ 55 दिनों से शाहीन बाग में प्रदर्शन (Shaheen Bagh Protest) जारी है. वकील अमित साहनी ने इसके खिलाफ याचिका दायर की है.
Shaheen Bagh Protest: नवजात की मौत पर SC ने कहा- क्या 4 महीने का बच्चा विरोध प्रदर्शनों में भाग ले सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिल्ली के शाहीनबाग में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोग सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध कर दूसरों के लिए असुविधा पैदा नहीं कर सकते. वकील अमित साहनी ने प्रदर्शन के विरुद्ध अर्जी दायर की है.
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- हमेशा के लिए सड़क नहीं कर सकते बंद
नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) और नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (NRC) के खिलाफ पिछले करीब दो महीने से शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में प्रदर्शन जारी है. वकील अमित साहनी ने इस बाबत अर्जी दायर की है.
Shaheen Bagh मामले में अब सोमवार को सुनवाई करेगा Supreme Court, कहा- चुनाव बाद सुनवाई करना उचित
शाहीन बाग इलाके में चल रहे प्रदर्शन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई टल गई है. अर्जी वकील अमित साहनी ने दायर की है.
शाहीन बाग पर SC ने कहा- हमेशा के लिए सड़क नहीं रोक सकते प्रदर्शनकारी
शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है और 15 दिसबंर से करीब 60 दिन से कालिंदी कुंज-शाहिन बाग सड़क बंद है. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, ‘सार्वजनिक जगहों पर ज्यादा दिन तक धरना देना गलत’
नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले करीब 50 दिनों से शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में चल रहे प्रदर्शन पर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की. वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
शाहीन बाग में प्रदर्शन के खिलाफ याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
उच्चतम न्यायालय सोमवार (10 फरवरी) को शाहीन बाग में प्रदर्शनों के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई करेगा। वकील अमित साहनी ने अर्जी दायर की है.
शाहीनबाग में जारी प्रदर्शनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका पर सुनवाई थोड़ी देर में शुरू होगी
CAA और NRC के खिलाफ शाहीन बाग में प्रदर्शन जारी है. वकील अमित साहनी ने इसके खिलाफ याचिका दायर की है.
सड़क को अनिश्चितकाल के लिए नहीं कर सकते बंद, लेकिन दूसरा पक्ष सुनने के बाद फैसला-शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली के शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन के खिलाफ वकील अमित साहनी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई…
Shaheen Bagh प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा – अनंतकाल तक नहीं हो सकता प्रदर्शन
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली का शाहीन बाग केंद्र बन चुका है 58 दिनों से वहां प्रदर्शन जारी है. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
शाहीनबाग पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, प्रदर्शन के नाम पर रास्ता बंद नहीं किया जा सकता
शाहीनबाग में नागरिकता कानून के खिलाफ जारी धरना प्रदर्शन हटाने की मांग वाली वकील अमित साहनी की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
शाहीन बाग प्रदर्शन के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, 10 फरवरी को होगी सुनवाई
इस प्रदर्शन के कारण 55 दिन से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग का रास्ता बंद है। Adv Amit Sahni ने इसके खिलाफ याचिका दायर की है.
शाहीन बाग धरना- प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, याचिकाकर्ताओं की रास्ता खुलवाने की मांग
शाहीन बाग धरना- प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, याचिकाकर्ता एडवोकेट अमित साहनी की रास्ता खुलवाने की मांग
शाहीन बाग में धरना को हटाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अब सोमवार को करेगा सुनवाई
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में करीब दो महीने से शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी, लेकिन अब यह सुनवाई सोमवार को होगी. वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट में शाहीन बाग पर अहम सुनवाई आज
दिल्ली का चुनाव जिस शाहीन बाग के इर्द गिर्द घुमता रहा है उस पर अभी भी घमासान जारी है. चुनाव खत्म हो चुके है लेकिन शाहीन बाग की सड़क अभी भी बंद है. वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी सड़क बंद नहीं कर सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने का अनुरोध करने वाली वकील अमित साहनी एवं अन्य की याचिकाओं पर केन्द्र, दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी किये.
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट बोला, प्रदर्शन के लिए सड़क जाम नहीं कर सकते
India News: शाहीन बाग मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी सार्वजनिक जगह पर अनंतकाल तक प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है. वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
खत्म होगा शाहीन बाग प्रदर्शन, खुलेगा रास्ता? SC में सोमवार को सुनवाई
दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन के कारण दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाली सड़क को खोलने को लेकर वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा.
Shaheen Bagh प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली 55 दिनों से बंद रास्ता खोलने की है मांग
दिल्ली के शाहीनबाग में पिछले 55 दिनों से सीएएएनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी ने याचिका दायर की है.
शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी सड़क बंद नहीं कर सकते हैं- सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली के शाहीनबाग में एक महीने से ज्यादा समय से सीएए और एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन हो रहा है. वकील अमित साहनी ने रास्ता खुलवाने को लेकर याचिका दायर की है.
शाहीन बाग पर SC ने कहा-इस तरह रास्ता नहीं रोक सकते
कालिंदी कुंज-शाहीन बाग रोड बंद होने के खिलाफ दायर याचिका पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की थी.
Shaheen Bagh protest: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रदर्शनकारी इस तरह नहीं घेर सकते सड़क
Shaheen Bagh protest दक्षिण दिल्ली के शाहीन बाग में 15 दिसंबर से चल रहे प्रदर्शन के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. वकील अमित साहनी ने इस बारे में याचिका दायर है.
शाहीन बाग धरना: कोरोना वायरस के फैलने की आशंका के कारण धरने को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे विरोध प्रदर्शन को हटाने के लिए अर्जी दायर की गई है.
Breaking News: शाहीन बाग में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी और बढ़ाई गई
शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में सोमवार तड़के करीब 3 बजकर 15 मिनट से प्रदर्शन स्थल के बाहर कालिंदी कुंज रोड पर भारी संख्या में पुलिस बल और अर्धसैनिक बल तैनात हैं. बता दें कि रविवार सुबह से ही धारा 144 लागू है और किसी भी प्रकार के धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा हुआ है. वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की थी.
Breaking News: शाहीन बाग में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी और बढ़ाई गई
कोर्ट वकील अमित साहनी व भाजपा नेता नंद किशोर गर्ग की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है. साहनी व गर्ग ने अपनी याचिका में शाहीनबाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की है.
Breaking News: शाहीन बाग में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी और बढ़ाई गई
शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में सोमवार तड़के करीब 3 बजकर 15 मिनट से प्रदर्शन स्थल के बाहर कालिंदी कुंज रोड पर भारी संख्या में पुलिस बल और अर्धसैनिक बल तैनात हैं. बता दें कि रविवार सुबह से ही धारा 144 लागू है और किसी भी प्रकार के धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा हुआ है. वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की है.
Breaking News: शाहीन बाग में आज से धारा 144 लागू, भारी पुलिस बल तैनात
दिल्ली पुलिस ने शाहीन बाग में धारा 144 लागू कर दी है. बता दें शाहीन बाग में पिछले 77 दिनों से सीएए विरोधी आंदोलन चल रहा है और प्रदर्शनकारियों एक सड़क पर बैठे हुए हैं. वकील अमित साहनी ने इस बाबत याचिका दायर की है.
दिल्ली पुलिसकर्मियों की वर्दी पर लगाए जाएं कैमरे, उप राज्यपाल को लिखा गया पत्र
वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से इस बाबत दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल को खत लिखा गया है. उन्होंने पत्र में लिखा, इसी वर्ष मुखर्जी नगर पुलिस स्टेशन के सामने पुलिसकर्मी द्वारा ऑटो ड्राइवर को उसके बेटे सामने बेरहमी से पीटे जाने की घटना के बाद चिंता जाहिर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था. उनकी तरफ से हाईकोर्ट से दरख्वास्त की गई थी कि पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए उनकी वर्दी पर कैमरे लगाने और हिंसक व आकस्मिक स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए उचित उपकरणों की खरीद करने की आवश्यकता है, ताकि कानून का उल्लंघन करने वालों पर काबू पाया जा सके और जीवन की हानि व मुकदमेबाजी को कम किया जा सके
सुझाव / जनता से पुलिस के व्यवहार की निगरानी के लिए पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं-दिल्ली हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा।
दिल्ली हाईकोर्ट का सुझाव- जनता से पुलिस के व्यवहार की निगरानी के लिए पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस से दिशा-निर्देशों की मांग की, जिसमें पुलिस के उचित व्यवहार को सुनिश्चित करने और पारदर्शी अभियोजन के लिए पुलिस को बॉडी वॉर्न कैमरा से लैस करने के सुझाव हैं। गौरतलब है कि हाल ही में मुखर्जी नगर में एक टेम्पो ड्राइवर और उसके बेटे की पिटाई के मामले में पुलिस पर अतिरिक्त बल प्रयोग का आरोप लगा था। इसके मद्देनजर एक याचिका पर सोमवार को कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
मुखर्जी नगर मामला : पुलिस के लिए बॉडी कैमरे का सुझाव
एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दिए गए सुझाव पर विचार करने और उस पर फैसला लेने के लिए कहा। अदालत ने हालांकि यह भी साफ किया कि वह अधिकारियों को कोई निर्देश नहीं दे रही है, वे वकील के सुझावों को मानने या न मानने के लिए फ्री हैं। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने संबंधित याचिका का निपटारा कर दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- पुलिसकर्मियों के कन्धों पर लगाए जाएँ कैमरे, पता चल सके इनका.?
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
दिल्ली में बिगड़ी कानून-व्यवस्था संबंधी याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई आज
मुखर्जीनगर से संबंधित एक याचिका निपटाई
हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर मारपीट मामले में दायर याचिका का निबटारा करते हुए दिल्ली पुलिस को याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में अधिवक्ता अमित साहनी ने पुलिस को अत्यधिक बल प्रयोग न करने का निर्देश देने की मांग की थी।
हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर मारपीट मामले में दायर याचिका का निबटारा करते हुए दिल्ली पुलिस को याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में अधिवक्ता अमित साहनी ने पुलिस को अत्यधिक बल प्रयोग न करने का निर्देश देने की मांग की थी।
पुलिसकर्मियों के कंधे पर कैमरे लगाए जाएं-दिल्ली हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी के रिप्रेजेंटेशन पर विचार करते हुए निर्णय लेने को कहा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह किसी प्रकार का निर्देश नहीं दे रहा।
मेंटल हेल्थकेयर कानून लागू करने को जनहित याचिका
अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि संसद ने यह कानून 7 अप्रैल 2017 को पारित किया था। केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना 29 मई 2018 को जारी कर दी थी। इतना समय बीतने के बाद भी यह कानून राजधानी में अब तक लागू नहीं किया गया है। इस याचिका में दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस व दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी पक्षकार बनाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि राजधानी में कानून लागू करने, राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी, जिला मेंटल हैल्थ रिव्यू बोर्ड बनाने तथा इसके अन्य प्रावधान लागू करने का निर्देश दिया जाए। याची का कहना है कि मानसिक बीमारियों को लेकर भारतीय समाज की सोच बेहद खराब है। इस कारण इससे पीड़ित लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव झेलना पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून लागू करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर
याचिकाकर्ता वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिए जाने का आग्रह किया कि राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और जिला मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड का गठन करे तथा कानून के प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से लागू करे। याचिका में कहा गया है, ‘‘मानसिक रूप से अस्वस्थ अधिकतर लोग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं या उचित चिकित्सा मिलने पर समाज में रहने योग्य हो जाते हैं। मानसिक बीमारी के साथ जुड़े सामाजिक कलंक के कारण जीवन के हर मोड़ पर उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।’’ इसमें कहा गया है कि मानसिक समस्या तब बढ़ जाती है जब पीड़ित लोगों को न केवल समाज की तरफ से, बल्कि परिवार, दोस्तों और नियोक्तओं की ओर से भी भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।
मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के सम्मान अधिकार-मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 को लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017,जो 29 मई 2018 से लागू हुआ था,के शुरूआती पैराग्राफ में वर्णित किया गया है,”मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं देने वाला अधिनियम और ऐसे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाएं देते समय या इससे जुड़े मामलों में उनके अधिकारों की रक्षा करने,उनके अधिकारों को बढ़ावा देने और उन्हें पूरा करना।”
मानसिक स्वास्थ्य कानून लागू करने संबंधी याचिका पर उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार, पुलिस से जवाब मांगा
याचिका दायर करने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अनुरोध किया है कि दिल्ली सरकार को राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और जिला मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड के गठन का और कानून के प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया जाए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों पर लेन-देन के लिए OTP की अनिवार्यता की मांग करने वाली PIL खारिज की
याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों पर लेनदेन के लिए ओटीपी की आवश्यकता को अनिवार्य करने से बड़े पैमाने पर जनता के साथ धोखा करने की घटनाओं को रोका जा सकेगा। उन्होंने कहा था कि भुगतान गेटवे जो भारत में संचालित नहीं हैं, उनके लिए ओटीपी प्रमाणीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है। कार्ड खोने की स्थिति में यह ग्राहक को असुरक्षित बनाता है।
दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में किया गया दावा, नियमित रूप से नहीं हो रही SRB बैठकें
दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक बोर्ड की बैठकें करने के लिए हाई कोर्ट के निर्देश का अनुपालन कथित तौर पर नहीं करने को लेकर उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई की याचिका में मांग की गई है। अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी बैठकें हर तिमाही होनी चाहिए।
एसआरबी बैठकें नियमित रूप से नहीं हो रही: अदालत में दायर याचिका में दावा
अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी बैठकें हर तिमाही होनी चाहिए।
एसआरबी की बैठकों से जुड़े आदेश की अनदेखी का मांगा जवाब
एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने दावा किया कि 2018 की दिल्ली जेल नियमावली के मुताबिक एसआरबी की मीटिंग हर तीन महीने में होनी चाहिए। उन्होंने याचिका में कहा है कि हाई कोर्ट ने पिछले साल 21 अक्टूबर को एसआरबी को जेल नियमावली के मुताबिक बैठकें करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक अक्टूबर के आदेश के बाद से अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
हर तीन माह में जरूर हो सजा समीक्षा बोर्ड की बैठक: हाईकोर्ट
पेश जनहित याचिका दायर कर अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा था कि एसआरबी के 16 जुलाई 2004 के आदेश व दिल्ली जेल नियम 2018 के अनुसार बोर्ड की बैठक तिमाही में कम से कम एक बार होनी चाहिए लेकिन अक्तूबर 2018 से अक्तूबर 2019 के बीच बोर्ड ने केवल 19 जुलाई 2019 को एक ही बैठक की है।
हर तीन महीने में सजा समीक्षा बोर्ड की बैठक के लिए जनहित याचिका दायर
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ सोमवार को सुनवाई कर सकती है। एसआरबी का गठन आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की सजा की समीक्षा करने और उपयुक्त मामलों में समय से पहले रिहाई के बारे में सिफारिशें करने के लिए किया गया था।याचिका में कहा गया है कि बोर्ड की बैठक नहीं होने से उन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है जो विचार के लिए जरूरी सभी मापदंडों को पूरा करते हैं लेकिन उनके मामलों पर विचार नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने चार अक्टूबर को अधिकारियों को एक ज्ञापन दिया और एसआरबी आदेश और जेल नियमावली को लागू करने का अनुरोध किया। यह सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया है कि बोर्ड की बैठक बिना किसी रूकावट के हर तीन महीने में बुलाई जाए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने अभी तक ज्ञापन का कोई जवाब नहीं दिया है।
कैदियों से मुलाकात की प्रक्रिया को ऑनलाइन करेगा तिहाड़ प्रशासन, HC को दिया हलफनामा
जेल में बंद कैदियों के मानवाधिकारों को लेकर लगाई गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ प्रशासन से पूछा है कि कैदियों को उनके वकीलों से मुलाकात को आसान बनाने के लिए प्रशासन ऑनलाइन सिस्टम को कब तक लागू करने जा रहा हैदरअसल. साल 2014 एडवोकेट अमित साहनी की एक याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि कैदियों से मिलने जाने के वक्त वकीलों को काफी संघर्ष करना पड़ता है.
कैदी से वकीलों की मुलाकात पर नई बंदिशों को चुनौती
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : तिहाड़ जेल में बंद कैदियों से मुलाकात के लिए जाने वाले वकीलों को पेश आ रही समस्याओं को लेकर एक अधिवक्ता अमित साहनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बीडी अहमद व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार व तिहाड़ जेल प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
एफआइआर में फारसी व उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने का विरोध
वकील अमित साहनी की ओर से दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एफआइआर व बयान दर्ज करने में पुलिस पुराने जमाने की भाषा इस्तेमाल करती है। जिससे एफआइआर दर्ज कराने वाले और आरोपी दोनों को भाषा समझने में परेशानी होती है। याचिका में यह भी कहा गया है कि पुलिस को प्रशिक्षण के दौरान ये भाषाएं सिखाई जाती हैं। ये न सिर्फ पुलिस अधिकारियों के लिए बोझिल हैं, बल्कि न्यायिक अधिकारियों और वकीलों के लिए भी उन्हें समझना कठिन है। इनकी जगह ¨हदी व अंग्रेजी भाषा इस्तेमाल की जानी चाहिए।
कार्यवाही से प्राचीन शब्दों को निकालने का दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में किया विरोध
दिल्ली पुलिस ने थानों के रोज की कार्यवाही में फारसी और उर्दू के पुराने और कठिन शब्दों की जगह हिन्दी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल के निर्देश के लिए दायर याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट में विरोध किया है।
दिल्ली पुलिस के वकील अमित साहनी ने जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। याचिका के अनुसार यह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के लिए भी कठिन है क्योंकि उन्हें ही नहीं बल्कि आरोपियों और उनके वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को भी पुलिस कार्यवाही समझने के लिये उर्दू और फारसी शब्दों को सीखना पड़ता है।
दिल्ली पुलिस के वकील अमित साहनी ने जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। याचिका के अनुसार यह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के लिए भी कठिन है क्योंकि उन्हें ही नहीं बल्कि आरोपियों और उनके वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को भी पुलिस कार्यवाही समझने के लिये उर्दू और फारसी शब्दों को सीखना पड़ता है।
…जब पुलिसिया कामकाज में इस्तेमाल कठिन शब्दों के खिलाफ हाईकोर्ट में लगी अर्जी
एडवोकेट अमित साहनी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस अपने पुलिस स्टेशनों में होने वाले दैनिक कामकाज, एफआईआर, गवाहों के बयान दर्ज करने और अदालत में दाखिल चालान समेत अन्य कागजी कामों में काफी प्राचीन और कठिन उर्दू एवं पारसी शब्दों का इस्तेमाल करती है। इन्हें समझने में न केवल आम लोगों बल्कि वकीलों को भी बेहद दिक्कत आती है, लिहाजा इन्हें पुलिस की शब्दावली से हटाया जाए और इनकी जगह हिंदी और अंग्रेजी के सरल शब्दों को इस्तेमाल करने का निर्देश पुलिस विभाग को दिया जाए।
पुलिस कार्यवाही से पुराने शब्दों को निकाले जाने विरोध
Delhi Samachar: दिल्ली पुलिस ने थानों के दैनिक कार्यों में फारसी और उर्दू के प्राचीन तथा कठिन शब्दों के स्थान पर हिंदी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल के निर्देश के लिए दायर याचिका का दिल्ली उच्च न्यायालय में विरोध किया है।
दिल्ली पुलिस ने वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। इस याचिका में कहा गया है कि यहां पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में पुलिसकर्मियों को उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
दिल्ली पुलिस ने वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। इस याचिका में कहा गया है कि यहां पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में पुलिसकर्मियों को उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
एफआइआर में फारसी व उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने का विरोध
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में जवाब दायर कर एफआइआर और पुलिस की कार्रवाई में फारसी और उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने की मांग का विरोध किया है। पुलिस ने अपने जवाब में कहा है कि एफआइआर दर्ज करने के लिए जो भाषा इस्तेमाल की जाती है वह प्राचीन नहीं है। हर व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकता है। वकील अमित साहनी की ओर से दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एफआइआर व बयान दर्ज करने में पुलिस पुराने जमाने की भाषा इस्तेमाल करती है। जिससे एफआइआर दर्ज कराने वाले और आरोपी दोनों को भाषा समझने में परेशानी होती है।
हाई कोर्ट ने हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर मांगा सरकार का जवाब, 15 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
दिल्ली हाई कोर्ट ने यात्रियों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है। वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
एयरलाइंस के मनमाने किराये पर लग सकती है रोक
किराये की अधिकतम सीमा तय किये जाने से कारोबार में पारदर्शिता आएगी और जवाबदेही तय की जा सकेगी इससे पहले वकील अमित साहनी ने भी एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें अदालत से हवाई किराये की सीमा तय करने एवं निजी एयरलाइंस को हवाई यात्राा के लिए मनमाने तरीके से किराया वसूलने पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया था.
हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा सरकार का जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है. उल्लेखनीय है कि सीनियर लॉयर अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है, जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाई किराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
उच्च न्यायालय ने हवाई किराये की सीमा तय करने की मांग पर मंागा सरकार का जवाब
नयी दिल्ली, 23 अप्रैल :भाषा: दिल्ली उच्च न्यायालय ने विमान यात्राा करने वालों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराये की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है।
वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्राा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिदर्ेश तय करने का निदर्ेश देने का आग्रह किया गया है।
वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्राा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिदर्ेश तय करने का निदर्ेश देने का आग्रह किया गया है।
हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा सरकार का जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने विमान यात्रा करने वालों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है. केंद्र सरकार के वकील ने अदालत में कहा कि हवाई किराया विमानन नियामक नागर विमानन निदेशालय के नियंत्रण के बाहर है. उल्लेखनीय है कि सीनियर लॉयर अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है, जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाई किराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
सरचार्ज पर हाई कोर्ट ने आरबीआइ से किया जवाब-तलब
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनेदेन पर अधिभार (सरचार्ज) लगाने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है। याची ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए है। अब लेनदेन मात्र क्रेडिट व डेबिट कार्ड से ही रह गया है। ऐसे में सरचार्ज लगाना अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। यह सरकार का मनमाना व भेदभावपूर्ण रवैया है।
सरचार्ज पर हाई कोर्ट ने आरबीआइ से किया जवाब-तलब
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनेदेन पर अधिभार (सरचार्ज) लगने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का जवाब मांगा, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाया गया अधिशुल्क अवैध तथा भेदभावकारी है. याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, ‘क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है’. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई ‘नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं’. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे ‘गैर कानूनी’ और ‘भेदभावकारी’ अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘लाभकारी’ है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है’. इसमें कहा गया, ‘मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्र हित में है’.
याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, ‘क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है’. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई ‘नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं’. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे ‘गैर कानूनी’ और ‘भेदभावकारी’ अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, ‘क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है’. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई ‘नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं’. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे ‘गैर कानूनी’ और ‘भेदभावकारी’ अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
HC सख्त, वित्त मंत्रालय और RBI से पूछा-कार्ड पेमेंट पर सरचार्ज क्यों ?
डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर लगने वाले सरचार्ज के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। मंगलवार को कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा। हाई कोर्ट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को नोटिस भेजकर 19 अगस्त तक जवाब देने को कहा है।
कार्ड से भुगतान पर लगता है 2.5 फीसदी तक सरचार्ज
-कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार की रोक के बावजूद डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज लिए जा रहे हैं।
-इसमें कहा गया है कि अभी भी खुदरा दुकानदार कार्ड से भुगतान करने पर 2.5 फीसदी तक सरचार्ज वसूलते हैं।
-नगद भुगतान पर इस तरह का कोई सरचार्ज नहीं लिया जाता है।
बने गाइडलाइन
-मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई की।
कार्ड से भुगतान पर लगता है 2.5 फीसदी तक सरचार्ज
-कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार की रोक के बावजूद डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज लिए जा रहे हैं।
-इसमें कहा गया है कि अभी भी खुदरा दुकानदार कार्ड से भुगतान करने पर 2.5 फीसदी तक सरचार्ज वसूलते हैं।
-नगद भुगतान पर इस तरह का कोई सरचार्ज नहीं लिया जाता है।
बने गाइडलाइन
-मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई की।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा / डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
डेबिटऔर क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और रिजर्व बैंक से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया। एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका में कहा कि नोट बंद करना ठीक है। पर जब कोई नगद भुगतान करता है तो उसे कोई सरचार्ज नहीं देना पड़ता। लेकिन वह भुगतान क्रेडिट या डेबिट कार्ड से करता है तो 2.5% या इससे अधिक सरचार्ज लगता है। इससे नगद लेनदेन और अंतत: कालेधन को बढ़ावा मिलता है।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा / डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया। एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका में कहा कि नोट बंद करना ठीक है। पर जब कोई नगद भुगतान करता है तो उसे कोई सरचार्ज नहीं देना पड़ता। लेकिन वह भुगतान क्रेडिट या डेबिट कार्ड से करता है तो 2.5% या इससे अधिक सरचार्ज लगता है। इससे नगद लेनदेन और अंतत: कालेधन को बढ़ावा मिलता है। अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘लाभकारी’ है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है’.
HC ने प्लास्टिक कार्ड पर सरचार्ज को लेकर केंद्र, RBI से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज ‘अवैध’ और ‘भेदभावपूर्ण’ है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा है कि सरचार्ज वसूलना न सिर्फ अवैध है, बल्कि यह कैश में काले धन के प्रवाह को भी बढ़ावा देता है। दायर याचिका में कहा गया है कि भारत दुनिया में सबसे कैश-इंटेंसिव इकनॉमीज में से एक है और यहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से होने वाले ट्रांजैक्शंस को बढ़ाने और कैश ट्रांजैक्शंस को हतोत्साहित करने की तत्काल आधार पर जरूरत है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर केंद्र, RBI तलब
एडवोकेट अमित साहनी के दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला लाभकारी है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिये लेनदेन पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।’ इसमें कहा गया, ‘मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्रहित में है।’ याचिका के मुताबिक, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई नियम दिशा-निर्देश बनाने और देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे ‘गैर कानूनी’ और ‘भेदभावकारी’ अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके।
कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज वसूलना है गैरकानूनी | Lion Express
नई दिल्ली। डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर लगने वाले सरचार्ज के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। हाई कोर्ट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को नोटिस भेजकर 19 अगस्त तक जवाब देने के लिए कहा है। रोकने के लिए बने गाइडलाइन
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वित्त मंत्रालय और और आरबीआई से शपथपत्र देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के शपथपत्र देने के बाद कार्ड से भुगतान पर गैरकानूनी सरचार्ज को रोकने के लिए गाइडलाइन तैयार करें।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वित्त मंत्रालय और और आरबीआई से शपथपत्र देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के शपथपत्र देने के बाद कार्ड से भुगतान पर गैरकानूनी सरचार्ज को रोकने के लिए गाइडलाइन तैयार करें।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि जनहित याचिकाएं देश की आर्थिक नीतियों को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकती। हाई कोर्ट में क्रेडिट कार्ड व डेबिट कार्ड से ट्रांजेक्शन किए जाने पर लगने वाले सरचार्ज को चुनौती दी गई थी। आरबीआइ का कहना है कि इस जनहित याचिका में उठाया गया मुद्दा सीधे तौर पर देश की आर्थिक नीति को चुनौती दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है कि एक आम नागरिक के पास ऐसे मामलों में जनहित याचिका लगाने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट के समक्ष यह याचिका वकील अमित साहनी ने लगाई थी।
हाईकोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन पर अधिभार लगाने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने कहा कि हमने इस मुद्दे पर पहले ही अगस्त माह में आरबीआई व वित्त मंत्रालय को इस मामले में निर्णय लेकर याचिकाकर्ता को सूचित करने का निर्देश दिया था।
बावजूद अभी तक जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता से कहा कि सरकार से पूछकर अपना पक्ष रखे। अदालत ने मामले की सुनवाई 4 जनवरी 2017 तय की है।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
बावजूद अभी तक जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता से कहा कि सरकार से पूछकर अपना पक्ष रखे। अदालत ने मामले की सुनवाई 4 जनवरी 2017 तय की है।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन पर अधिभार लगाने केंद्र व आरबीआई से जवाब तलब
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई देशभर के बैंकों पर निगरानी के लिए दिशा निर्देश व नियम तय करते हैं। ऐसे में उन्हें क्रेडिट-डेबिट कार्ड से लेनदेन पर शुल्क लगाने पर रोक लगाने का निर्देश दिया जाए।
उन्होंने कहा अधिभार लगाना न केवल अवैध और भेदभावपूर्ण है बल्कि यह नगद में काले धन का प्रचलन को बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आम रूप से देखा गया है कि क्रेडिट व डेबिट से लेनदेन पर बैंक 2.5 प्रतिशत तक का लेवी अधिभार लगा रहे हैं। इस तरह का सरचार्ज नहीं लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा अधिभार लगाना न केवल अवैध और भेदभावपूर्ण है बल्कि यह नगद में काले धन का प्रचलन को बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आम रूप से देखा गया है कि क्रेडिट व डेबिट से लेनदेन पर बैंक 2.5 प्रतिशत तक का लेवी अधिभार लगा रहे हैं। इस तरह का सरचार्ज नहीं लगाया जाना चाहिए।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज ‘अवैध’ और ‘भेदभावपूर्ण’ है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। बेंच ने कहा, ‘प्रतिवादियों (फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक) को सुनवाई की अगली तारीख चार जनवरी 2017 से पहले निर्देश मिलेगा।’ एडवोकेट अमित साहनी की तरफ से दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘लाभकारी’ है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए ट्रांजैक्शंस पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।’
कार्डावरील अधिभाराला न्यायालयाचा आक्षेप
विनारोकड व्यवहारांमध्ये महत्त्वाची भूमिका बजावणाऱ्या डेबिट अथवा क्रेडिट कार्डच्या वापरावर बेकायदा अधिभार वसूल करण्याच्या पद्धतीवर दिल्ली उच्च न्यायालयाने आक्षेप घेतला आहे. यासंदर्भात न्यायालयाने केंद्र सरकार आणि रिझर्व्ह बँकेकडून खुलासा मागवला आहे. अॅड. अमित साहनी असे याचिका दाखल करणाऱ्याचे नाव आहे. ‘कॅशलेस पेमेंटच्या संदर्भात मार्गदर्शक तत्त्वे जारी करण्याची जबाबदारी अर्थ मंत्रालय आणि रिझर्व्ह बँकेची आहे. कार्ड पेमेंटवर सरचार्ज वसूल करणे बेकायदा नसले तरी, अशा कृत्यांमुळे कॅशलेस व्यवहारांना फाटा देऊन काळ्या पैशाच्या निर्मितीला प्रोत्साहन देण्याचा हा प्रकार आहे,’ असे अॅड. साहनी यांनी याचिकेत नमूद करण्यात आले आहे. आज देशभरात रोख खरेदी करण्याला प्राधान्य देण्यात येत आहे. त्यामुळे कॅशलेस व्यवहार बाजूला पडत असल्याची खंतही अॅड. साहनी यांनी व्यक्त केली.
डेबिट, क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर अधिभार के खिलाफ न्यायालय में याचिका
दिल्ली उच्च न्यायालय में डेबिट और क्रेडिट कार्डों के जरिये किए जाने वाले भुगतान पर लगने वाले अधिभार के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है। नकद भुगतान की स्थिति में ऐसा कोई अधिभार नहीं लगाया जाता। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये पेट्रोल मूल्य का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना बर्ताव देखने को मिलता है। इस याचिका की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाली पीठ कर सकती है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड के जरिये भुगतानों पर लगाए जाने वाले गैरकानूनी और भेदभाव वाले अधिभार को रोकने के लिए दिशानिर्देश तय करने की दिशा में उचित कदम उठाने के निर्देश वित्त मंत्राालय और भारतीय रिजर्व बैंक को दिए जाएं। याचिका में कहा गया है कि नकद भुगतान करने की स्थिति में ऐसा कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर चार्ज को लेकर हाई कोर्ट ने केंद्र-आरबीआई से मांगा जवाब
जनहित याचिका में डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाए गए अधिशुल्क को ‘अवैध’ तथा ‘भेदभावकारी’ बताया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज ‘अवैध’ और ‘भेदभावपूर्ण’ है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। बेंच ने कहा, ‘प्रतिवादियों (फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक) को सुनवाई की अगली तारीख चार जनवरी 2017 से पहले निर्देश मिलेगा।’ एडवोकेट अमित साहनी की तरफ से दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘लाभकारी’ है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए ट्रांजैक्शंस पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।’
डेबिट-क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर सरचार्ज पर केंद्र से मांगा जवाब
डेबिट व क्रेडिट कार्ड से लेनदेन करने पर सरचार्ज लिए जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व न्यायमूर्ति जयंतनाथ की खंडपीठ ने मामले में केंद्र सरकार (वित्त मंत्रालय) व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी। याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है। अमित के अनुसार देश में नकद भुगतान पर सरचार्ज नहीं लिया जाता है, जबकि क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन करने पर 2.5 फीसद या इससे अधिक दर के हिसाब से सरचार्ज लिया जाता है। ऐसे में काले धन को नकद इस्तेमाल करने की तरफ बढ़ावा मिलेगा। यह गैरकानूनी है। यह नकद व कार्ड से लेन-देन करने वाले लोगों के साथ भेदभाव है। अदालत इसके खिलाफ दिशानिर्देश बनाने का निर्देश जारी करे। वित्त मंत्रालय देशभर में इस पर निगरानी रखे।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर अधिशुल्क को लेकर केंद्र से जवाब मांगा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका पर केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का जवाब मांगा जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाया गया अधिशुल्क ‘‘अवैध’’ तथा ‘‘भेदभावकारी’’ है। अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘‘लाभकारी है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।’’ इसमें कहा गया, ‘‘मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्र हित में है।’’ याचिका में कहा गया है, ‘‘क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है।’’
डेबिट, क्रेडिट कार्डच्या अधिभाराविरोधात याचिका
नवी दिल्ली- देशात डेबिट, क्रेडिट कार्डच्या सहाय्याने व्यवहार करणा-यांना अडीच टक्के अधिभार द्यावा लागतो. हा अधिभार अन्यायकारक असून तो रद्द करण्याच्या मागणीसाठी दिल्ली उच्च न्यायालयात याचिका दाखल करण्यात आली आहे.
वकील अमित साहनी यांनी उच्च न्यायालयात जनहित याचिका दाखल केली आहे. क्रेडिट व डेबिट कार्डच्या सहाय्याने पेट्रोल भरताना अधिभार लादला जातो. मात्र, रोख रक्कम भरताना कोणतेही शुल्क आकारले जात नाही. हा ग्राहकांवर अन्याय असल्याचे याचिकादाराचे म्हणणे आहे.
वकील अमित साहनी यांनी उच्च न्यायालयात जनहित याचिका दाखल केली आहे. क्रेडिट व डेबिट कार्डच्या सहाय्याने पेट्रोल भरताना अधिभार लादला जातो. मात्र, रोख रक्कम भरताना कोणतेही शुल्क आकारले जात नाही. हा ग्राहकांवर अन्याय असल्याचे याचिकादाराचे म्हणणे आहे.
ट्रैफिक चालान प्रक्रिया बदलने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा केंद्र और दिल्ली पुलिस से जवाब
नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पुराने मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत मौके पर ही चालान जमा करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की थी कि संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट के चलते लोगों को चालान की राशि जमा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल 2020 को होगी। सुनवाई के दौरान बेंच ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि आप मोटर व्हीकल एक्ट के तहत अपराधों के लिए अधिकारियों को सूचित क्यों नहीं करते हैं, यह हम सभी के फायदेमंद है। वकील अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट 2019 लागू होने के बाद लोगों की परेशानी बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि लालबत्ती जंप या बिना हेलमेट वाहन चलाने पर कटने वाले चटालान के लिए या तो कोर्ट जाना पड़ता है या फिर ऑनलाइन चालानन भरना पड़ता है। जिसमें क्रेडिट या डेबिट कार्ड का प्रयोग करना पड़ता है।
दिल्ली की सीमाओं पर जाम से मुक्ति की मांग को लेकर जनहित याचिका
दिल्ली उच्च न्यायालय में आज एक जनहित याचिका दायर कर दिल्ली की सीमाओं पर यातायात को सुगम बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की गयी है। वहां टोल संग्रहकर्ताओं द्वारा वाणिज्यिक वाहनों को रोकने से भयंकर जाम लग जाता है। अर्जी में कहा गया है कि वाणिज्यिक वाहनों के कर संग्रहण में बिल्कुल कुप्रबंधन है जिससे अन्य वाहनों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की अर्जी में कहा गया है, ‘‘वाणिज्यिक वाहनों से टोल संग्रहण के कारण अन्य वाहनों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, भयंकर जाम लग जाता है, हजारों लोगों का बेशकीमती समय बर्बाद हो जाता है, वायु प्रदूषण और ध्वनि
टोल पर ट्रैफिक स्मूद बने : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने नैशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) और साउथ एमसीडी से कहा कि वे एनसीआर के आसपास के इलाकों में ट्रैफिक के सुचारू संचालन संबंधी अपील पर अपना रुख तय करें। इन इलाकों में टोल कलेक्टर कमर्शल गाड़ियों को रोकते हैं और इससे गाड़ियों की लंबी कतार लग जाती है। बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील अमित साहनी को एनएचएआई और साउथ एमसीडी के सामने अपनी बात रखने का निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया था कि बॉर्डर्स पर कमर्शल गाड़ियों से टोल जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे दूसरी गाड़ियों को भारी समस्या पैदा होती है। याचिकाकर्ता ने इस मामले में एनएचएआई और दिल्ली सरकार को निर्देश दिए जाने की अपील की थी।
दिल्ली की सीमाओं पर जाम से मुक्ति की मांग को लेकर जनहित याचिका – Prabha Sakshi | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय में आज एक जनहित याचिका दायर कर दिल्ली की सीमाओं पर यातायात को सुगम बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की गयी है। वहां टोल संग्रहकर्ताओं द्वारा वाणिज्यिक वाहनों को रोकने से भयंकर जाम लग जाता है। अर्जी में कहा गया है कि वाणिज्यिक वाहनों के कर संग्रहण में बिल्कुल कुप्रबंधन है जिससे अन्य वाहनों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की अर्जी में कहा गया है, ”वाणिज्यिक वाहनों से टोल संग्रहण के कारण अन्य वाहनों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, भयंकर जाम लग जाता है, हजारों लोगों का बेशकीमती समय बर्बाद हो जाता है, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण फैलता है।”
‘गुमशुदा लोगों को मिलाने के लिए आधार कार्ड का हो इस्तेमाल’
गुमशुदा लोगों को उनके परिजनों से मिलाने के मामले में आधार कार्ड विवरण का उपयोग करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर आधार कार्ड विवरण के संबंध में जागरूकता फैलाने का आदेश दिया। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।
याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित और अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें। याचिका में कहा गया कि आधार कार्ड को लेकर काफी चर्चा हुई है और इसकी संवैधानिक वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन यह गुमशुदा लोगों की तलाश में एक बड़ा माध्यम बन सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 के आकड़ों के अनुसार देश में कुल गायब व्यक्ति 5,49,008 हैं और अब भी 3,19,627 का कोई पता नहीं लगा है।
याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित और अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें। याचिका में कहा गया कि आधार कार्ड को लेकर काफी चर्चा हुई है और इसकी संवैधानिक वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन यह गुमशुदा लोगों की तलाश में एक बड़ा माध्यम बन सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 के आकड़ों के अनुसार देश में कुल गायब व्यक्ति 5,49,008 हैं और अब भी 3,19,627 का कोई पता नहीं लगा है।
गुमशुदा लोगों को मिलाने के लिए आधार कार्ड का हो इस्तेमाल : दिल्ली हाईकोर्ट
गुमशुदा लोगों को उनके परिजनों से मिलाने के मामले में आधार कार्ड विवरण का उपयोग करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर आधार कार्ड विवरण के संबंध में जागरूकता फैलाने का आदेश दिया।
मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित व अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें
मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित व अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें
लापता लोगों को आधार के जरिए मिलाने का निर्देश देने की मांग
एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरि शंकर की बेंच ने याचिका पर गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया। याचिका में देशभर में लापता लोगों को उनके परिवार से मिलाने के लिए पहले से ही मौजूद उनके बायोमीट्रिक और आधार डिटेल्स का पता लगाने के संबंध में जनता में जागरुकता पैदा करने का प्रशासन को निर्देश देने की भी मांग की गई है। बेंच ने याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की मांग पर सरकार को इसकी भी रिपोर्ट देने के लिए कहा है कि उसने इस दिशा में अब तक क्या कदम उठाए हैं। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिका में कहा गया है कि लापता लोगों के बायोमीट्रिक और आधार के इस्तेमाल पर केंद्र को उचित और जरूरी निर्देश जारी करने को कहा जाए। इससे लापता बच्चे, बुजुर्ग व्यक्तियों और मानसिक रूप से बीमार लोगों का पता लगाने और किसी भी विभाग द्वारा उन्हें बचाए जाने की स्थिति में उन्हें उनके परिवार से मिलाया जा सकेगा।
गुमशुदा व्यक्ति के ‘आधार’ इस्तेमाल से जुड़ी याचिका पर दिल्ली HC ने केंद्र से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को लापता बच्चों की आधार की जानकारी को इस्तेमाल करने के लिए दायर की गई एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दिल्ली हाईकोर्ट के ऐसा करने के पीछे की मंशा लापता बच्चों, बुजुर्गों और दिव्यांग को ढूंढने और उन्हें उनके परिवार से मिलाने की है। अपनी याचिका में अमित साहनी ने दलील दी थी कि गृह मंत्रालय ने अभी तक इस बात पर जवाब नहीं दिया है। याचिका में यह भी कहा गया कि व्यक्ति के आधार से जानकारी लेने के लिए एक प्रक्रिया का गठन होना चाहिए जिससे उन्हें अपने परिवार के साथ मिलाया जा सके।
याचिका के अनुसार, लापता बच्चे का समय पर मिलने का महत्व केवल तभी समझा जा सकता है जब कोई लापता बच्चा या मां की भावनाओं के साथ सहानुभूति देता है।
याचिका के अनुसार, लापता बच्चे का समय पर मिलने का महत्व केवल तभी समझा जा सकता है जब कोई लापता बच्चा या मां की भावनाओं के साथ सहानुभूति देता है।
अगर आधार से लापता बच्चों का पता लग सकता है तो शवों की पहचान क्यों नहीं? : याचिका – Dainiksaveratimes hindi | DailyHunt
नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय में मंगलवार को दायर की गई एक याचिका में सवाल उठाया गया कि अगर आधार बायोमेट्रिक के इस्तेमाल से लापता बच्चों का पता लगाया जा सकता है तो इसी प्रणाली का प्रयोग मृत व्यक्तियों की पहचान के लिए क्यों नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की एक पीठ ने केंद्र और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यूआईडीएआई से इस आवेदन पर मामले की अगली सुनवाई यानि पांच फरवरी तक जवाब देने को कहा है। यह आवेदन सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील अमित साहनी ने दाखिल करवाया है जिन्होंने अपनी मुख्य याचिका में अज्ञात शवों की पहचान के लिए केंद्र एवं यूएआईडीएआई को आधार बायोमेट्रिक का प्रयोग करने का निर्देश देने की मांग की है।
आधार के जरिये हो अज्ञात शवों की शिनाख्त, UIDAI ने कहा- ऐसा करना तकनीकी-कानूनी रूप से सही नहीं’
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है. नई दिल्ली : भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है.
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है.
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए.
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यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था.
हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है. साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की.
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है.
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए.
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यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था.
हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है. साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की.
यूआईडीएआई ने कहा- आधार के बायोमेट्रिक्स में शव के फिंगरप्रिंट का मिलान संभव नहीं
यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को सोमवार को बताया कि अज्ञात शव की पहचान के लिए आधार बायोमेट्रिक्स का इस्तेमाल संभव नहीं है। यूआईडीएआई ने चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच से कहा कि फिंगरप्रिंट और आईरिस जैसे बायोमेट्रिक का मिलान 1:1 आधार पर किया जाता है और इसके लिए आधार नंबर जरूरी होता है। शव के फिंगरप्रिंट का मिलान 120 लोगों के आधार बायोमेट्रिक डाटा से करना तकनीकी रूप से संभव नहीं है। हाईकोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपील की थी कि कोर्ट केंद्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान करने के लिए बायोमेट्रिक डाटा का इस्तेमाल करने के संबंध में निर्देश दे।
याचिका में कहा गया था कि यूआईडीएआई के पास आधार डाटा है तो उसे एनसीआरबी और राज्यों के साथ शेयर किया जाए, ताकि अज्ञात शवों की पहचान हो सके।
अगर किसी अज्ञात शव के बायोमेट्रिक्स आधार के पास मौजूद हैं, तो उसे तुरंत अधिकारियों को शेयर करने के लिए निर्देश दिए जाएं, ताकि मृतक के परिवारवाले सम्मानपूर्वक शव का अंतिम संस्कार कर सकें।
आधार डाटा बेस का इस्तेमाल कर लापता लोगों का भी पता लगाया जा सकता है, इस संबंध में भी कोर्ट निर्देश दे।
आधार एक्ट के तहत अज्ञात शवों के संबंध में मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का निर्देश दिया जाए, जो एक या दो दिन में मामले का निपटारा करे।
याचिका में कहा गया था कि यूआईडीएआई के पास आधार डाटा है तो उसे एनसीआरबी और राज्यों के साथ शेयर किया जाए, ताकि अज्ञात शवों की पहचान हो सके।
अगर किसी अज्ञात शव के बायोमेट्रिक्स आधार के पास मौजूद हैं, तो उसे तुरंत अधिकारियों को शेयर करने के लिए निर्देश दिए जाएं, ताकि मृतक के परिवारवाले सम्मानपूर्वक शव का अंतिम संस्कार कर सकें।
आधार डाटा बेस का इस्तेमाल कर लापता लोगों का भी पता लगाया जा सकता है, इस संबंध में भी कोर्ट निर्देश दे।
आधार एक्ट के तहत अज्ञात शवों के संबंध में मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का निर्देश दिया जाए, जो एक या दो दिन में मामले का निपटारा करे।
‘शवों की शिनाख्त के लिए आधार का इस्तेमाल व्यावहारिक नहीं’
Delhi Samachar: यूआईडीएआई ने मंगलवार को हाई कोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फरेंसिक कामों के लिए करना कानूनी और तकनीकी रूप से व्यावहारिक नहीं है। यूआईडीएआई ने चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिए करना आधार अधिनियम के खिलाफ है। हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने कोर्ट से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिए किया जा रहा है। इसलिए इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिए भी किया जा सकता है।
आधार बायोमैट्रिक्स से नहीं हो सकती मरे हुए लोगों की पहचान: UIDAI
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केन्द्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान के लिए आधार बायोमैट्रिक्स के इस्तेमाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ से कहा कि फिंगरप्रिंट, आंख की पुतली सहित बायोमैट्रिक्स का मिलान आमने-सामने से किया जाता है और इसके लिए आधार संख्या की जरूरत पड़ती है. अदालत सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केन्द्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान के लिए आधार बायोमैट्रिक्स के इस्तेमाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
शवों की पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल ठीक नहीं:यूआईडीएआई –
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिये करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है। यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमुर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है।
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए। यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है। साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की है।
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए। यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है। साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की है।
बड़ी खबर: UIDAI ने आधार में किया बदलाव, अपनों से मिलने पर इस कारण लगाई रोक – dailyindia
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है. हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है.
एक्सपायर डेट की दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग, केंद्र सरकार को नोटिस
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक्सपायर हो चुकी दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि दवाइयों के स्ट्रिप पर एक्सपायरी डेट लगाने के वर्तमान सिस्टम को बदलने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि दवाइयों के स्ट्रिप में एक्सपायरी डेट बदलकर उसे दोबारा इस्तेमाल कर लिया जाता है। ये करना काफी आसान होता है ।
याचिका में कहा गया है कि आफ्टर शेव लोशन का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट को हटाने में किया जाता है। उसके बाद दवाइयों के स्ट्रिप पर दोबारा नया मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट का स्टांप लगा दिया जाता है। ऐसा करना भले ही मुनाफा कमाने के लिए सही हो लेकिन ये लोगों के स्वास्थ्य के साथ गंभीर धोखा है।
याचिका में कहा गया है कि आफ्टर शेव लोशन का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट को हटाने में किया जाता है। उसके बाद दवाइयों के स्ट्रिप पर दोबारा नया मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट का स्टांप लगा दिया जाता है। ऐसा करना भले ही मुनाफा कमाने के लिए सही हो लेकिन ये लोगों के स्वास्थ्य के साथ गंभीर धोखा है।
नए लेबल लगाकर बाजार में बेची जा रही हैं एक्सपायर हो चुकी दवाइयां,इन्हें खाने से जा सकती है जान – Live India | DailyHunt
New Delhi : दवाओं की मियाद खत्म होने पर उनके उत्पादन और एक्सपायरी की तारीख मिटाकर नये सिरे से उनकी बिक्री को 'गंभीर' करार देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले को देखना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने कहा कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता और अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
एक्सपायर डेट की दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने कहा कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता और अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। अदालत ने कहा, ”यह गंभीर मामला है।” अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
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अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। अदालत ने कहा, ”यह गंभीर मामला है।” अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
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पुरानी दवाओं की बिक्री पर रोक संबंधी याचिका पर जवाब तलब
राजधानी में पुरानी दवाओं की बाजार में बिक्री रोकने की व्यवस्था करने के लिए दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से जवाब मांगा है। जनहित याचिका में कहा गया है कि जिन दवाओं की मियाद खत्म हो चुकी है उन्हें भी दोबारा स्टांप लगाकर बाजार में बेचा जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर चार सप्ताह के भीतर संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 11 मार्च की तारीख तय की गई है।
जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित साहनी का आरोप है कि पुरानी दवाओं को पैकिंग पर कीमत और मियाद की फर्जी स्टांप लगाकर बेचा जा रहा है। इस गोरखधंधे में लगे लोग दवा के लिफाफे से उसके निर्माण की तिथि और मूल्य को स्प्रिट से मिटा देते हैं और उस पर नए तारीख डालकर काफी कीमत पर बाजार में बेच देते हैं।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर चार सप्ताह के भीतर संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 11 मार्च की तारीख तय की गई है।
जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित साहनी का आरोप है कि पुरानी दवाओं को पैकिंग पर कीमत और मियाद की फर्जी स्टांप लगाकर बेचा जा रहा है। इस गोरखधंधे में लगे लोग दवा के लिफाफे से उसके निर्माण की तिथि और मूल्य को स्प्रिट से मिटा देते हैं और उस पर नए तारीख डालकर काफी कीमत पर बाजार में बेच देते हैं।
नए लेबल लगाकर मार्केट में बेची जा रही हैं एक्सपायरी दवाई
दवाओं की मियाद समाप्त होने पर उनके उत्पादन व एक्सपायरी की तारीख मिटाकर नये सिरे से उनकी बिक्री को ‘गंभीर’ करार देते हुए दिल्ली उच्च कोर्ट ने शुक्रवार को बोला कि केंद्र गवर्नमेंट को इस मामले को देखना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने बोला कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता व अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। एडवोकेट अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि खत्म हो जाती है, क्रिमिनल उनकी मूल उत्पादन व अवधि खत्म होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रुक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी! सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से कहा ‘ध्यान दें’
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
पेट्रोल पंप पर ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए दाखिल की है। उन्होंने कहा है कि पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रॉनिक चिप, रिमोट और अपारदर्शी हौज पाइपों से ग्राहकों को ठगा जा रहा है।
पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है। इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता। यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है। विषम नंबर की राशि में तेल लेने वाले थोड़ा बच जाते हैं।
पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है। इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता। यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है। विषम नंबर की राशि में तेल लेने वाले थोड़ा बच जाते हैं।
पेंट्रोल पंप पर ग्राहकों से हो रही धोखाधड़ी पर लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए ये आदेश
इन दिनों देश के कई हिस्सों में पेट्रोल पंपो पर आम जनता के साथ हुई धोखाधड़ी जैसे मामले सामने आ रहे हैं । जिस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर के पेट्रोल पंपों पर हो रही धोखाधड़ी को रोकने के लिए अहम कदम उठाएं । दरअसल अधिवक्ता अमित साहनी ने पीआईएल पर आरोप लगाया कि कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से पेट्रोल भरने या दूसरा तरीका अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं । जिसके बाद अधिवक्ता अमित साहनी के इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की । बता दें कि इस याचिका में यह भी कहा गया है कि, कुछ पोट्रोल पंप पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए पेट्रोल के माप को बढ़ाने और घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ।
ईंधन स्टेशनों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय में याचिका दायर
उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करके देश के कई ईंधन स्टेशनों द्वारा धोखाधड़ी किये जाने का आरोप लगाया गया है और इस संबंध में पारदर्शिता लाने की मांग की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि पेट्रोल पंप मालिक ग्राहकों के साथ ‘व्यवस्थित और संगठित धोखाधड़ी’ कर रहे हैं। याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया है कि पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये उनका उचित नियमन करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा, ‘ईंधन डालने में इस्तेमाल होने वाली काली हौज पाइपों की जगह पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल हो ताकि उपभोक्ता उसके वाहन में डाले जा रहे ईंधन को देख सकें।’’ याचिका में हालांकि कहा गया है कि याचिकाकर्ता के ज्ञापन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
पेट्रोल पंप पर हर दिन होने वाली ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका – Palpal India | DailyHunt
नई दिल्ली. पेट्रोल पंप पर कम माप कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है. यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रॉनिक चिप, रिमोट और अपारदर्शी हौज पाइपों से ग्राहकों को ठगा जा रहा ह… पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है. इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है. वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता. यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है.
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया – Hindnews24x7 | DailyHunt
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रूक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी – 24 Ghante Online | Latest Hindi News
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं. इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए…
पेट्रोल पंप पर ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि पेट्रोल पंप मालिक ग्राहकों के साथ ‘व्यवस्थित और संगठित धोखाधड़ी’ कर रहे हैं। याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया है कि पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये उनका उचित नियमन करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा, ‘ईंधन डालने में इस्तेमाल होने वाली काली हौज पाइपों की जगह पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल हो ताकि उपभोक्ता उसके वाहन में डाले जा रहे ईंधन को देख सकें।’’
पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता और निष्पक्षता का ध्यान दें केंद्र और पेट्रोलियम मंत्रालय- SC
SC ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वो देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं। SC में याचिका दायर करते हुए अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा पेट्रोल पंप पल्स मीटर में ”माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं। गौरतलब है कि जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिए हैं
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया – Khabar India Network
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रूक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी – Ujjawal Prabhat | उज्जवल प्रभात
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली खाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए याचिका में सलाह में दी गई कि पेट्रोल पंपों पर ईंधन वेंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले काली होज़ पाइपों के बदले को पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि उपभोक्ता अपने वाहनों में डाले जाने वाले ईंधन को साफ देख सकें.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि माप के साथ पारदर्शी डिस्पेंसर भी पेट्रोल पंपों पर फ्यूल वेंडिंग मशीन से जोड़ा जाए जिससे ईंधन पहले पारदर्शी डिस्पेंसर में भरा जाए है और फिर पारदर्शी नली के माध्यम से वाहन में भरा जाए.
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए याचिका में सलाह में दी गई कि पेट्रोल पंपों पर ईंधन वेंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले काली होज़ पाइपों के बदले को पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि उपभोक्ता अपने वाहनों में डाले जाने वाले ईंधन को साफ देख सकें.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि माप के साथ पारदर्शी डिस्पेंसर भी पेट्रोल पंपों पर फ्यूल वेंडिंग मशीन से जोड़ा जाए जिससे ईंधन पहले पारदर्शी डिस्पेंसर में भरा जाए है और फिर पारदर्शी नली के माध्यम से वाहन में भरा जाए.
पेंट्रोल पंप पर ग्राहकों से हो रही धोखाधड़ी पर लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए ये आदेश
दरअसल अधिवक्ता अमित साहनी ने पीआईएल पर आरोप लगाया कि कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से पेट्रोल भरने या दूसरा तरीका अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं । जिसके बाद अधिवक्ता अमित साहनी के इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की । बता दें कि इस याचिका में यह भी कहा गया है कि, कुछ पोट्रोल पंप पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए पेट्रोल के माप को बढ़ाने और घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ।
मिली जानकारी के मुताबिक, पेट्रोल पंप पर लगातार हो रही धोखाधड़ी इतनी बढ़ गई है कि, खुद पेट्रोलियम मंत्री ने राज्य सरकार को सलह दी थी कि, सभी पेट्रोल पंप पर औचक निरीक्षण और चिप्स की जांच की जाए। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी थी कि, पारदर्शी डिस्पेंसर को पेट्रोल पंपो से जोड़ा जाए जिससे इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकता है।
मिली जानकारी के मुताबिक, पेट्रोल पंप पर लगातार हो रही धोखाधड़ी इतनी बढ़ गई है कि, खुद पेट्रोलियम मंत्री ने राज्य सरकार को सलह दी थी कि, सभी पेट्रोल पंप पर औचक निरीक्षण और चिप्स की जांच की जाए। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी थी कि, पारदर्शी डिस्पेंसर को पेट्रोल पंपो से जोड़ा जाए जिससे इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकता है।
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया – Hindnews24x7 | DailyHunt
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
पेट्रोल पंप पर पारदर्शिता को लेकर दायर की याचिका
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। वकील अमित साहनी ने याचिका में दावा किया है कि कई पैट्रोल पंप मालिक उपभोक्ताओं के साथ सुव्यवस्थित और संगठित ढंग धोखाधड़ी कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता में कहा गया है कि याचिकाकर्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न खबरों, राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर दिखाए गए वीडियों और यूट्यूब समेत सोशल मीडिया वेबसाइट पर मौजूद वीडियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आया है। इन मीडिया माध्यमों से स्पष्ट है कि पेट्रोल पंपों पर गड़बड़ी की जा रही है। ऐसे में पेट्रोल पंपो पर अधिक पारदर्शिता बनाए जाने जरूरत है।
याचिकाकर्ता में कहा गया है कि याचिकाकर्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न खबरों, राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर दिखाए गए वीडियों और यूट्यूब समेत सोशल मीडिया वेबसाइट पर मौजूद वीडियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आया है। इन मीडिया माध्यमों से स्पष्ट है कि पेट्रोल पंपों पर गड़बड़ी की जा रही है। ऐसे में पेट्रोल पंपो पर अधिक पारदर्शिता बनाए जाने जरूरत है।
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नई जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजधानी की आप सरकार और उपराज्यपाल से जवाब मांगा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि नई जेल नियमावली पर उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली। उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है। याचिका में दावा किया गया, ‘‘पिछले नियमों के विपरीत, डीपीआर, 2018 की शुरुआती पंक्तियों में न तो उपराज्यपाल से मंजूरी का जिक्र है और ना ही इसमें यह बात कही गई है कि भविष्य में उपराज्यपाल द्वारा इस संबंध में जारी अधिसूचना के बाद ये नियम लागू होंगे।’’
नयी जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को अदालत में चुनौती दी गयी
दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को एक याचिका सुनवाई के लिए आयी जिसमें नयी जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए आरोप लगाया गया है कि इस मामले में उपराज्यपाल से अनुमति नहीं ली गयी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति मनोज ओहरी की पीठ ने कहा कि इस याचिका की प्रकृति जनहित याचिका की है। पीठ ने इसे उचित पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली जेल नियमावली (डीपीआर) 2018 के लिए उपराज्यपाल से अनुमति नहीं मांगी है और इससे यह ‘‘असंवैधानिक’’ हो जाती है। याचिका में दावा किया गया है कि डीपीआर कानून के अनुसार गलत है और यह रद्द किए जाने के लायक है।
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की।अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
नई जेल नियमावली को चुनौती : हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार, एलजी से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने नई जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजधानी की 'आप' सरकार और उपराज्यपाल से जवाब मांगा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि नई जेल नियमावली पर उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए.जे. भंभानी की बैंच ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए.जे. भंभानी की बैंच ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की।
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
नए जेल मैनुअल को चुनौती पर नोटिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने नए जेल मैनुअल की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आप सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) से जवाब मांगा है। याचिका में आरोप है कि नई जेल नियमावली (मैनुअल) पर एलजी की मंजूरी नहीं ली गई। चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भंभानी की बेंच ने अथॉरिटीज को नोटिस जारी कर मामले में अगली सुनवाई के लिए 2 सितंबर की तारीख तय कर दी। सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट अमित साहनी ने यह याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली प्रीजन रूल्स (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले एलजी की मंजूरी नहीं ली। उन्होंने कहा कि ये नियमावली असंवैधानिक और निरस्त किए जाने लायक है। याचिका में दावा किया गया है कि पिछले नियमों के विपरीत, डीपीआर, 2018 की शुरुआती लाइनों में न तो एलजी से मंजूरी का जिक्र है और न ही इसमें यह बात कही गई है कि एलजी द्वारा इस संबंध में जारी नोटिफिकेशन के बाद ये नियम लागू होंगे।
आदेश के बाद भी डॉक्टर नहीं लिख रहे बड़े अक्षरों में दवाओं के नाम
डॉक्टरों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि डॉक्टर मरीजों की पर्ची पर बड़े अक्षरों में दवाओं का नाम नहीं लिख रहे हैं। साथ ही तमाम आदेशों के बावजूद मरीजों को जेनरिक दवाएं लिखी जा रही हैं। याचिका में भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक, आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम-2002 के नियमों का सख्ती से पालन कराए जाने का अनुरोध किया गया है।
इसे लेकर केंद्र सरकार व एमसीआइ को निर्देश देने की मांग की गई है। अधिवक्ता अमित साहनी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि एमसीआइ ने 2017 में सभी पंजीकृत चिकित्सकों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों लिखने के निर्देश दिए थे। लेकिन, डाक्टरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
इसे लेकर केंद्र सरकार व एमसीआइ को निर्देश देने की मांग की गई है। अधिवक्ता अमित साहनी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि एमसीआइ ने 2017 में सभी पंजीकृत चिकित्सकों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों लिखने के निर्देश दिए थे। लेकिन, डाक्टरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
डॉक्टरांना औषधांची नावे ठळक लिहिण्याचा आदेश द्यावा, हायकोर्टात याचिका दाखल
महाराष्ट्र : डॉक्टरांनी औषधे लिहून देताना अतिशय स्पष्ट अक्षरांत प्रामुख्याने ठळक अक्षरांत (कॅपिटल लेटर्स) द्यावीत, असा आदेश केंद्र सरकार आणि भारतीय वैद्यकीय परिषदेला (एमसीआय) द्यावा, अशी मागणी करणारी सार्वजनिक हिताची याचिका दिल्ली उच्च न्यायालयातकरण्यात आली आहे.
प्रत्येक डॉक्टरने औषधाचे नाव त्याच्या जेनेरिकसह स्पष्ट अक्षरांत प्राधान्याने कॅपिटल लेटर्समध्ये लिहून इंडियन मेडिकल कौन्सिल रेग्युलेशन्स, २००२ चे नियमन १.५ चे कठोरपणे पालन करणे बंधनकारक आहे. व्यवसायाने वकील असलेले अमित साहनी यांनी दाखल केलेल्या या याचिकेत युक्तिवाद केला की, २०१७ मध्ये एमसीआयने सगळ्या नोंदणीकृत डॉक्टरांना
त्यांनी औधषांची नावे जेनेरिक लिहावीत, असे आदेश दिले होते; परंतु डॉक्टरांनी हा आदेश गांभीर्याने घेतलेला नाही.
प्रत्येक डॉक्टरने औषधाचे नाव त्याच्या जेनेरिकसह स्पष्ट अक्षरांत प्राधान्याने कॅपिटल लेटर्समध्ये लिहून इंडियन मेडिकल कौन्सिल रेग्युलेशन्स, २००२ चे नियमन १.५ चे कठोरपणे पालन करणे बंधनकारक आहे. व्यवसायाने वकील असलेले अमित साहनी यांनी दाखल केलेल्या या याचिकेत युक्तिवाद केला की, २०१७ मध्ये एमसीआयने सगळ्या नोंदणीकृत डॉक्टरांना
त्यांनी औधषांची नावे जेनेरिक लिहावीत, असे आदेश दिले होते; परंतु डॉक्टरांनी हा आदेश गांभीर्याने घेतलेला नाही.
कैदियों की रिहाई के लिए सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की बैठक हर तीन महीने में करे दिल्ली सरकार : हाईकोर्ट – News India Live | DailyHunt
नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वो कैदियों को समय से पहले रिहा करने पर फैसला करनेवाले सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) की बैठक हर तीन महीने में करे। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश जारी किया। याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिका में सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की गई थी। साहनी ने ये याचिका तब दायर की थी जब उन्होंने 23 नवम्बर 2018 को तिहाड़ जेल में सिकंदर नाम के कैदी की मौत की खबर के बारे में पढ़ी। सिकंदर 28 साल जेल में काट चुका था और वो रिहा होने का इंतजार कर रहा था। याचिका में कहा गया था कि कुछ मामलों में एसआरबी वैसे कैदियों की रिहाई की सिफारिश करती है जो एसआरबी के 16 जुलाई 2018 के आदेश के मुताबिक नहीं होते हैं। कई बार एसआरबी के सदस्य पुलिस रिपोर्ट पर मनमाने तरीके से फैसला करते हैं।
कैदियों की रिहाई के लिए सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की बैठक हर तीन महीने में करे दिल्ली सरकार : हाईकोर्ट – हिंदी समाचार: HS News
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की थी. याचिका में सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने दिल्ली सरकार को 26 नवम्बर 2018 को इस बाबत बताया भी था. उन्होंने दिल्ली सरकार को कई सुझाव दिए थे जिसमें ये सुनिश्चित करने को कहा गया था कि उम्रकैद की सजा पाया व्यक्ति 25 सालों से ज्यादा जेल में नहीं रहे.
उन्होंने सुझाव दिया था समय से पहले रिहा होनेवाले कैदियों को एक नंबर अलॉट करना चाहिए जिसमें कैदी के नाम के पहले और अंतिम शब्द को छिपाना होगा. इससे कैदी के बारे में फैसला करते वक्त उसकी जाति या धर्म आड़े नहीं आएगी.
उन्होंने सुझाव दिया था समय से पहले रिहा होनेवाले कैदियों को एक नंबर अलॉट करना चाहिए जिसमें कैदी के नाम के पहले और अंतिम शब्द को छिपाना होगा. इससे कैदी के बारे में फैसला करते वक्त उसकी जाति या धर्म आड़े नहीं आएगी.
सजायाफ्ता कैदी ने एसआरबी के फैसले पर उठाए सवाल
जस्टिस नजमी वजीरी की बेंच ने 33 वर्षीय कैदी जितेंद्र कुमार सिंह की याचिका पर आप सरकार को नोटिस जारी किया। सिंह को जेल में बंद हुए 17 साल (छूट के साथ) से ज्यादा वक्त बीत चुका है। उसकी ओर से एडवोकेट अमित साहनी ने कोर्ट के सामने आरोप लगाया कि उम्रकैद की सजा वाले कैदियों की सजा में छूट के मुद्दे पर विचार के लिए बना सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) निष्पक्षता से अपना काम नहीं कर रहा है। साहनी ने दलील दी कि ऐसे कैदियों को समय से पहले छोड़े जाने के आवेदन को ठुकराते हुए एसआरबी की ओर से स्पीकिंग ऑर्डर तक जारी नहीं हो रहे। उन्होंने आगे दलील की एक गरीब दोषी की जिंदगी और आजादी के मुद्दे पर फैसला लेते हुए एसआरबी स्पीकिंग ऑर्डर तक पास नहीं कर रहा है, जबकि उनमें से कुछ कैदी 14 साल से ज्यादा तो कुछ 20 से 25 सालों से बंद हैं। उन्होंने दलील दी कि एसआरबी ऐसे कैदियों दोषियों के भविष्य का फैसला लेते हुए अपने सामने रखे गए एजेंडा, सिनॉप्सिस और अन्य चीजों पर गौर करता है और उस पर विचार करने के बाद अपनी सिफारिशें सक्षम प्राधिकार के पास भेजता है, जो अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए उन पर फैसला लेता है। आरोप है कि यहां इस प्रक्रिया का पालन ही नहीं हो रहा। एसआरबी की सिर्फ सिफारिशों को ही एलजी तक पहुंचाया जा रहा है, उन तथ्यों को नहीं जिनके आधार पर वो राय कायम की गई।
कैसे तमाम दावों के बावजूद दिल्ली जल बोर्ड बदइंतजामी की मिसाल बनता दिख रहा है
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष हैं और इसकी कार्यप्रणाली चुस्त-दुरुस्त करने को लेकर वे बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं देश की राजधानी दिल्ली में हाल के सालों में बार-बार सीवरों की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मचारियों और मज़दूरों की मौत हुई है. इस सिलसिले में ताज़ा घटना बीते पखवाड़े पश्चिमी दिल्ली के केशोपुर बस डिपो के पास हुई. यहां दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) की एक सीवर पाइपलाइन की मरम्मत के दौरान तीन मज़दूर हादसे का शिकार हो गए. घटना की वजह नई नहीं थी.
एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका दायर की है। ‘सरकारी मौज’ और लापरवाही के अलावा दिल्ली जल बोर्ड भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है. राजधानी की जनसंख्या जैसे साल-दर-साल बढ़ रही है, उसी तरह यहां पानी की किल्लत भी बढ़ती जा रही है. हालांकि बीते सालों में दिल्ली के कई इलाकों में पानी की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन की व्यवस्था शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी भी कई इलाकों में पीने के पानी के लिए लंबी लाइनें लगती हैं, जिनमें अक्सर लोगों के बीच झगड़े होते हैं. टैंकर माफ़िया के लिए यह आदर्श स्थिति है. वे सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अभी भी पानी बेच रहे हैं.
एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका दायर की है। ‘सरकारी मौज’ और लापरवाही के अलावा दिल्ली जल बोर्ड भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है. राजधानी की जनसंख्या जैसे साल-दर-साल बढ़ रही है, उसी तरह यहां पानी की किल्लत भी बढ़ती जा रही है. हालांकि बीते सालों में दिल्ली के कई इलाकों में पानी की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन की व्यवस्था शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी भी कई इलाकों में पीने के पानी के लिए लंबी लाइनें लगती हैं, जिनमें अक्सर लोगों के बीच झगड़े होते हैं. टैंकर माफ़िया के लिए यह आदर्श स्थिति है. वे सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अभी भी पानी बेच रहे हैं.
सीवर में मौतों पर हाईकोर्ट ने सरकार व एजेंसियों से मांगा जवाब
न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार, स्थानीय निकायों, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली छावनी परिषद, लोक निर्माण विभाग व सरकारी एजेंसियों को फटकार लगाते हुए कहा कि दो सप्ताह में हलफनामा पेश कर बताएं कि मानवीकृत रूप से मैला साफ करने को रोकने वाले कानून प्रोहिबिशेन ऑफ मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड देयर रिहेबीलिटेशन को लागू करने के लिए कदम उठाए गए हैं और अब तक सीवर व टैंक साफ करने के लिए सफाई कर्मियों को क्यों भाड़े पर लिया जाता है।
खंडपीठ ने कहा कि मानवीकृत तरीके से सीवर की सफाई होने से लोग मर रहे हैं और संबंधित विभाग व अधिकारी संबंधित कानून को लागू नहीं कर रहे हैं। अगर मौतें हो रही हैं तो किसी को तो जेल जाना होगा। सरकार चुनाव के प्रचार का मोटा पैसा करती है उसे कुछ पैसा इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने पर भी करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने यह नाराजगी मानवीकृत तरीके से मैला साफ करने वालों के पुनर्वास के लिए एडवोकेट अमित साहनी की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।
खंडपीठ ने कहा कि मानवीकृत तरीके से सीवर की सफाई होने से लोग मर रहे हैं और संबंधित विभाग व अधिकारी संबंधित कानून को लागू नहीं कर रहे हैं। अगर मौतें हो रही हैं तो किसी को तो जेल जाना होगा। सरकार चुनाव के प्रचार का मोटा पैसा करती है उसे कुछ पैसा इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने पर भी करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने यह नाराजगी मानवीकृत तरीके से मैला साफ करने वालों के पुनर्वास के लिए एडवोकेट अमित साहनी की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।
सीवर में मौतों पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
दिल्ली जल बोर्ड के साथ राजधानी में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है. मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि बोर्ड ख़ुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अधीन है जो पानी और सीवर की सफ़ाई के मुद्दे पर अभूतपूर्व काम करने का दावा करते हैं. उनकी सरकार ने ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध एवं उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के तहत अगस्त, 2017 में दिल्ली में हाथ से सीवरों की सफ़ाई यानी मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस क़ानून का एक अहम प्रावधान यह है कि सीवरों की सफ़ाई (या मरम्मत) के लिए मज़दूरों को बिना सुरक्षा उपकरण के नीचे न भेजा जाए.
सड़क हादसे मुआवजे के ब्याज पर कर के प्रावधान के विरूद्ध अदालत में याचिका दायर की गयी
दिल्ली उच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर कर आयकर कानून के उस प्रावधान को खारिज करने की मांग की गयी है जो सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति के मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर कर लगाने को अनिवार्य करता है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भमभानी की पीठ के सामने यह याचिका पेश की गयी। इस याचिका पर मंगलवार को उपयुक्त पीठ के समक्ष सुनवाई होने की संभावना है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत करयोग्य नहीं है अतएव मोटर दुर्घटना दावे के तहत ब्याज करयोग्य नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा, ‘‘लेकिन बीमा कंपनियां मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत…… टीडीएस काट लेती हैं।’’ याचिका में कहा गया है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत स्थापित एमएसीटी के फैसले में मुआवजा पीड़ित की संभावित आय के नुकसान की भरपाई का विकल्प होता है और ज्यादातर मामलों में यह उसकी आय का गुणक होता है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजे का उद्देश्य हादसे के फलस्वरूप हुए दुख-दर्द के असर को कम करना है ताकि घायल या आश्रित को पीडि़त की आय बंद हो जाने की वजह से जीवन की दुश्वारियों का सामना न करना पड़े।
मुआवजे में मिलने वाली रकम पर लगने वाले टैक्स को खत्म करने का निर्णय ले केंद्र : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को सड़क हादसे में पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे के ब्याज पर आयकर लगाए जाने के प्रावधान को खत्म करने के बारे में बारे में उचित निर्णय लेने का आदेश दिया है।
जस्टिस एस. मुरालीधर और आईएस मेहता की पीठ ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को 30 जून तक याचिका को पूरक प्रतिवेदन मानते हुए समुचित निर्णय लेने को कहा है। इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2018 में सरकार को प्रतिवेदन देकर इस प्रावधान को खत्म करने की मांग की थी। पीठ ने मंत्रालय और सीबीडीटी को निर्णय लेने से पहले याचिकाकर्ता व पेशे से अधिवक्ता अमित साहनी का पक्ष सुनने और विस्तृत आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
जस्टिस एस. मुरालीधर और आईएस मेहता की पीठ ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को 30 जून तक याचिका को पूरक प्रतिवेदन मानते हुए समुचित निर्णय लेने को कहा है। इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2018 में सरकार को प्रतिवेदन देकर इस प्रावधान को खत्म करने की मांग की थी। पीठ ने मंत्रालय और सीबीडीटी को निर्णय लेने से पहले याचिकाकर्ता व पेशे से अधिवक्ता अमित साहनी का पक्ष सुनने और विस्तृत आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
सड़क हादसे में मुआवजे पर टैक्स खत्म करने की मांग
हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर आयकर कानून के उस प्रावधान को खारिज करने की मांग की गयी है जो सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति के मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगाने को जरूरी बनाता है।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भमभानी की बेंच ने इस याचिका पर मंगलवार को सही बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेज दिया है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत टैक्स लगाने के लायक नहीं है इसीलिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम के तहत ब्याज कर लगाने लायक नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा कि लेकिन बीमा कंपनियां मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भमभानी की बेंच ने इस याचिका पर मंगलवार को सही बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेज दिया है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत टैक्स लगाने के लायक नहीं है इसीलिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम के तहत ब्याज कर लगाने लायक नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा कि लेकिन बीमा कंपनियां मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं।
मुआवजे में मिलने वाली रकम पर लगने वाले टैक्स को खत्म करने का निर्णय ले केंद्र : हाईकोर्ट
अधिवक्ता अमित साहनी ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि सड़क हादसा के पीड़ितों को मिलने वाला मुआवजा आयकर कानून के तहत कर योग्य नहीं है। ऐसे में मोटर दुर्घटना दावे के तहत ब्याज को भी कर मुक्त किया जाना चाहिए। अधिवक्ता साहनी ने याचिका में दावा किया कि बीमा कंपनियां मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा अपने फैसले में सुनाई गई मुआवजे की राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम -1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि मोटर वाहन अधिनियम- 1988 के तहत दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के फैसले में मुआवजा पीड़ित की संभावित आय के नुकसान की भरपाई का विकल्प होता है और ज्यादातर मामलों में यह उसकी आय का गुणक होता है।
अदालत ने केन्द्र से दुर्घटना मुआवजे के ब्याज पर कर लगाने के खिलाफ याचिका का जवाब देने को कहा
India News: नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) का जवाब मांगा जिसमें सड़क दुर्घटना के पीड़ित को मिले मुआवजे की राशि से प्राप्त ब्याज पर कर कटौती के प्रावधान को खत्म करने की मांग की गई है। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ ने प्राधिकारों से इस याचिका पर अपने जवाब देने को कहा और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए छह नवंबर की तारीख तय की। अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने सीबीडीटी के 26 जून के उस आदेश को निरस्त करने की मांग की जिसमें यह कहा गया था कि मोटर दुर्घटना दावा निपटारा न्यायाधिकरण द्वारा मंजूर मुआवजे पर मिले ब्याज पर आयकर उचित एवं तर्कसंगत है।
मुआवजा राशि के ब्याज पर कर के खिलाफ याचिका पर केंद्र, सीबीडीटी करे फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सड़क दुर्घटना के पीड़ित को मुआवजा राशि पर मिलने वाले ब्याज पर कर कटौती के मुद्दे को लेकर केंद्र और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को फैसला करने का मंगलवार को निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका को अधिकारियों द्वारा पूरक अभिवेदन के तौर पर देखा जाये। याचिका में आयकर कानून के उस प्रावधान को रद्द करने की मांग की गयी है, जो मुआवजा राशि पर ब्याज संबंधी कर कटौती को अनिवार्य बनाता है। अदालत ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को पूरक अभिवेदन और दिसंबर 2018 में याचिकाकर्ता द्वारा दिये गये अभिवेदन पर 30 जून तक फैसला करने तथा इस संबंध में विस्तृत आदेश देने को कहा। अदालत ने अधिकारियों को कहा कि जरूरत पड़ने पर वे याचिकाकर्ता के वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी का भी पक्ष जानें और लिये गये फैसले के बारे में उन्हें सूचित करें। अदालत का यह आदेश सीबीडीटी की ओर से पेश हुए वकील की दलील के बाद आया। सीबीडीटी के वकील ने अपनी दलील में कहा था कि याचिकाकर्ता का इससे पहले का अभिवेदन अधिकारियों के समक्ष लंबित है। याचिका में कहा गया है कि आयकर कानून के तहत मुआवजे की रसीद कर योग्य आय में नहीं आती, इसलिए मोटर दुर्घटना दावा के तहत मिलने वाली ब्याज की राशि कर योग्य नहीं होनी चाहिए।
कैदियों के अधिकार से जुड़ी PIL पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
कैदियों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ी हुई जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से पूछा कि दिल्ली प्रीजन एक्ट के तहत नियमों का पालन कैदियों के अधिकारों के लिए क्यों नहीं हो पा रहा है. एक्ट के मुताबिक दिल्ली की हर जेल में अब तक लॉ ऑफिसर की भर्ती क्यों नहीं हो पाई है. दिल्ली प्रीजन एक्ट के सेक्शन 6 के हिसाब से दिल्ली की हर जेल में कैदियों के लिए ऑफिसर होना जरूरी है. फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही डायरेक्टर जनरल को नोटिस जारी कर चुका है. पेशे से वकील अमित साहनी की तरफ से लगाई गई इस याचिका में बताया गया है कि 2016 से 2019 के बीच में कैदियों के संवैधानिक हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी लॉ ऑफिसर नियुक्त नहीं किया गया था.
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब
April 23, 2019 नई दिल्ली (उत्तम हिन्दू न्यूज): दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की। अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है। साहनी ने कहा कि कानून अधिकारियों को छोड़कर, सभी नियुक्तियों का पालन किया जा रहा है। तीन कारागारा परिसरों -तिहाड़, रोहिणी और मंडोली- के अंतर्गत 16 जेल हैं। तिहाड़ में नौ जेल हैं। रोहिणी में एक और मंडोली कारागार परिसर में छह जेल हैं। साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की। अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है। साहनी ने कहा कि कानून अधिकारियों को छोड़कर, सभी नियुक्तियों का पालन किया जा रहा है। तीन कारागारा परिसरों -तिहाड़, रोहिणी और मंडोली- के अंतर्गत 16 जेल हैं। तिहाड़ में नौ जेल हैं। रोहिणी में एक और मंडोली कारागार परिसर में छह जेल हैं। साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब – आईएएनएस न्यूज़
नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है।साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
मौजूदा समय में, एक विधि अधिकारी दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों को देख रहा है।
अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है।साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
मौजूदा समय में, एक विधि अधिकारी दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों को देख रहा है।
दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों की जिम्मेदारी सिर्फ एक लॉ ऑफिसर पर, HC ने मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है. अमित साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब – Samacharnama | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
विधि अधिकारी की नियुक्ति के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मांगा जवाब
याचिका में राष्ट्रीय राजधानी में एक निश्चित समय सीमा के भीतर राज्य की सभी 16 जेलों में से प्रत्येक में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने का आदेश देने की मांग की गई है.
यह याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है. उनका आरोप है कि दिल्ली कारागार अधिनियम, 2000 में स्पष्ट कहा गया है कि प्रत्येक कारागार में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी जबकि वर्तमान में राज्य की सभी 16 जेलों के लिए एक ही विधि अधिकारी नियुक्त किया गया है.
यह याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है. उनका आरोप है कि दिल्ली कारागार अधिनियम, 2000 में स्पष्ट कहा गया है कि प्रत्येक कारागार में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी जबकि वर्तमान में राज्य की सभी 16 जेलों के लिए एक ही विधि अधिकारी नियुक्त किया गया है.
दिल्ली हाई कोर्ट का सुझाव- 16 जेलों में कॉन्ट्रैक्ट पर रखें लॉ ऑफिसर
नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए स्थायी अधिवक्ता (आपराधिक) राहुल मेहरा ने पीठ से कहा कि कारागार के महानिदेशक से सलाह-मशविरा किया गया है और विधि अधिकारियों को नियुक्त करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू होगी। उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि राज्य में 16 जेलें हैं जिनमें से तिहाड़ परिसर में नौ, रोहिणी जेल परिसर में एक और मंडोली जेल परिसर में छह जेलें हैं।यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए स्थायी अधिवक्ता (आपराधिक) राहुल मेहरा ने पीठ से कहा कि कारागार के महानिदेशक से सलाह-मशविरा किया गया है और विधि अधिकारियों को नियुक्त करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू होगी। उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि राज्य में 16 जेलें हैं जिनमें से तिहाड़ परिसर में नौ, रोहिणी जेल परिसर में एक और मंडोली जेल परिसर में छह जेलें हैं।यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब
नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
उच्च न्यायालय ने सभी जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति का दिया सुझाव, सरकार ने जवाब के लिए माँगा वक़्त
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी की सभी 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में ‘अच्छा’ मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा। वकील ने कहा कि दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के जरिए विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में वक्त लग सकता है। इसलिए अन्य विकल्पों पर भी गौर किया जा रहा है। संक्षिप्त सुनवाई के बाद, आप सरकार ने जनहित याचिका पर जवाब दायर करने के लिए वक्त मांगा। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर तक स्थगित कर दी। यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब – RTINews | DailyHunt
नई दिल्ली, 23 अप्रैल | दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
जेलों में क्यों नहीं हुई लॉ ऑफिसर की नियुक्ति, HC ने मांगा जवाब
जस्टिस ए. के. चावला ने दिल्ली सरकार के गृह विभाग और जेल अधिकारियों को इस मुद्दे पर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी। यह याचिका एडवोकेट अमित साहनी ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि अधिकारियों ने हाई कोर्ट के 27 सितंबर 2019 के निर्देश का जानबूझकर पालन नहीं किया। कोर्ट ने 12 हफ्ते के भीतर हर जेल में विधिक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने सितंबर का वह आदेश साहनी की ही जनहित याचिका पर दिया था। याचिका के मुताबिक दिल्ली में 16 जेल हैं, लेकिन अगस्त 2016 से ही इन सभी जेलों के लिए केवल एक लॉ ऑफिसर है।
16 जेलों में कॉन्ट्रैक्ट पर रखें लॉ ऑफिसर: दिल्ली हाई कोर्ट
नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
कैदियों के अधिकार से जुड़ी PIL पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने हर जेल में एक सुपरिटेंडेंट डिप्टी सुपरिटेंडेंट एक मेडिकल ऑफिसर लॉ ऑफिसर कैदी कल्याण ऑफिसर और इसी तरह के और ऑफिसर्स की नियुक्ति को सरकार ने जरूरी बताया है. फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही डायरेक्टर जनरल को नोटिस जारी कर चुका है. पेशे से वकील अमित साहनी की तरफ से लगाई गई इस याचिका में बताया गया है कि 2016 से 2019 के बीच में कैदियों के संवैधानिक हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी लॉ ऑफिसर नियुक्त नहीं किया गया था.
पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर मूलभूत सुविधाएं देने का आदेश
प्रमुख संवाददाता, नई दिल्ली
\Bदिल्ली हाई\B कोर्ट ने एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर जल्द से जल्द शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस और इमरजेंसी समेत सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। दो साल पहले यह एक्सप्रेसवे चालू हुआ था। हर दिन यहां से हजारों गाड़ियां गुजरती हैं और टोल का भुगतान करती हैं। याचिका में कहा गया, हालांकि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेसवे पर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं।
\Bदिल्ली हाई\B कोर्ट ने एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर जल्द से जल्द शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस और इमरजेंसी समेत सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। दो साल पहले यह एक्सप्रेसवे चालू हुआ था। हर दिन यहां से हजारों गाड़ियां गुजरती हैं और टोल का भुगतान करती हैं। याचिका में कहा गया, हालांकि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेसवे पर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हाईकोर्ट ने केएमपी-केजीपी एक्सप्रेस वे पर बुनियादी सुविधाएं देने के मुद्दे पर सरकार से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।
याची ने इन दोनों पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सेवा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश सरकार को देने की मांग की गई है। दिल्ली से जुडने वाली अन्य हाइवे पर सरकार ने यह सुविधा प्रदान कर रखी है।
याची ने इन दोनों पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सेवा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश सरकार को देने की मांग की गई है। दिल्ली से जुडने वाली अन्य हाइवे पर सरकार ने यह सुविधा प्रदान कर रखी है।
HC ने पूर्वी और पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेसवे पर बुनियादी सुविधाओं के लिए याचिका पर NHAI का जवाब मांगा | Housing News
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल, 2019 को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (HSIIDC) से शौचालय सहित बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की याचिका पर जवाब मांगा। , पूर्वी और पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर, पेट्रोल पंप, एम्बुलेंस और आपातकालीन सुविधाएं। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने याचिका पर एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को नोटिस जारी किया, और सूचीबद्ध किया।26 अगस्त, 2019 को आगे की सुनवाई के लिए मामला।अदालत अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेसवे या कुंडली पर कोई ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है –
राजमार्गों पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाब किया तलब
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है. जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए.
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब – आईएएनएस न्यूज़
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से राजामार्गो पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन और बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की मांग वाली एक याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा।जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि हजारों वाहन रोजाना वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से गुजरते हैं, लेकिन टोल का भुगतान करने के बावजूद उन्हें कोई भी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि हजारों वाहन रोजाना वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से गुजरते हैं, लेकिन टोल का भुगतान करने के बावजूद उन्हें कोई भी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
ईस्टर्न-वेस्टर्न पेरिफेरल-वे पर नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं’
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सुविधाएं सुनिश्चित कराने की मांग को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) और हरियाणा औद्योगिक एवं आधारभूत संरचना निगम (एचएसआइआइडीसी) से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने एनएचआइए व एचएसआइआइडीसी को नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।
अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि दो साल पहले शुरू किए गए वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे व कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे पर रोज हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन अब तक वहां पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस जैसी आपात सुविधाएं नहीं हैं।
अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि दो साल पहले शुरू किए गए वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे व कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे पर रोज हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन अब तक वहां पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस जैसी आपात सुविधाएं नहीं हैं।
पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर मूलभूत सुविधाएं देने का आदेश
चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने कहा कि अगर ये सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध कराई जा रही हैं तो इनका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए। इसके लिए एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी (हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड) इन सुविधाओं का बेहतर रखरखाव करें। कोर्ट का यह आदेश कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के साथ-साथ कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेसवे पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस, आपात सुविधाएं, ढाबे-रेस्त्रां और पुलिस की गश्त जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग वाली एक याचिका का निपटारा करते समय आया। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
[DELHI-NCR] – हाईकोर्ट ने केएमपी-केजीपी एक्सप्रेस वे पर बुनियादी सुविधाएं देने के मुद्दे पर सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने पूर्वी व पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे पर शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस व दूसरी आपात बुनियादी सुविधाओं की मांग करने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) व हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कोरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।.
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।.
ईस्टर्न, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराये एनएचएआई, एचएसआईआईडीसी : अदालत
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि अगर ये सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध करायी जा रही हैं तो इनके प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एचएसआईआईडीसी)उनका रखरखाव करे। अदालत का यह आदेश कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के साथ-साथ कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेसवे पर पेट्रोल पंप, शौचालय परिसर, एंबुलेंस, आपात सुविधाएं, ढाबे-रेस्त्रां और पुलिस की गश्त जैसी सुविधाओं की उपलब्धता की मांग करने वाली एक याचिका का निस्तारण करते समय आया। पीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादियों (प्राधिकरणों) को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने अन्य लंबित कार्यों की प्राथमिकता और व्यावहारिक रूप से कोष की उपलब्धता को देखते हुए बताये गये एक्सप्रेसवे पर रिट याचिका में जिक्र की गयी सुविधाओं की उपलब्धता जल्द से जल्द सुनिश्चित करें।’’
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब – Samacharnama | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से राजामार्गो पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन और बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की मांग वाली एक याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने हरियाणा राज्य औद्योगिक और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एचएसआईआईडीसी) से भी याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
अदालत ने कानून की खामी को दूर करने की मांग संबंधी याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने सामाजिक कायकर्ता एवं वकील अमित साहनी की इस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा विधि एवं न्याय मंत्रालय से जवाब मांगा। अदालत इस मामले पर अगली सुनवाई 16 जुलाई को करेगी। याचिका में कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची एक भादसं की धाराओं 326 (खतरनाक हथियार या साधन से जानबूझकर गंभीर जख्म पहुंचाना), 327 (धन ऐंठने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना या अवैध कृत्य के लिए बाध्य करना), 363ए (भिक्षावृति के लिए नाबालिग का अपहरण एवं उसे अपंग बनाना) 377 (अप्राकृतिक यौनाचार), 386 (व्यक्ति को मौत का डर दिखाना पैसा ऐंठना) 392(डकैती), 409 (जनसेवक द्वारा विश्वासघात) की मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई का प्रावधान करती है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की दृष्टि से अमान्य है। इन अपराधों के लिए दस साल के कारावास से लेकर उम्रकैद तक की सजा के प्रावधान है। याचिका में उच्च न्यायालय से दरख्वास्त किया गया है कि वह संबंधित अधिकारियों को इस पर विचार करने तथा उनकी सुनवाई ‘प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत’ के बजाय ‘सत्र अदालत’ द्वारा किये जाने की व्यवस्था कर प्रक्रियागत कानून में अंतर्निहित खामी को दूर करने के लिए कहे।
दिल्ली हाई कोर्ट ने गर्भपात की समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है। एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने की इजाजत नहीं है। बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है। एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने की इजाजत नहीं है। बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गर्भपात अधिनियम (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट) 1971
चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक, 2020 में विशेष तरह की महिलाओं के गर्भपात के लिए गर्भावस्था की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रस्ताव है. इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य महिलाएं (दिव्यांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया. अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया. अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.
ट्रिपल तलाक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने आम महिलाओ को दी बड़ी राहत, अब 24 वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगी महिलाएं, मोदी कैबिनेट की मंजूरी, बदला नियम » News Today Chhattisgarh
दिल्ली वेब डेस्क / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट नेमेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है | इससे देश की महिलाओ को बड़ी राहत देने के रूप में देखा जा रहा है | मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया. अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है। एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने की इजाजत नहीं है। बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है। एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने की इजाजत नहीं है। बीस हफ्ते से ज्यादा के रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस
नई दिल्ली। गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्लीदिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गर्भपात के लिए समय-सीमा कितनी बढ़ाएं, महिला आयोग से मांगा जवाब
नई दिल्ली। महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाने की मांग लगातार जा रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला आयोग, कानून और स्वास्थ्य मंत्रालय से जवाब मांगा है। दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें ये मांग की गई है कि गर्भपात कराने के लिए समय सीमा बढ़ानी चाहिए। याचिका में मांग की गई है कि किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते होनी चाहिए। साथ ही याचिका में इस बात का भी अनुरोध किया गया है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानून के तहत वैधानिक गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए। ये याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की ओर से दायर की गई है। साथ ही इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय एवं कानून मंत्रालय को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। 6 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट इस पर अगली सुनवाई करेगा।
गर्भपात के लिये समय-सीमा बढ़ाने संबंधी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी अदालत
नयी दिल्ली: किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की अनुमति से संबंधित याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय मंगलवार को सुनवाई करने के लिये सहमत हो गया है। फिलहाल गर्भपात कराने की समय-सीमा 20 सप्ताह है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील अमित साहनी की ओर से दायर याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय एवं कानून मंत्रालय को इस संबंध में निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दोनों मंत्रालयों को अदालत को यह बताने का निर्देश देने की मांग की गई है कि 2014 के मसौदा संशोधन के प्रस्ताव के संदर्भ में ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971’ के प्रावधानों में कब बदलाव किया जायेगा। मौजूदा कानून के मुताबिक 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ के समापन की अनुमति नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के प्रजनन और गर्भपात के अधिकार को लेकर याचिका दाखिल, कोर्ट ने केन्द्र सरकार को भेजा नोटिस – Lokmat News Hindi | DailyHunt
किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की अनुमति से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। तीन महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने मांग की थी कि गर्भपात को अपराधीकरण से बाहर किया जाना चाहिए। जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। फिलहाल गर्भपात कराने की समय-सीमा 20 सप्ताह है। याचिका में यह अनुरोध किया गया है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानून के तहत वैधानिक गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए। इस याचिका में मेडिकल टर्मीनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में बदलाव की मांग भी की गई है। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की ओर से दायर याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय एवं कानून मंत्रालय को इस संबंध में निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
गर्भावस्था समाप्त करने की समय सीमा 12 से बढ़कर 24/ 26 सप्ताह तक हो सकती है
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गर्भपात संबंधी कानून में संशोधन और अविवाहित महिलाओं को कानूनी रूप से गर्भपात की अनुमति प्रदान करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में आपात स्थिति में गर्भपात की सीमा २० से बढ़ाकर २४ या २६ सप्ताह करने की भी मांग की गई है। मौजूदा कानून के तहत २० हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर केंद्र सरकार व राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई ६ अगस्त को होगी। जनहित याचिका में कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेनेंसी एक्ट १९७१ के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो २० हफ्ते से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव वर्ष २०१४ में किया था। कानून केवल दुष्कर्म या गर्भ निरोधकों के नाकाम होने पर गर्भ के मामलों का निबटारा करता है। यह अविवाहित युवतियों व विधवाओं के गर्भपात के मुद्दे पर खामोश है। इन महिलाओं को भी गर्भपात कराने का अधिकार दिया जाए।
अविवाहित महिलाओं के गर्भपात के अधिकार पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस, मांगा जवाब
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गर्भपात संबंधी कानून में संशोधन और अविवाहित महिलाओं को कानूनी रूप से गर्भपात की अनुमति प्रदान करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में आपात स्थिति में गर्भपात की सीमा २० से बढ़ाकर २४ या २६ सप्ताह करने की भी मांग की गई है। मौजूदा कानून के तहत २० हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर केंद्र सरकार व राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई ६ अगस्त को होगी। जनहित याचिका में कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेनेंसी एक्ट १९७१ के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो २० हफ्ते से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव वर्ष २०१४ में किया था। कानून केवल दुष्कर्म या गर्भ निरोधकों के नाकाम होने पर गर्भ के मामलों का निबटारा करता है। यह अविवाहित युवतियों व विधवाओं के गर्भपात के मुद्दे पर खामोश है। इन महिलाओं को भी गर्भपात कराने का अधिकार दिया जाए।
Pregnancy Amendment Bill 2020: 24वें सप्ताह में महिलाएं करा सकेंगी गर्भपात, इन देशों में है ये कानून – Chatpati News
केंद्रीय कैबिनेट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) बिल 2020 को मंजूरी दे दी है।आपको बता दें कि याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सरकार की ओर से कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया गया था। साहनी ने अपना याचिका में मांग की थी कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए। साथ ही अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया. अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.
दिल्ली हाई कोर्ट ने गर्भपात की समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष एक हलफनामे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेन्सी (एमटीपी) कानून में संशोधन के लिए संबंधित मंत्रालयों और नीति आयोग की राय लेने के बाद उसने मार्च में मंजूरी के लिए अंतिम ड्राफ्ट को विधि मंत्रालय को भेज दिया था। हालांकि, विधि मंत्रालय ने नोट भेजकर कहा था कि चूंकि संसद का दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया, ऐसे में नयी सरकार के शपथग्रहण के बाद सभी हितधारकों के साथ परामर्श करने के बाद मामले पर गौर किया जाएगा। हलफनामे में कहा गया कि इसके बाद एमटीपी कानून 1971 में संशोधन के लिए अंतर मंत्रालयी विमर्श की प्रक्रिया शुरू की और बहुत जल्द इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसके जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया।
गर्भपात की समयसीमा बढ़ाने की याचिका पर अदालत ने केंद्र से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ब्रजेश सेठी की पीठ ने स्वास्थ्य और कानून मंत्रालयों तथा राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस भेजकर याचिका पर उनका रुख पूछा है। याचिका में दलील दी गयी है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानूनी तरीके से गर्भपात की इजाजत मिलनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार विमर्श की जरूरत है। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए छह अगस्त की तारीख तय की। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने याचिका दाखिल कर मंत्रालयों को अदालत को यह बताने के लिए निर्देश देने की मांग की थी कि चिकित्सकीय गर्भपात कानून (Abortion Law), 1971 में 2014 के प्रस्तावित मसौदा संशोधन के मद्देनजर संशोधन कब किये जाएंगे। कानून के उस प्रावधान को बदलने की मांग की गयी है जो 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं देता।
अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार विमर्श की जरूरत है। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए छह अगस्त की तारीख तय की। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने याचिका दाखिल कर मंत्रालयों को अदालत को यह बताने के लिए निर्देश देने की मांग की थी कि चिकित्सकीय गर्भपात कानून (Abortion Law), 1971 में 2014 के प्रस्तावित मसौदा संशोधन के मद्देनजर संशोधन कब किये जाएंगे। कानून के उस प्रावधान को बदलने की मांग की गयी है जो 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं देता।
दिल्ली हाई कोर्ट ने गर्भपात की समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
नई दिल्ली:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की समय-सीमा ’20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह’ तक करने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेट्ठी की खंडपीठ ने मामले को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया और कहा कि कुछ मुद्दों पर वैज्ञानिक तरीके से विचार करने की जरूरत होती है.
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की थी. याचिकाकर्ता ने सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) विधेयक की धारा 3(2)(बी) में उचित संशोधन कर गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की समय-सीमा को बढ़ाकर आगे 4 या 6 हफ्तों तक करने के लिए आदेश देने की मांग की थी.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की समय-सीमा ’20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह’ तक करने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेट्ठी की खंडपीठ ने मामले को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया और कहा कि कुछ मुद्दों पर वैज्ञानिक तरीके से विचार करने की जरूरत होती है.
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की थी. याचिकाकर्ता ने सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) विधेयक की धारा 3(2)(बी) में उचित संशोधन कर गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की समय-सीमा को बढ़ाकर आगे 4 या 6 हफ्तों तक करने के लिए आदेश देने की मांग की थी.
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस.
मौजूदा कानून के तहत 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को नहीं गिराया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने याचिका को मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्घ किया है।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
गर्भपात की समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की समय-सीमा ’20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह’ तक करने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेट्ठी की खंडपीठ ने मामले को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया और कहा कि कुछ मुद्दों पर वैज्ञानिक तरीके से विचार करने की जरूरत होती है।
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिकाकर्ता ने सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) विधेयक की धारा 3(2)(बी) में उचित संशोधन कर गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की समय-सीमा को बढ़ाकर आगे 4 या 6 हफ्तों तक करने के लिए आदेश देने की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेट्ठी की खंडपीठ ने मामले को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया और कहा कि कुछ मुद्दों पर वैज्ञानिक तरीके से विचार करने की जरूरत होती है।
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिकाकर्ता ने सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) विधेयक की धारा 3(2)(बी) में उचित संशोधन कर गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की समय-सीमा को बढ़ाकर आगे 4 या 6 हफ्तों तक करने के लिए आदेश देने की मांग की थी।
२४व्या आठवड्यात गर्भपात करता येणार; केंद्राची मंजुरी
संबंधित मंत्रालय आणि नीती आयोगाचा सल्ला घेतल्यानंतर गर्भपातासंबंधी कायद्यात दुरुस्ती करण्याच्या मसुद्याला अंतिमरुप देण्यात येईल. त्यानंतर हा मसुदा विधी मंत्रालयाकडे पाठवण्यात येईल. त्यानंतर केंद्रीय मंत्रिमंडळाची विधेयकाला मंजुरी घेतल्यानंतर संसदेच्या दोन्ही सभागृहाच्या पटलावर हे विधेयक ठेवण्यात येईल, असं या प्रतिज्ञापत्रात म्हटलं आहे. गर्भापातासंबंधी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नंसी कायदा १९७१मध्ये दुरुस्ती करण्यासाठीचा मसुदा विधी मंत्रालयाला पाठवल्याचंही केंद्राने नंतर कोर्टाला सांगितलं होतं.
वकील अमित साहनी यांनी कोर्टात ही जनहित याचिका दाखल केली होती. महिला आणि जन्माला येणाऱ्या मुलाच्या आरोग्याला असलेला धोका पाहता गर्भपात करण्याचा अवधी २० आठवड्याहून वाढवून तो २४ ते २६ आठवड्याचा करावा. तसेच अविवाहित महिला आणि विधवांना गर्भपात करण्याची कायदेशीर परवानगी देण्यात यावी, असं साहनी यांनी या याचिकेत म्हटलं होतं. दरम्यान, या निर्णयामुळे बलात्कार पीडित महिला, विधवा आणि अविवाहित महिलांना दिलासा मिळण्याची शक्यता आहे.
वकील अमित साहनी यांनी कोर्टात ही जनहित याचिका दाखल केली होती. महिला आणि जन्माला येणाऱ्या मुलाच्या आरोग्याला असलेला धोका पाहता गर्भपात करण्याचा अवधी २० आठवड्याहून वाढवून तो २४ ते २६ आठवड्याचा करावा. तसेच अविवाहित महिला आणि विधवांना गर्भपात करण्याची कायदेशीर परवानगी देण्यात यावी, असं साहनी यांनी या याचिकेत म्हटलं होतं. दरम्यान, या निर्णयामुळे बलात्कार पीडित महिला, विधवा आणि अविवाहित महिलांना दिलासा मिळण्याची शक्यता आहे.
अब 24वें सप्ताह में भी गर्भपात करा सकेंगी महिलाएं, नए बिल को कैबिनेट की मंजूरी
केंद्रीय कैबिनेट ने आज मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट (संशोधित) 1971 को मंजूरी दी, इसके अंतर्गत गर्भपात की उपरी सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह की जाएगी. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट मीटिंग की जानकारी देते हुए बताया, महिलाओं की मांग थी, डॉक्टर की सिफारिश थी, कोर्ट का आग्रह था.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया था. अमित साहनी की ओर से अर्जी में कहा गया था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा गैरशादीशुदा महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जानी चाहिए.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया था. अमित साहनी की ओर से अर्जी में कहा गया था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा गैरशादीशुदा महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जानी चाहिए.
बदले नियम, 24वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगी महिलाएं – CNIN News Raipur Chhattisgarh
नई दिल्ली। मोदी कैबिनेट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है. इस मंजूरी के साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का रास्ता साफ हो गया है. अब इस बिल को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा. इस बिल के जरिए अब महिलाएं 24वें हफ्ते भी गर्भपात करा सकेंगी.मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया. अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.
अब 24 सप्ताह में हो सकेगा गर्भपात, जानिये इसे लेकर क्या कहता है मौजूदा कानून
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को हरी झंडी दिखा दी है। इस बिल को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। इसके तहत गर्भपात कराने की अनुमति के लिए अधिकतम सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह की गई है।याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है।इसकी सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट को बताया था कि गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते में गर्भपात की समयसीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24-26 हफ्ते करने पर विचार किया जा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि उसने कानून में संशोधन के लिए अपना मसौदा तैयार कर कानून मंत्रालय को भेज दिया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि उसने कानून में संशोधन के लिए अपना मसौदा तैयार कर कानून मंत्रालय को भेज दिया है।
गर्भपात की सीमा 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 26 हफ़्ते तक करने को लेकर लगाई गई याचिका पर नोटिस
गर्भपात की सीमा 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 26 हफ़्ते तक करने को लेकर लगाई गई याचिका पर केंद्र,महिला आयोग को नोटिस. याचिका लगाने वाले अमित साहनी से आज़तक संवाददाता पूनम शर्मा ने पूछा कि गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने की माँग की वज़ह क्या है.
गर्भपात का समय बढाने पर चल रही है चर्चा
महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाने की मांग लगातार की जा रही है. दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें ये मांग की गई है कि गर्भपात कराने के लिए समय सीमा 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 26 हफ़्ते की जाए. ये याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की ओर से दायर की गई है. आजतक संवाददाता पूनम शर्मा ने बात की अमित साहनी से और पूछा कि गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने की माँग की वज़ह क्या है
गर्भपात का समय बढाने पर चल रही है चर्चा : केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा
नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) केंद्र ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने किसी महिला या उसके भ्रूण के स्वास्थ्य को खतरे की स्थिति में गर्भपात कराने की मौजूदा अवधि 20 सप्ताह को बढ़ाकर 24-26 सप्ताह करने के लिए अंतर मंत्रालयी विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की है।सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसके जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया। याचिका में महिला या उसके भ्रूण के स्वास्थ्य को खतरे की स्थिति में गर्भपात कराने के 20 हफ्ते की मौजूदा अविध को बढाकर 24-26 हफ्ते करने की मांग की गयी है। याचिका में कहा गया कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति मिलनी चाहिए।(
गर्भपात की समयसीमा बढ़ाने की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर गर्भपात की समयसीमा 24 या 26 हफ्ते करने पर जवाब मांगा है।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समयसीमा बढ़ाने की मांग की गई है। फिलहाल 20 हफ्ते की सीमा गर्भपात के लिए तय है। वकील अमित साहनी की ओर से यह याचिका दायर की गई है।
मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी। याचिका में यह अनुरोध किया गया है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानून के तहत वैधानिक गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए। भारत में अभी तक स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो तो गर्भवती महिलाएं 20 हफ्ते तक के समय में गर्भपात करा सकती हैं। गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने के पक्ष में यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि परिवार नियोजन के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही महिलाओं के अपने शरीर और संतान पैदा करने की स्वेच्छा के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण हैं।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समयसीमा बढ़ाने की मांग की गई है। फिलहाल 20 हफ्ते की सीमा गर्भपात के लिए तय है। वकील अमित साहनी की ओर से यह याचिका दायर की गई है।
मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी। याचिका में यह अनुरोध किया गया है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानून के तहत वैधानिक गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए। भारत में अभी तक स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो तो गर्भवती महिलाएं 20 हफ्ते तक के समय में गर्भपात करा सकती हैं। गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने के पक्ष में यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि परिवार नियोजन के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही महिलाओं के अपने शरीर और संतान पैदा करने की स्वेच्छा के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण हैं।
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मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया। अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए।
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस
New Delhi: गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है.याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ मेंपल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गयी है. ये हलफनामा वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी द्वारा एमटीपी अधिनियम की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जो 20 सप्ताह की अवधि के बाद भ्रूण के गंभीर रूप से पीड़ित होने पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने पर रोक लगाता है। याचिका में यह कहा गया है कि राज्य को महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य दोषों के साथ बच्चों को जन्म देने और गर्भावस्था जारी रखने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।
महिलाएं अब 24वें हफ्ते में करवा सकेंगी गर्भपात, बिल को मिली कैबिनेट की मंजूरी
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को संशोधित गर्भपात बिल यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ((Medical Termination of Pregnancy Amendment) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में गर्भपात की अधिकतम सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई है। इसके साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का रास्ता साफ हो गया है। जिसे संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। इस बिल के पारित होने के बाद महिलाएं 24वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगी। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट के इस फैसले के बारे में जानकारी दी।मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया। अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए।
कैबिनेट ने गर्भपात के कानून को बदलने की मंजूरी दी
कैबिनेट मीटिंग में आज मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का रास्ता साफ हो गया है। यानी अब महिलाएं गर्व के 24 वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगे। इसके लिए उन्हें किसी मेडिकल की जरूरत नहीं होगी। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई है कि अविवाहित एवं विधवा महिलाओं को किसी भी समय गर्भपात की अनुमति दी जाए।मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया। अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए। इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।
गर्भावस्था समाप्त करने की समय सीमा 12 से बढ़कर 24/ 26 सप्ताह तक हो सकती है
गर्भावस्था समाप्त करने की समय सीमा 12 से बढ़कर 24/ 26 सप्ताह तक हो सकती है राष्ट्रीय महिला आयोग गर्भपात के लिए समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है कि इसे 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया जाए और सरकार ने ड्राफ्ट (संशोधन विधेयक 2014) के लिए जनता से वर्ष 2014 में सुझाव मांगे थे लेकिन इसे कभी संसद में नहीं रखा गया।
केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह सूचित किया है कि वो महिलाओं की अपनी मर्जी से गर्भावस्था को समाप्त करने की समय सीमा को वर्तमान 12 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह तक करने के लिए जल्द ही कदम उठाएगा। ये हलफनामा वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी द्वारा एमटीपी अधिनियम की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जो 20 सप्ताह की अवधि के बाद भ्रूण के गंभीर रूप से पीड़ित होने पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने पर रोक लगाता है। याचिका में यह कहा गया है कि राज्य को महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य दोषों के साथ बच्चों को जन्म देने और गर्भावस्था जारी रखने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।
केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह सूचित किया है कि वो महिलाओं की अपनी मर्जी से गर्भावस्था को समाप्त करने की समय सीमा को वर्तमान 12 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह तक करने के लिए जल्द ही कदम उठाएगा। ये हलफनामा वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी द्वारा एमटीपी अधिनियम की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जो 20 सप्ताह की अवधि के बाद भ्रूण के गंभीर रूप से पीड़ित होने पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने पर रोक लगाता है। याचिका में यह कहा गया है कि राज्य को महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य दोषों के साथ बच्चों को जन्म देने और गर्भावस्था जारी रखने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।
गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की याचिका पर महिला आयोग, स्वास्थ्य व कानून मंत्रालय को नोटिस.
नई दिल्ली: गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है। एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं है। बीस हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है। गंभीर किस्म के भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
बदले नियम, 24वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगी महिलाएं, मोदी कैबिनेट की मंजूरी
मौजूदा कानून के तहत 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को नहीं गिराया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने याचिका को मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्घ किया है।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
विधवा-अविवाहित युवतियों को गर्भपात के अधिकार पर सुनवाई आज
अविवाहित युवतियों और विधवाओं को कानूनी रूप से गर्भपात की अनुमति और आपात स्थिति में गर्भपात की सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह करने की मांग लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। मौजूदा कानून के तहत 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को नहीं गिराया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने याचिका को मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्घ किया है।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में कहा है कि स्वास्थ्य, कानून व विधि मंत्रालय से पूछा जाए कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के उस प्रावधान में संशोधन कब किया जाएगा, जो 20 सप्ताह से अधिक का गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। इस प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव 2014 में किया गया था।
गर्भावस्था समाप्त करने की समय सीमा 12 से बढ़कर 24/ 26 सप्ताह तक हो सकती है
राष्ट्रीय महिला आयोग गर्भपात के लिए समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है कि इसे 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया जाए उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यह कहा है कि उसने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन के लिए विभिन्न मंत्रालयों से परामर्श की प्रक्रिया शुरू की है और वो गर्भधारण की कानूनी समाप्ति के लिए ऊपरी समय सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24/26 सप्ताह तक करने के लिए जितनी जल्दी हो सके, अंतिम रूप देगा। वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी की याचिका पर आया यह जवाब ये हलफनामा वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी द्वारा एमटीपी अधिनियम की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जो 20 सप्ताह की अवधि के बाद भ्रूण के गंभीर रूप से पीड़ित होने पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने पर रोक लगाता है।