interview with prisoners
कैदियों से मुलाकात की प्रक्रिया को ऑनलाइन करेगा तिहाड़ प्रशासन, HC को दिया हलफनामा
जेल में बंद कैदियों के मानवाधिकारों को लेकर लगाई गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ प्रशासन से पूछा है कि कैदियों को उनके वकीलों से मुलाकात को आसान बनाने के लिए प्रशासन ऑनलाइन सिस्टम को कब तक लागू करने जा रहा हैदरअसल. साल 2014 एडवोकेट अमित साहनी की एक याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि कैदियों से मिलने जाने के वक्त वकीलों को काफी संघर्ष करना पड़ता है.
कैदी से वकीलों की मुलाकात पर नई बंदिशों को चुनौती
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : तिहाड़ जेल में बंद कैदियों से मुलाकात के लिए जाने वाले वकीलों को पेश आ रही समस्याओं को लेकर एक अधिवक्ता अमित साहनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बीडी अहमद व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार व तिहाड़ जेल प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
Removal of difficult words from police language
एफआइआर में फारसी व उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने का विरोध
वकील अमित साहनी की ओर से दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एफआइआर व बयान दर्ज करने में पुलिस पुराने जमाने की भाषा इस्तेमाल करती है। जिससे एफआइआर दर्ज कराने वाले और आरोपी दोनों को भाषा समझने में परेशानी होती है। याचिका में यह भी कहा गया है कि पुलिस को प्रशिक्षण के दौरान ये भाषाएं सिखाई जाती हैं। ये न सिर्फ पुलिस अधिकारियों के लिए बोझिल हैं, बल्कि न्यायिक अधिकारियों और वकीलों के लिए भी उन्हें समझना कठिन है। इनकी जगह ¨हदी व अंग्रेजी भाषा इस्तेमाल की जानी चाहिए।
कार्यवाही से प्राचीन शब्दों को निकालने का दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में किया विरोध
दिल्ली पुलिस ने थानों के रोज की कार्यवाही में फारसी और उर्दू के पुराने और कठिन शब्दों की जगह हिन्दी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल के निर्देश के लिए दायर याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट में विरोध किया है।
दिल्ली पुलिस के वकील अमित साहनी ने जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। याचिका के अनुसार यह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के लिए भी कठिन है क्योंकि उन्हें ही नहीं बल्कि आरोपियों और उनके वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को भी पुलिस कार्यवाही समझने के लिये उर्दू और फारसी शब्दों को सीखना पड़ता है।
दिल्ली पुलिस के वकील अमित साहनी ने जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। याचिका के अनुसार यह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के लिए भी कठिन है क्योंकि उन्हें ही नहीं बल्कि आरोपियों और उनके वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को भी पुलिस कार्यवाही समझने के लिये उर्दू और फारसी शब्दों को सीखना पड़ता है।
...जब पुलिसिया कामकाज में इस्तेमाल कठिन शब्दों के खिलाफ हाईकोर्ट में लगी अर्जी
एडवोकेट अमित साहनी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस अपने पुलिस स्टेशनों में होने वाले दैनिक कामकाज, एफआईआर, गवाहों के बयान दर्ज करने और अदालत में दाखिल चालान समेत अन्य कागजी कामों में काफी प्राचीन और कठिन उर्दू एवं पारसी शब्दों का इस्तेमाल करती है। इन्हें समझने में न केवल आम लोगों बल्कि वकीलों को भी बेहद दिक्कत आती है, लिहाजा इन्हें पुलिस की शब्दावली से हटाया जाए और इनकी जगह हिंदी और अंग्रेजी के सरल शब्दों को इस्तेमाल करने का निर्देश पुलिस विभाग को दिया जाए।
पुलिस कार्यवाही से पुराने शब्दों को निकाले जाने विरोध
Delhi Samachar: दिल्ली पुलिस ने थानों के दैनिक कार्यों में फारसी और उर्दू के प्राचीन तथा कठिन शब्दों के स्थान पर हिंदी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल के निर्देश के लिए दायर याचिका का दिल्ली उच्च न्यायालय में विरोध किया है।
दिल्ली पुलिस ने वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। इस याचिका में कहा गया है कि यहां पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में पुलिसकर्मियों को उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
दिल्ली पुलिस ने वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। इस याचिका में कहा गया है कि यहां पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में पुलिसकर्मियों को उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
एफआइआर में फारसी व उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने का विरोध
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में जवाब दायर कर एफआइआर और पुलिस की कार्रवाई में फारसी और उर्दू भाषा का इस्तेमाल बंद करने की मांग का विरोध किया है। पुलिस ने अपने जवाब में कहा है कि एफआइआर दर्ज करने के लिए जो भाषा इस्तेमाल की जाती है वह प्राचीन नहीं है। हर व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकता है। वकील अमित साहनी की ओर से दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एफआइआर व बयान दर्ज करने में पुलिस पुराने जमाने की भाषा इस्तेमाल करती है। जिससे एफआइआर दर्ज कराने वाले और आरोपी दोनों को भाषा समझने में परेशानी होती है।
Unwanted fare of Airlines
हाई कोर्ट ने हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर मांगा सरकार का जवाब, 15 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
दिल्ली हाई कोर्ट ने यात्रियों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है। वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
एयरलाइंस के मनमाने किराये पर लग सकती है रोक
किराये की अधिकतम सीमा तय किये जाने से कारोबार में पारदर्शिता आएगी और जवाबदेही तय की जा सकेगी इससे पहले वकील अमित साहनी ने भी एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें अदालत से हवाई किराये की सीमा तय करने एवं निजी एयरलाइंस को हवाई यात्राा के लिए मनमाने तरीके से किराया वसूलने पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया था.
हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा सरकार का जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है. उल्लेखनीय है कि सीनियर लॉयर अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है, जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाई किराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
उच्च न्यायालय ने हवाई किराये की सीमा तय करने की मांग पर मंागा सरकार का जवाब
नयी दिल्ली, 23 अप्रैल :भाषा: दिल्ली उच्च न्यायालय ने विमान यात्राा करने वालों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराये की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है।
वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्राा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिदर्ेश तय करने का निदर्ेश देने का आग्रह किया गया है।
वकील अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाईकिराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्राा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिदर्ेश तय करने का निदर्ेश देने का आग्रह किया गया है।
हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा सरकार का जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने विमान यात्रा करने वालों को एयरलाइनों की लूट से बचाने के लिए देश में हवाई किराए की सीमा तय करने की मांग संबंधी याचिका पर सरकार का जवाब मांगा है. केंद्र सरकार के वकील ने अदालत में कहा कि हवाई किराया विमानन नियामक नागर विमानन निदेशालय के नियंत्रण के बाहर है. उल्लेखनीय है कि सीनियर लॉयर अमित साहनी ने यह जनहित याचिका दायर की है, जिसमें अदालत से संबंधित प्रशासन को हवाई किराये की सीमा तय करने तथा निजी एयरलाइनों को हवाई यात्रा के लिए मनमानेढंग से एवं गैर तार्किक ढंग से किराए वसूलने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
Surcharge on Debit/Credit cards
सरचार्ज पर हाई कोर्ट ने आरबीआइ से किया जवाब-तलब
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनेदेन पर अधिभार (सरचार्ज) लगाने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है। याची ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए है। अब लेनदेन मात्र क्रेडिट व डेबिट कार्ड से ही रह गया है। ऐसे में सरचार्ज लगाना अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। यह सरकार का मनमाना व भेदभावपूर्ण रवैया है।
सरचार्ज पर हाई कोर्ट ने आरबीआइ से किया जवाब-तलब
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनेदेन पर अधिभार (सरचार्ज) लगने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का जवाब मांगा, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाया गया अधिशुल्क अवैध तथा भेदभावकारी है. याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, 'क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है'. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई 'नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं'. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे 'गैर कानूनी' और 'भेदभावकारी' अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि '500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला 'लाभकारी' है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है'. इसमें कहा गया, 'मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्र हित में है'.
याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, 'क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है'. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई 'नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं'. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे 'गैर कानूनी' और 'भेदभावकारी' अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
याचिका में वकील अमित साहनी द्वारा कहा गया है, 'क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है'. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई 'नियम..दिशा-निर्देश बनाने तथा देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं'. उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे 'गैर कानूनी' और 'भेदभावकारी' अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके.
HC सख्त, वित्त मंत्रालय और RBI से पूछा-कार्ड पेमेंट पर सरचार्ज क्यों ?
डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर लगने वाले सरचार्ज के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। मंगलवार को कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा। हाई कोर्ट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को नोटिस भेजकर 19 अगस्त तक जवाब देने को कहा है।
कार्ड से भुगतान पर लगता है 2.5 फीसदी तक सरचार्ज
-कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार की रोक के बावजूद डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज लिए जा रहे हैं।
-इसमें कहा गया है कि अभी भी खुदरा दुकानदार कार्ड से भुगतान करने पर 2.5 फीसदी तक सरचार्ज वसूलते हैं।
-नगद भुगतान पर इस तरह का कोई सरचार्ज नहीं लिया जाता है।
बने गाइडलाइन
-मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई की।
कार्ड से भुगतान पर लगता है 2.5 फीसदी तक सरचार्ज
-कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार की रोक के बावजूद डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज लिए जा रहे हैं।
-इसमें कहा गया है कि अभी भी खुदरा दुकानदार कार्ड से भुगतान करने पर 2.5 फीसदी तक सरचार्ज वसूलते हैं।
-नगद भुगतान पर इस तरह का कोई सरचार्ज नहीं लिया जाता है।
बने गाइडलाइन
-मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई की।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा / डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
डेबिटऔर क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और रिजर्व बैंक से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया। एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका में कहा कि नोट बंद करना ठीक है। पर जब कोई नगद भुगतान करता है तो उसे कोई सरचार्ज नहीं देना पड़ता। लेकिन वह भुगतान क्रेडिट या डेबिट कार्ड से करता है तो 2.5% या इससे अधिक सरचार्ज लगता है। इससे नगद लेनदेन और अंतत: कालेधन को बढ़ावा मिलता है।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा / डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया। एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका में कहा कि नोट बंद करना ठीक है। पर जब कोई नगद भुगतान करता है तो उसे कोई सरचार्ज नहीं देना पड़ता। लेकिन वह भुगतान क्रेडिट या डेबिट कार्ड से करता है तो 2.5% या इससे अधिक सरचार्ज लगता है। इससे नगद लेनदेन और अंतत: कालेधन को बढ़ावा मिलता है। अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि '500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला 'लाभकारी' है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है'.
HC ने प्लास्टिक कार्ड पर सरचार्ज को लेकर केंद्र, RBI से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज 'अवैध' और 'भेदभावपूर्ण' है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा है कि सरचार्ज वसूलना न सिर्फ अवैध है, बल्कि यह कैश में काले धन के प्रवाह को भी बढ़ावा देता है। दायर याचिका में कहा गया है कि भारत दुनिया में सबसे कैश-इंटेंसिव इकनॉमीज में से एक है और यहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से होने वाले ट्रांजैक्शंस को बढ़ाने और कैश ट्रांजैक्शंस को हतोत्साहित करने की तत्काल आधार पर जरूरत है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर केंद्र, RBI तलब
एडवोकेट अमित साहनी के दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला लाभकारी है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिये लेनदेन पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।' इसमें कहा गया, 'मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्रहित में है।' याचिका के मुताबिक, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई नियम दिशा-निर्देश बनाने और देशभर में बैंकों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने अधिकारियों से दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया, जिससे कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर वसूले जा रहे 'गैर कानूनी' और 'भेदभावकारी' अधिशुल्क पर रोक लगाई जा सके।
कार्ड से भुगतान पर सरचार्ज वसूलना है गैरकानूनी | Lion Express
नई दिल्ली। डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर लगने वाले सरचार्ज के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। हाई कोर्ट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को नोटिस भेजकर 19 अगस्त तक जवाब देने के लिए कहा है। रोकने के लिए बने गाइडलाइन
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वित्त मंत्रालय और और आरबीआई से शपथपत्र देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के शपथपत्र देने के बाद कार्ड से भुगतान पर गैरकानूनी सरचार्ज को रोकने के लिए गाइडलाइन तैयार करें।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने एडवोकेट अमित साहनी की ओर से दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वित्त मंत्रालय और और आरबीआई से शपथपत्र देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के शपथपत्र देने के बाद कार्ड से भुगतान पर गैरकानूनी सरचार्ज को रोकने के लिए गाइडलाइन तैयार करें।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि जनहित याचिकाएं देश की आर्थिक नीतियों को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकती। हाई कोर्ट में क्रेडिट कार्ड व डेबिट कार्ड से ट्रांजेक्शन किए जाने पर लगने वाले सरचार्ज को चुनौती दी गई थी। आरबीआइ का कहना है कि इस जनहित याचिका में उठाया गया मुद्दा सीधे तौर पर देश की आर्थिक नीति को चुनौती दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है कि एक आम नागरिक के पास ऐसे मामलों में जनहित याचिका लगाने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट के समक्ष यह याचिका वकील अमित साहनी ने लगाई थी।
हाईकोर्ट ने क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन पर अधिभार लगाने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने कहा कि हमने इस मुद्दे पर पहले ही अगस्त माह में आरबीआई व वित्त मंत्रालय को इस मामले में निर्णय लेकर याचिकाकर्ता को सूचित करने का निर्देश दिया था।
बावजूद अभी तक जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता से कहा कि सरकार से पूछकर अपना पक्ष रखे। अदालत ने मामले की सुनवाई 4 जनवरी 2017 तय की है।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
बावजूद अभी तक जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता से कहा कि सरकार से पूछकर अपना पक्ष रखे। अदालत ने मामले की सुनवाई 4 जनवरी 2017 तय की है।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है।
क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन पर अधिभार लगाने केंद्र व आरबीआई से जवाब तलब
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा कि मंत्रालय और आरबीआई देशभर के बैंकों पर निगरानी के लिए दिशा निर्देश व नियम तय करते हैं। ऐसे में उन्हें क्रेडिट-डेबिट कार्ड से लेनदेन पर शुल्क लगाने पर रोक लगाने का निर्देश दिया जाए।
उन्होंने कहा अधिभार लगाना न केवल अवैध और भेदभावपूर्ण है बल्कि यह नगद में काले धन का प्रचलन को बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आम रूप से देखा गया है कि क्रेडिट व डेबिट से लेनदेन पर बैंक 2.5 प्रतिशत तक का लेवी अधिभार लगा रहे हैं। इस तरह का सरचार्ज नहीं लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा अधिभार लगाना न केवल अवैध और भेदभावपूर्ण है बल्कि यह नगद में काले धन का प्रचलन को बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आम रूप से देखा गया है कि क्रेडिट व डेबिट से लेनदेन पर बैंक 2.5 प्रतिशत तक का लेवी अधिभार लगा रहे हैं। इस तरह का सरचार्ज नहीं लगाया जाना चाहिए।
डेबिट, क्रेडिट कार्ड सरचार्ज पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज 'अवैध' और 'भेदभावपूर्ण' है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। बेंच ने कहा, 'प्रतिवादियों (फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक) को सुनवाई की अगली तारीख चार जनवरी 2017 से पहले निर्देश मिलेगा।' एडवोकेट अमित साहनी की तरफ से दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला 'लाभकारी' है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए ट्रांजैक्शंस पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।'
कार्डावरील अधिभाराला न्यायालयाचा आक्षेप
विनारोकड व्यवहारांमध्ये महत्त्वाची भूमिका बजावणाऱ्या डेबिट अथवा क्रेडिट कार्डच्या वापरावर बेकायदा अधिभार वसूल करण्याच्या पद्धतीवर दिल्ली उच्च न्यायालयाने आक्षेप घेतला आहे. यासंदर्भात न्यायालयाने केंद्र सरकार आणि रिझर्व्ह बँकेकडून खुलासा मागवला आहे. अॅड. अमित साहनी असे याचिका दाखल करणाऱ्याचे नाव आहे. ‘कॅशलेस पेमेंटच्या संदर्भात मार्गदर्शक तत्त्वे जारी करण्याची जबाबदारी अर्थ मंत्रालय आणि रिझर्व्ह बँकेची आहे. कार्ड पेमेंटवर सरचार्ज वसूल करणे बेकायदा नसले तरी, अशा कृत्यांमुळे कॅशलेस व्यवहारांना फाटा देऊन काळ्या पैशाच्या निर्मितीला प्रोत्साहन देण्याचा हा प्रकार आहे,’ असे अॅड. साहनी यांनी याचिकेत नमूद करण्यात आले आहे. आज देशभरात रोख खरेदी करण्याला प्राधान्य देण्यात येत आहे. त्यामुळे कॅशलेस व्यवहार बाजूला पडत असल्याची खंतही अॅड. साहनी यांनी व्यक्त केली.
डेबिट, क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर अधिभार के खिलाफ न्यायालय में याचिका
दिल्ली उच्च न्यायालय में डेबिट और क्रेडिट कार्डों के जरिये किए जाने वाले भुगतान पर लगने वाले अधिभार के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है। नकद भुगतान की स्थिति में ऐसा कोई अधिभार नहीं लगाया जाता। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये पेट्रोल मूल्य का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना बर्ताव देखने को मिलता है। इस याचिका की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाली पीठ कर सकती है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड के जरिये भुगतानों पर लगाए जाने वाले गैरकानूनी और भेदभाव वाले अधिभार को रोकने के लिए दिशानिर्देश तय करने की दिशा में उचित कदम उठाने के निर्देश वित्त मंत्राालय और भारतीय रिजर्व बैंक को दिए जाएं। याचिका में कहा गया है कि नकद भुगतान करने की स्थिति में ऐसा कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर चार्ज को लेकर हाई कोर्ट ने केंद्र-आरबीआई से मांगा जवाब
जनहित याचिका में डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाए गए अधिशुल्क को ‘अवैध’ तथा ‘भेदभावकारी’ बताया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शंस पर लगाया गया सरचार्ज 'अवैध' और 'भेदभावपूर्ण' है। दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की बेंच ने कहा कि अगस्त में वह पहले ही फाइनेंस मिनिस्ट्री, रिजर्व बैंक को इस मुद्दे पर फैसला करने और इस बारे में याचिकाकर्ता को सूचित किए जाने का निर्देश दे चुकी है। बेंच ने कहा, 'प्रतिवादियों (फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक) को सुनवाई की अगली तारीख चार जनवरी 2017 से पहले निर्देश मिलेगा।' एडवोकेट अमित साहनी की तरफ से दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला 'लाभकारी' है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए ट्रांजैक्शंस पर सरचार्ज में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रुख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।'
डेबिट-क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर सरचार्ज पर केंद्र से मांगा जवाब
डेबिट व क्रेडिट कार्ड से लेनदेन करने पर सरचार्ज लिए जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व न्यायमूर्ति जयंतनाथ की खंडपीठ ने मामले में केंद्र सरकार (वित्त मंत्रालय) व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी। याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है। अमित के अनुसार देश में नकद भुगतान पर सरचार्ज नहीं लिया जाता है, जबकि क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन करने पर 2.5 फीसद या इससे अधिक दर के हिसाब से सरचार्ज लिया जाता है। ऐसे में काले धन को नकद इस्तेमाल करने की तरफ बढ़ावा मिलेगा। यह गैरकानूनी है। यह नकद व कार्ड से लेन-देन करने वाले लोगों के साथ भेदभाव है। अदालत इसके खिलाफ दिशानिर्देश बनाने का निर्देश जारी करे। वित्त मंत्रालय देशभर में इस पर निगरानी रखे।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर अधिशुल्क को लेकर केंद्र से जवाब मांगा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका पर केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का जवाब मांगा जिसमें कहा गया है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन पर लगाया गया अधिशुल्क ‘‘अवैध’’ तथा ‘‘भेदभावकारी’’ है। अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद किए जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला ‘‘लाभकारी है, जबकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन पर अधिशुल्क में छूट देने के मुद्दे पर सरकार का रख अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।’’ इसमें कहा गया, ‘‘मौजूदा याचिका में उठाया गया मुद्दा लगभग उस हर व्यक्ति को प्रभावित करता है जिसका बैंक खाता है और यह बड़े स्तर पर राष्ट्र हित में है।’’ याचिका में कहा गया है, ‘‘क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए पेट्रोल का भुगतान करने पर गैर कानूनी, असमान और मनमाना व्यवहार प्रत्यक्ष है।’’
डेबिट, क्रेडिट कार्डच्या अधिभाराविरोधात याचिका
नवी दिल्ली- देशात डेबिट, क्रेडिट कार्डच्या सहाय्याने व्यवहार करणा-यांना अडीच टक्के अधिभार द्यावा लागतो. हा अधिभार अन्यायकारक असून तो रद्द करण्याच्या मागणीसाठी दिल्ली उच्च न्यायालयात याचिका दाखल करण्यात आली आहे.
वकील अमित साहनी यांनी उच्च न्यायालयात जनहित याचिका दाखल केली आहे. क्रेडिट व डेबिट कार्डच्या सहाय्याने पेट्रोल भरताना अधिभार लादला जातो. मात्र, रोख रक्कम भरताना कोणतेही शुल्क आकारले जात नाही. हा ग्राहकांवर अन्याय असल्याचे याचिकादाराचे म्हणणे आहे.
वकील अमित साहनी यांनी उच्च न्यायालयात जनहित याचिका दाखल केली आहे. क्रेडिट व डेबिट कार्डच्या सहाय्याने पेट्रोल भरताना अधिभार लादला जातो. मात्र, रोख रक्कम भरताना कोणतेही शुल्क आकारले जात नाही. हा ग्राहकांवर अन्याय असल्याचे याचिकादाराचे म्हणणे आहे.
TRAFFIC JAAM
ट्रैफिक चालान प्रक्रिया बदलने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा केंद्र और दिल्ली पुलिस से जवाब
नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पुराने मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत मौके पर ही चालान जमा करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की थी कि संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट के चलते लोगों को चालान की राशि जमा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल 2020 को होगी। सुनवाई के दौरान बेंच ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि आप मोटर व्हीकल एक्ट के तहत अपराधों के लिए अधिकारियों को सूचित क्यों नहीं करते हैं, यह हम सभी के फायदेमंद है। वकील अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट 2019 लागू होने के बाद लोगों की परेशानी बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि लालबत्ती जंप या बिना हेलमेट वाहन चलाने पर कटने वाले चटालान के लिए या तो कोर्ट जाना पड़ता है या फिर ऑनलाइन चालानन भरना पड़ता है। जिसमें क्रेडिट या डेबिट कार्ड का प्रयोग करना पड़ता है।
दिल्ली की सीमाओं पर जाम से मुक्ति की मांग को लेकर जनहित याचिका
दिल्ली उच्च न्यायालय में आज एक जनहित याचिका दायर कर दिल्ली की सीमाओं पर यातायात को सुगम बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की गयी है। वहां टोल संग्रहकर्ताओं द्वारा वाणिज्यिक वाहनों को रोकने से भयंकर जाम लग जाता है। अर्जी में कहा गया है कि वाणिज्यिक वाहनों के कर संग्रहण में बिल्कुल कुप्रबंधन है जिससे अन्य वाहनों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की अर्जी में कहा गया है, ‘‘वाणिज्यिक वाहनों से टोल संग्रहण के कारण अन्य वाहनों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, भयंकर जाम लग जाता है, हजारों लोगों का बेशकीमती समय बर्बाद हो जाता है, वायु प्रदूषण और ध्वनि
टोल पर ट्रैफिक स्मूद बने : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने नैशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) और साउथ एमसीडी से कहा कि वे एनसीआर के आसपास के इलाकों में ट्रैफिक के सुचारू संचालन संबंधी अपील पर अपना रुख तय करें। इन इलाकों में टोल कलेक्टर कमर्शल गाड़ियों को रोकते हैं और इससे गाड़ियों की लंबी कतार लग जाती है। बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील अमित साहनी को एनएचएआई और साउथ एमसीडी के सामने अपनी बात रखने का निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया था कि बॉर्डर्स पर कमर्शल गाड़ियों से टोल जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे दूसरी गाड़ियों को भारी समस्या पैदा होती है। याचिकाकर्ता ने इस मामले में एनएचएआई और दिल्ली सरकार को निर्देश दिए जाने की अपील की थी।
दिल्ली की सीमाओं पर जाम से मुक्ति की मांग को लेकर जनहित याचिका - Prabha Sakshi | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय में आज एक जनहित याचिका दायर कर दिल्ली की सीमाओं पर यातायात को सुगम बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की गयी है। वहां टोल संग्रहकर्ताओं द्वारा वाणिज्यिक वाहनों को रोकने से भयंकर जाम लग जाता है। अर्जी में कहा गया है कि वाणिज्यिक वाहनों के कर संग्रहण में बिल्कुल कुप्रबंधन है जिससे अन्य वाहनों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की अर्जी में कहा गया है, ''वाणिज्यिक वाहनों से टोल संग्रहण के कारण अन्य वाहनों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, भयंकर जाम लग जाता है, हजारों लोगों का बेशकीमती समय बर्बाद हो जाता है, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण फैलता है।''
AADHAR CARD CAN BE USED FOR MISSING PEOPLE
'गुमशुदा लोगों को मिलाने के लिए आधार कार्ड का हो इस्तेमाल'
गुमशुदा लोगों को उनके परिजनों से मिलाने के मामले में आधार कार्ड विवरण का उपयोग करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व सी हरिशंकर की पीठ ने गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर आधार कार्ड विवरण के संबंध में जागरूकता फैलाने का आदेश दिया। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।
याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित और अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें। याचिका में कहा गया कि आधार कार्ड को लेकर काफी चर्चा हुई है और इसकी संवैधानिक वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन यह गुमशुदा लोगों की तलाश में एक बड़ा माध्यम बन सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 के आकड़ों के अनुसार देश में कुल गायब व्यक्ति 5,49,008 हैं और अब भी 3,19,627 का कोई पता नहीं लगा है।
याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित और अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें। याचिका में कहा गया कि आधार कार्ड को लेकर काफी चर्चा हुई है और इसकी संवैधानिक वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन यह गुमशुदा लोगों की तलाश में एक बड़ा माध्यम बन सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 के आकड़ों के अनुसार देश में कुल गायब व्यक्ति 5,49,008 हैं और अब भी 3,19,627 का कोई पता नहीं लगा है।
गुमशुदा लोगों को मिलाने के लिए आधार कार्ड का हो इस्तेमाल : दिल्ली हाईकोर्ट
गुमशुदा लोगों को उनके परिजनों से मिलाने के मामले में आधार कार्ड विवरण का उपयोग करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर आधार कार्ड विवरण के संबंध में जागरूकता फैलाने का आदेश दिया।
मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित व अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें
मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने कहा कि केंद्र को लापता बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के आधार कार्ड का उपयोग करने के लिए अधिकारियों को उचित व अनिवार्य निर्देश जारी करें, ताकि वे पुनर्मिलन के उद्देश्य से तुरंत उन्हें अपने परिवारों से संपर्क करा सकें
लापता लोगों को आधार के जरिए मिलाने का निर्देश देने की मांग
एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरि शंकर की बेंच ने याचिका पर गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया। याचिका में देशभर में लापता लोगों को उनके परिवार से मिलाने के लिए पहले से ही मौजूद उनके बायोमीट्रिक और आधार डिटेल्स का पता लगाने के संबंध में जनता में जागरुकता पैदा करने का प्रशासन को निर्देश देने की भी मांग की गई है। बेंच ने याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी की मांग पर सरकार को इसकी भी रिपोर्ट देने के लिए कहा है कि उसने इस दिशा में अब तक क्या कदम उठाए हैं। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी। याचिका में कहा गया है कि लापता लोगों के बायोमीट्रिक और आधार के इस्तेमाल पर केंद्र को उचित और जरूरी निर्देश जारी करने को कहा जाए। इससे लापता बच्चे, बुजुर्ग व्यक्तियों और मानसिक रूप से बीमार लोगों का पता लगाने और किसी भी विभाग द्वारा उन्हें बचाए जाने की स्थिति में उन्हें उनके परिवार से मिलाया जा सकेगा।
गुमशुदा व्यक्ति के ‘आधार’ इस्तेमाल से जुड़ी याचिका पर दिल्ली HC ने केंद्र से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को लापता बच्चों की आधार की जानकारी को इस्तेमाल करने के लिए दायर की गई एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दिल्ली हाईकोर्ट के ऐसा करने के पीछे की मंशा लापता बच्चों, बुजुर्गों और दिव्यांग को ढूंढने और उन्हें उनके परिवार से मिलाने की है। अपनी याचिका में अमित साहनी ने दलील दी थी कि गृह मंत्रालय ने अभी तक इस बात पर जवाब नहीं दिया है। याचिका में यह भी कहा गया कि व्यक्ति के आधार से जानकारी लेने के लिए एक प्रक्रिया का गठन होना चाहिए जिससे उन्हें अपने परिवार के साथ मिलाया जा सके।
याचिका के अनुसार, लापता बच्चे का समय पर मिलने का महत्व केवल तभी समझा जा सकता है जब कोई लापता बच्चा या मां की भावनाओं के साथ सहानुभूति देता है।
याचिका के अनुसार, लापता बच्चे का समय पर मिलने का महत्व केवल तभी समझा जा सकता है जब कोई लापता बच्चा या मां की भावनाओं के साथ सहानुभूति देता है।
अगर आधार से लापता बच्चों का पता लग सकता है तो शवों की पहचान क्यों नहीं? : याचिका - Dainiksaveratimes hindi | DailyHunt
नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय में मंगलवार को दायर की गई एक याचिका में सवाल उठाया गया कि अगर आधार बायोमेट्रिक के इस्तेमाल से लापता बच्चों का पता लगाया जा सकता है तो इसी प्रणाली का प्रयोग मृत व्यक्तियों की पहचान के लिए क्यों नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की एक पीठ ने केंद्र और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यूआईडीएआई से इस आवेदन पर मामले की अगली सुनवाई यानि पांच फरवरी तक जवाब देने को कहा है। यह आवेदन सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील अमित साहनी ने दाखिल करवाया है जिन्होंने अपनी मुख्य याचिका में अज्ञात शवों की पहचान के लिए केंद्र एवं यूएआईडीएआई को आधार बायोमेट्रिक का प्रयोग करने का निर्देश देने की मांग की है।
आधार के जरिये हो अज्ञात शवों की शिनाख्त, UIDAI ने कहा- ऐसा करना तकनीकी-कानूनी रूप से सही नहीं’
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है. नई दिल्ली : भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है.
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है.
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए.
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यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था.
हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है. साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की.
यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है.
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए.
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यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था.
हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है. साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की.
यूआईडीएआई ने कहा- आधार के बायोमेट्रिक्स में शव के फिंगरप्रिंट का मिलान संभव नहीं
यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को सोमवार को बताया कि अज्ञात शव की पहचान के लिए आधार बायोमेट्रिक्स का इस्तेमाल संभव नहीं है। यूआईडीएआई ने चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच से कहा कि फिंगरप्रिंट और आईरिस जैसे बायोमेट्रिक का मिलान 1:1 आधार पर किया जाता है और इसके लिए आधार नंबर जरूरी होता है। शव के फिंगरप्रिंट का मिलान 120 लोगों के आधार बायोमेट्रिक डाटा से करना तकनीकी रूप से संभव नहीं है। हाईकोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपील की थी कि कोर्ट केंद्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान करने के लिए बायोमेट्रिक डाटा का इस्तेमाल करने के संबंध में निर्देश दे।
याचिका में कहा गया था कि यूआईडीएआई के पास आधार डाटा है तो उसे एनसीआरबी और राज्यों के साथ शेयर किया जाए, ताकि अज्ञात शवों की पहचान हो सके।
अगर किसी अज्ञात शव के बायोमेट्रिक्स आधार के पास मौजूद हैं, तो उसे तुरंत अधिकारियों को शेयर करने के लिए निर्देश दिए जाएं, ताकि मृतक के परिवारवाले सम्मानपूर्वक शव का अंतिम संस्कार कर सकें।
आधार डाटा बेस का इस्तेमाल कर लापता लोगों का भी पता लगाया जा सकता है, इस संबंध में भी कोर्ट निर्देश दे।
आधार एक्ट के तहत अज्ञात शवों के संबंध में मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का निर्देश दिया जाए, जो एक या दो दिन में मामले का निपटारा करे।
याचिका में कहा गया था कि यूआईडीएआई के पास आधार डाटा है तो उसे एनसीआरबी और राज्यों के साथ शेयर किया जाए, ताकि अज्ञात शवों की पहचान हो सके।
अगर किसी अज्ञात शव के बायोमेट्रिक्स आधार के पास मौजूद हैं, तो उसे तुरंत अधिकारियों को शेयर करने के लिए निर्देश दिए जाएं, ताकि मृतक के परिवारवाले सम्मानपूर्वक शव का अंतिम संस्कार कर सकें।
आधार डाटा बेस का इस्तेमाल कर लापता लोगों का भी पता लगाया जा सकता है, इस संबंध में भी कोर्ट निर्देश दे।
आधार एक्ट के तहत अज्ञात शवों के संबंध में मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का निर्देश दिया जाए, जो एक या दो दिन में मामले का निपटारा करे।
‘शवों की शिनाख्त के लिए आधार का इस्तेमाल व्यावहारिक नहीं’
Delhi Samachar: यूआईडीएआई ने मंगलवार को हाई कोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फरेंसिक कामों के लिए करना कानूनी और तकनीकी रूप से व्यावहारिक नहीं है। यूआईडीएआई ने चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिए करना आधार अधिनियम के खिलाफ है। हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने कोर्ट से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिए किया जा रहा है। इसलिए इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिए भी किया जा सकता है।
आधार बायोमैट्रिक्स से नहीं हो सकती मरे हुए लोगों की पहचान: UIDAI
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केन्द्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान के लिए आधार बायोमैट्रिक्स के इस्तेमाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ से कहा कि फिंगरप्रिंट, आंख की पुतली सहित बायोमैट्रिक्स का मिलान आमने-सामने से किया जाता है और इसके लिए आधार संख्या की जरूरत पड़ती है. अदालत सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केन्द्र और यूआईडीएआई को अज्ञात शवों की पहचान के लिए आधार बायोमैट्रिक्स के इस्तेमाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
शवों की पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल ठीक नहीं:यूआईडीएआई -
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिये करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है। यूआईडीएआई ने मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमुर्ति वी के राव की पीठ को बताया कि आधार बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल शवों की पहचान के लिये करना आधार अधिनियम के विपरीत है।
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए। यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है। साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की है।
प्राधिकरण की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले साल के अपने एक फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक्स का इस्तेमाल अधिनियम में तय उद्देश्यों के इतर किसी और उद्देश्य के लिये नहीं होना चाहिए। यूआईडीएआई ने कहा कि आधार अधिनियम को सुशासन और सब्सिडियों, फायदों, सेवाओं और सामाजिक योजनाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण के लिये बनाया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है। साहनी के जवाब पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने यूआईडीएआई से जवाब मांगते हुए मामले की अगली तारीख 23 अप्रैल को तय की है।
बड़ी खबर: UIDAI ने आधार में किया बदलाव, अपनों से मिलने पर इस कारण लगाई रोक – dailyindia
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि आधार बायोमीट्रिक का इस्तेमाल शवों की पहचान जैसे फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए करना वैधानिक और तकनीकी रूप से व्यवहारिक नहीं है. हालांकि, याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अदालत से कहा कि आधार का इस्तेमाल लापता बच्चों की तलाश और पहचान के लिये किया जा रहा है, इसलिये इसका इस्तेमाल अज्ञात शवों की पहचान के लिये भी किया जा सकता है.
MEDICINES WITH EXPIRED DATE
एक्सपायर डेट की दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग, केंद्र सरकार को नोटिस
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक्सपायर हो चुकी दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि दवाइयों के स्ट्रिप पर एक्सपायरी डेट लगाने के वर्तमान सिस्टम को बदलने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि दवाइयों के स्ट्रिप में एक्सपायरी डेट बदलकर उसे दोबारा इस्तेमाल कर लिया जाता है। ये करना काफी आसान होता है ।
याचिका में कहा गया है कि आफ्टर शेव लोशन का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट को हटाने में किया जाता है। उसके बाद दवाइयों के स्ट्रिप पर दोबारा नया मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट का स्टांप लगा दिया जाता है। ऐसा करना भले ही मुनाफा कमाने के लिए सही हो लेकिन ये लोगों के स्वास्थ्य के साथ गंभीर धोखा है।
याचिका में कहा गया है कि आफ्टर शेव लोशन का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट को हटाने में किया जाता है। उसके बाद दवाइयों के स्ट्रिप पर दोबारा नया मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट का स्टांप लगा दिया जाता है। ऐसा करना भले ही मुनाफा कमाने के लिए सही हो लेकिन ये लोगों के स्वास्थ्य के साथ गंभीर धोखा है।
नए लेबल लगाकर बाजार में बेची जा रही हैं एक्सपायर हो चुकी दवाइयां,इन्हें खाने से जा सकती है जान - Live India | DailyHunt
New Delhi : दवाओं की मियाद खत्म होने पर उनके उत्पादन और एक्सपायरी की तारीख मिटाकर नये सिरे से उनकी बिक्री को 'गंभीर' करार देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले को देखना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने कहा कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता और अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
एक्सपायर डेट की दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने कहा कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता और अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। अदालत ने कहा, ''यह गंभीर मामला है।'' अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
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अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों को इसे देखना होगा। अदालत ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी किया। अदालत ने कहा, ''यह गंभीर मामला है।'' अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।
वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि समाप्त हो जाती है, अपराधी उनकी मूल उत्पादन और अवधि समाप्त होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
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पुरानी दवाओं की बिक्री पर रोक संबंधी याचिका पर जवाब तलब
राजधानी में पुरानी दवाओं की बाजार में बिक्री रोकने की व्यवस्था करने के लिए दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से जवाब मांगा है। जनहित याचिका में कहा गया है कि जिन दवाओं की मियाद खत्म हो चुकी है उन्हें भी दोबारा स्टांप लगाकर बाजार में बेचा जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर चार सप्ताह के भीतर संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 11 मार्च की तारीख तय की गई है।
जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित साहनी का आरोप है कि पुरानी दवाओं को पैकिंग पर कीमत और मियाद की फर्जी स्टांप लगाकर बेचा जा रहा है। इस गोरखधंधे में लगे लोग दवा के लिफाफे से उसके निर्माण की तिथि और मूल्य को स्प्रिट से मिटा देते हैं और उस पर नए तारीख डालकर काफी कीमत पर बाजार में बेच देते हैं।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर चार सप्ताह के भीतर संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 11 मार्च की तारीख तय की गई है।
जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित साहनी का आरोप है कि पुरानी दवाओं को पैकिंग पर कीमत और मियाद की फर्जी स्टांप लगाकर बेचा जा रहा है। इस गोरखधंधे में लगे लोग दवा के लिफाफे से उसके निर्माण की तिथि और मूल्य को स्प्रिट से मिटा देते हैं और उस पर नए तारीख डालकर काफी कीमत पर बाजार में बेच देते हैं।
नए लेबल लगाकर मार्केट में बेची जा रही हैं एक्सपायरी दवाई
दवाओं की मियाद समाप्त होने पर उनके उत्पादन व एक्सपायरी की तारीख मिटाकर नये सिरे से उनकी बिक्री को ‘गंभीर’ करार देते हुए दिल्ली उच्च कोर्ट ने शुक्रवार को बोला कि केंद्र गवर्नमेंट को इस मामले को देखना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने बोला कि मुख्य रूप से इस तरह की गतिविधियां कोलकाता व अहमदाबाद में चल रही हैं जहां एक्सपायर हो चुकी दवाओं पर फिर से मुहर लगाकर दिल्ली के रास्ते दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। एडवोकेट अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि जिन दवाओं के उपयोग की समयावधि खत्म हो जाती है, क्रिमिनल उनकी मूल उत्पादन व अवधि खत्म होने की तारीख मिटाकर नये सिरे से मुहर लगाकर बेचते हैं।
CHEETING OF PETROL PUMP OWNERS
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रुक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी! सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से कहा ‘ध्यान दें’
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में "माइक्रोचिप" लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
पेट्रोल पंप पर ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए दाखिल की है। उन्होंने कहा है कि पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रॉनिक चिप, रिमोट और अपारदर्शी हौज पाइपों से ग्राहकों को ठगा जा रहा है।
पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है। इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता। यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है। विषम नंबर की राशि में तेल लेने वाले थोड़ा बच जाते हैं।
पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है। इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता। यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है। विषम नंबर की राशि में तेल लेने वाले थोड़ा बच जाते हैं।
पेंट्रोल पंप पर ग्राहकों से हो रही धोखाधड़ी पर लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए ये आदेश
इन दिनों देश के कई हिस्सों में पेट्रोल पंपो पर आम जनता के साथ हुई धोखाधड़ी जैसे मामले सामने आ रहे हैं । जिस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर के पेट्रोल पंपों पर हो रही धोखाधड़ी को रोकने के लिए अहम कदम उठाएं । दरअसल अधिवक्ता अमित साहनी ने पीआईएल पर आरोप लगाया कि कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से पेट्रोल भरने या दूसरा तरीका अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं । जिसके बाद अधिवक्ता अमित साहनी के इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की । बता दें कि इस याचिका में यह भी कहा गया है कि, कुछ पोट्रोल पंप पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए पेट्रोल के माप को बढ़ाने और घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ।
ईंधन स्टेशनों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय में याचिका दायर
उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करके देश के कई ईंधन स्टेशनों द्वारा धोखाधड़ी किये जाने का आरोप लगाया गया है और इस संबंध में पारदर्शिता लाने की मांग की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि पेट्रोल पंप मालिक ग्राहकों के साथ ‘व्यवस्थित और संगठित धोखाधड़ी’ कर रहे हैं। याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया है कि पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये उनका उचित नियमन करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा, ‘ईंधन डालने में इस्तेमाल होने वाली काली हौज पाइपों की जगह पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल हो ताकि उपभोक्ता उसके वाहन में डाले जा रहे ईंधन को देख सकें।’’ याचिका में हालांकि कहा गया है कि याचिकाकर्ता के ज्ञापन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
पेट्रोल पंप पर हर दिन होने वाली ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका - Palpal India | DailyHunt
नई दिल्ली. पेट्रोल पंप पर कम माप कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है. यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रॉनिक चिप, रिमोट और अपारदर्शी हौज पाइपों से ग्राहकों को ठगा जा रहा ह… पंप पर हाई तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों में कम पेट्रोल/डीजल डाला जा रहा है. इस ठगी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है. वेंडिंग मशीन पर मीटर संख्या दर्शाती है, लेकिन पेट्रोल वाहन में नहीं जाता. यह प्रणाली पूरे देश में धड़ल्ले से चल रही है और बेचारे ग्राहक हर मिनट ठगे जा रहे हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राउंड फिगर जैसे एक हजार, पांच सौ या दो हजार रुपये का तेल खरीदने वाले तो निश्चित रूप से ठगे जाते है.
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया - Hindnews24x7 | DailyHunt
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में "माइक्रोचिप" लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में "माइक्रोचिप" लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रूक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी - 24 Ghante Online | Latest Hindi News
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं. इसके अलावा साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने अधिवक्ता प्रीति सिंह के जरिए…
पेट्रोल पंप पर ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर घटतौली कर ग्राहकों से ठगी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (Petition) दायर की गई है। यह याचिका अमित साहनी ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि पेट्रोल पंप मालिक ग्राहकों के साथ ‘व्यवस्थित और संगठित धोखाधड़ी’ कर रहे हैं। याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया है कि पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये उनका उचित नियमन करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा, ‘ईंधन डालने में इस्तेमाल होने वाली काली हौज पाइपों की जगह पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल हो ताकि उपभोक्ता उसके वाहन में डाले जा रहे ईंधन को देख सकें।’’
पेट्रोल पंपों पर पारदर्शिता और निष्पक्षता का ध्यान दें केंद्र और पेट्रोलियम मंत्रालय- SC
SC ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वो देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं। SC में याचिका दायर करते हुए अधिवक्ता अमित साहनी ने कहा पेट्रोल पंप पल्स मीटर में ”माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं। गौरतलब है कि जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिए हैं
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया - Khabar India Network
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ जगहों पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए ईंधन के माप को बढ़ाने या घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस तरह से पेट्रोल पंपों पर रूक सकती है ग्राहकों से धोखाधड़ी - Ujjawal Prabhat | उज्जवल प्रभात
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली खाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए याचिका में सलाह में दी गई कि पेट्रोल पंपों पर ईंधन वेंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले काली होज़ पाइपों के बदले को पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि उपभोक्ता अपने वाहनों में डाले जाने वाले ईंधन को साफ देख सकें.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि माप के साथ पारदर्शी डिस्पेंसर भी पेट्रोल पंपों पर फ्यूल वेंडिंग मशीन से जोड़ा जाए जिससे ईंधन पहले पारदर्शी डिस्पेंसर में भरा जाए है और फिर पारदर्शी नली के माध्यम से वाहन में भरा जाए.
अधिवक्ता अमित साहनी ने जनहित याचिका में यह भी कहा कि खबरों के अनुसार, देश भर के पेट्रोल पंपों पर धोखा इस हद तक है कि इस धोखाधड़ी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्री ने खुद राज्य सरकारों को पेट्रोल पंपों पर औचक निरीक्षण करने और चिप्स की जांच करने की सलाह दी थी.
ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए याचिका में सलाह में दी गई कि पेट्रोल पंपों पर ईंधन वेंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले काली होज़ पाइपों के बदले को पारदर्शी पाइपों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि उपभोक्ता अपने वाहनों में डाले जाने वाले ईंधन को साफ देख सकें.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि माप के साथ पारदर्शी डिस्पेंसर भी पेट्रोल पंपों पर फ्यूल वेंडिंग मशीन से जोड़ा जाए जिससे ईंधन पहले पारदर्शी डिस्पेंसर में भरा जाए है और फिर पारदर्शी नली के माध्यम से वाहन में भरा जाए.
पेंट्रोल पंप पर ग्राहकों से हो रही धोखाधड़ी पर लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए ये आदेश
दरअसल अधिवक्ता अमित साहनी ने पीआईएल पर आरोप लगाया कि कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में “माइक्रोचिप” लगाकर तेजी से पेट्रोल भरने या दूसरा तरीका अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं । जिसके बाद अधिवक्ता अमित साहनी के इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की । बता दें कि इस याचिका में यह भी कहा गया है कि, कुछ पोट्रोल पंप पर ग्राहकों के व्यवहार को देखते हुए पेट्रोल के माप को बढ़ाने और घटाने के लिए रिमोट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ।
मिली जानकारी के मुताबिक, पेट्रोल पंप पर लगातार हो रही धोखाधड़ी इतनी बढ़ गई है कि, खुद पेट्रोलियम मंत्री ने राज्य सरकार को सलह दी थी कि, सभी पेट्रोल पंप पर औचक निरीक्षण और चिप्स की जांच की जाए। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी थी कि, पारदर्शी डिस्पेंसर को पेट्रोल पंपो से जोड़ा जाए जिससे इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकता है।
मिली जानकारी के मुताबिक, पेट्रोल पंप पर लगातार हो रही धोखाधड़ी इतनी बढ़ गई है कि, खुद पेट्रोलियम मंत्री ने राज्य सरकार को सलह दी थी कि, सभी पेट्रोल पंप पर औचक निरीक्षण और चिप्स की जांच की जाए। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी थी कि, पारदर्शी डिस्पेंसर को पेट्रोल पंपो से जोड़ा जाए जिससे इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकता है।
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ SC का दरवाजा खटखटाया गया - Hindnews24x7 | DailyHunt
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों से की जाने वाली धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. शीर्ष अदालत ने खुद केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह देशभर में पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी को रोकने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कदम उठाएं. जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिए.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में "माइक्रोचिप" लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. अधिवक्ता ने पीआईएल में आरोप लगाया था कि पेट्रोल पंप पल्स मीटर में "माइक्रोचिप" लगाकर तेजी से ईंधन भरने या दूसरे तरीके अपनाकर ग्राहकों को कम ईंधन का वितरण कर धोखा देते हैं.
पेट्रोल पंप पर पारदर्शिता को लेकर दायर की याचिका
देशभर में कई पेट्रोल पंपों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। वकील अमित साहनी ने याचिका में दावा किया है कि कई पैट्रोल पंप मालिक उपभोक्ताओं के साथ सुव्यवस्थित और संगठित ढंग धोखाधड़ी कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता में कहा गया है कि याचिकाकर्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न खबरों, राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर दिखाए गए वीडियों और यूट्यूब समेत सोशल मीडिया वेबसाइट पर मौजूद वीडियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आया है। इन मीडिया माध्यमों से स्पष्ट है कि पेट्रोल पंपों पर गड़बड़ी की जा रही है। ऐसे में पेट्रोल पंपो पर अधिक पारदर्शिता बनाए जाने जरूरत है।
याचिकाकर्ता में कहा गया है कि याचिकाकर्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न खबरों, राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर दिखाए गए वीडियों और यूट्यूब समेत सोशल मीडिया वेबसाइट पर मौजूद वीडियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आया है। इन मीडिया माध्यमों से स्पष्ट है कि पेट्रोल पंपों पर गड़बड़ी की जा रही है। ऐसे में पेट्रोल पंपो पर अधिक पारदर्शिता बनाए जाने जरूरत है।
NEW JAIL MANNUAL
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नई जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजधानी की आप सरकार और उपराज्यपाल से जवाब मांगा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि नई जेल नियमावली पर उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली। उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है। याचिका में दावा किया गया, ‘‘पिछले नियमों के विपरीत, डीपीआर, 2018 की शुरुआती पंक्तियों में न तो उपराज्यपाल से मंजूरी का जिक्र है और ना ही इसमें यह बात कही गई है कि भविष्य में उपराज्यपाल द्वारा इस संबंध में जारी अधिसूचना के बाद ये नियम लागू होंगे।’’
नयी जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को अदालत में चुनौती दी गयी
दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को एक याचिका सुनवाई के लिए आयी जिसमें नयी जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए आरोप लगाया गया है कि इस मामले में उपराज्यपाल से अनुमति नहीं ली गयी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति मनोज ओहरी की पीठ ने कहा कि इस याचिका की प्रकृति जनहित याचिका की है। पीठ ने इसे उचित पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली जेल नियमावली (डीपीआर) 2018 के लिए उपराज्यपाल से अनुमति नहीं मांगी है और इससे यह ‘‘असंवैधानिक’’ हो जाती है। याचिका में दावा किया गया है कि डीपीआर कानून के अनुसार गलत है और यह रद्द किए जाने के लायक है।
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की।अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
नई जेल नियमावली को चुनौती : हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार, एलजी से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने नई जेल नियमावली की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजधानी की 'आप' सरकार और उपराज्यपाल से जवाब मांगा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि नई जेल नियमावली पर उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए.जे. भंभानी की बैंच ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए.जे. भंभानी की बैंच ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
नई जेल नियमावली को चुनौती: अदालत ने दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने प्राधिकारों को नोटिस जारी किया और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर की तारीख तय की।
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली कारागार नियम (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली।
उन्होंने कहा कि ये नियमावली ‘‘असंवैधानिक’’ और निरस्त करने लायक है।
नए जेल मैनुअल को चुनौती पर नोटिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने नए जेल मैनुअल की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आप सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) से जवाब मांगा है। याचिका में आरोप है कि नई जेल नियमावली (मैनुअल) पर एलजी की मंजूरी नहीं ली गई। चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भंभानी की बेंच ने अथॉरिटीज को नोटिस जारी कर मामले में अगली सुनवाई के लिए 2 सितंबर की तारीख तय कर दी। सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट अमित साहनी ने यह याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली प्रीजन रूल्स (डीपीआर), 2018 को अमल में लाने से पहले एलजी की मंजूरी नहीं ली। उन्होंने कहा कि ये नियमावली असंवैधानिक और निरस्त किए जाने लायक है। याचिका में दावा किया गया है कि पिछले नियमों के विपरीत, डीपीआर, 2018 की शुरुआती लाइनों में न तो एलजी से मंजूरी का जिक्र है और न ही इसमें यह बात कही गई है कि एलजी द्वारा इस संबंध में जारी नोटिफिकेशन के बाद ये नियम लागू होंगे।
DOCTORS PRESCRIPTION IN CAPITAL LETTERS
आदेश के बाद भी डॉक्टर नहीं लिख रहे बड़े अक्षरों में दवाओं के नाम
डॉक्टरों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि डॉक्टर मरीजों की पर्ची पर बड़े अक्षरों में दवाओं का नाम नहीं लिख रहे हैं। साथ ही तमाम आदेशों के बावजूद मरीजों को जेनरिक दवाएं लिखी जा रही हैं। याचिका में भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक, आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम-2002 के नियमों का सख्ती से पालन कराए जाने का अनुरोध किया गया है।
इसे लेकर केंद्र सरकार व एमसीआइ को निर्देश देने की मांग की गई है। अधिवक्ता अमित साहनी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि एमसीआइ ने 2017 में सभी पंजीकृत चिकित्सकों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों लिखने के निर्देश दिए थे। लेकिन, डाक्टरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
इसे लेकर केंद्र सरकार व एमसीआइ को निर्देश देने की मांग की गई है। अधिवक्ता अमित साहनी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि एमसीआइ ने 2017 में सभी पंजीकृत चिकित्सकों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों लिखने के निर्देश दिए थे। लेकिन, डाक्टरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
डॉक्टरांना औषधांची नावे ठळक लिहिण्याचा आदेश द्यावा, हायकोर्टात याचिका दाखल
महाराष्ट्र : डॉक्टरांनी औषधे लिहून देताना अतिशय स्पष्ट अक्षरांत प्रामुख्याने ठळक अक्षरांत (कॅपिटल लेटर्स) द्यावीत, असा आदेश केंद्र सरकार आणि भारतीय वैद्यकीय परिषदेला (एमसीआय) द्यावा, अशी मागणी करणारी सार्वजनिक हिताची याचिका दिल्ली उच्च न्यायालयातकरण्यात आली आहे.
प्रत्येक डॉक्टरने औषधाचे नाव त्याच्या जेनेरिकसह स्पष्ट अक्षरांत प्राधान्याने कॅपिटल लेटर्समध्ये लिहून इंडियन मेडिकल कौन्सिल रेग्युलेशन्स, २००२ चे नियमन १.५ चे कठोरपणे पालन करणे बंधनकारक आहे. व्यवसायाने वकील असलेले अमित साहनी यांनी दाखल केलेल्या या याचिकेत युक्तिवाद केला की, २०१७ मध्ये एमसीआयने सगळ्या नोंदणीकृत डॉक्टरांना
त्यांनी औधषांची नावे जेनेरिक लिहावीत, असे आदेश दिले होते; परंतु डॉक्टरांनी हा आदेश गांभीर्याने घेतलेला नाही.
प्रत्येक डॉक्टरने औषधाचे नाव त्याच्या जेनेरिकसह स्पष्ट अक्षरांत प्राधान्याने कॅपिटल लेटर्समध्ये लिहून इंडियन मेडिकल कौन्सिल रेग्युलेशन्स, २००२ चे नियमन १.५ चे कठोरपणे पालन करणे बंधनकारक आहे. व्यवसायाने वकील असलेले अमित साहनी यांनी दाखल केलेल्या या याचिकेत युक्तिवाद केला की, २०१७ मध्ये एमसीआयने सगळ्या नोंदणीकृत डॉक्टरांना
त्यांनी औधषांची नावे जेनेरिक लिहावीत, असे आदेश दिले होते; परंतु डॉक्टरांनी हा आदेश गांभीर्याने घेतलेला नाही.
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कैदियों की रिहाई के लिए सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की बैठक हर तीन महीने में करे दिल्ली सरकार : हाईकोर्ट - News India Live | DailyHunt
नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वो कैदियों को समय से पहले रिहा करने पर फैसला करनेवाले सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) की बैठक हर तीन महीने में करे। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश जारी किया। याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिका में सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की गई थी। साहनी ने ये याचिका तब दायर की थी जब उन्होंने 23 नवम्बर 2018 को तिहाड़ जेल में सिकंदर नाम के कैदी की मौत की खबर के बारे में पढ़ी। सिकंदर 28 साल जेल में काट चुका था और वो रिहा होने का इंतजार कर रहा था। याचिका में कहा गया था कि कुछ मामलों में एसआरबी वैसे कैदियों की रिहाई की सिफारिश करती है जो एसआरबी के 16 जुलाई 2018 के आदेश के मुताबिक नहीं होते हैं। कई बार एसआरबी के सदस्य पुलिस रिपोर्ट पर मनमाने तरीके से फैसला करते हैं।
कैदियों की रिहाई के लिए सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की बैठक हर तीन महीने में करे दिल्ली सरकार : हाईकोर्ट - हिंदी समाचार: HS News
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की थी. याचिका में सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने दिल्ली सरकार को 26 नवम्बर 2018 को इस बाबत बताया भी था. उन्होंने दिल्ली सरकार को कई सुझाव दिए थे जिसमें ये सुनिश्चित करने को कहा गया था कि उम्रकैद की सजा पाया व्यक्ति 25 सालों से ज्यादा जेल में नहीं रहे.
उन्होंने सुझाव दिया था समय से पहले रिहा होनेवाले कैदियों को एक नंबर अलॉट करना चाहिए जिसमें कैदी के नाम के पहले और अंतिम शब्द को छिपाना होगा. इससे कैदी के बारे में फैसला करते वक्त उसकी जाति या धर्म आड़े नहीं आएगी.
उन्होंने सुझाव दिया था समय से पहले रिहा होनेवाले कैदियों को एक नंबर अलॉट करना चाहिए जिसमें कैदी के नाम के पहले और अंतिम शब्द को छिपाना होगा. इससे कैदी के बारे में फैसला करते वक्त उसकी जाति या धर्म आड़े नहीं आएगी.
सजायाफ्ता कैदी ने एसआरबी के फैसले पर उठाए सवाल
जस्टिस नजमी वजीरी की बेंच ने 33 वर्षीय कैदी जितेंद्र कुमार सिंह की याचिका पर आप सरकार को नोटिस जारी किया। सिंह को जेल में बंद हुए 17 साल (छूट के साथ) से ज्यादा वक्त बीत चुका है। उसकी ओर से एडवोकेट अमित साहनी ने कोर्ट के सामने आरोप लगाया कि उम्रकैद की सजा वाले कैदियों की सजा में छूट के मुद्दे पर विचार के लिए बना सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) निष्पक्षता से अपना काम नहीं कर रहा है। साहनी ने दलील दी कि ऐसे कैदियों को समय से पहले छोड़े जाने के आवेदन को ठुकराते हुए एसआरबी की ओर से स्पीकिंग ऑर्डर तक जारी नहीं हो रहे। उन्होंने आगे दलील की एक गरीब दोषी की जिंदगी और आजादी के मुद्दे पर फैसला लेते हुए एसआरबी स्पीकिंग ऑर्डर तक पास नहीं कर रहा है, जबकि उनमें से कुछ कैदी 14 साल से ज्यादा तो कुछ 20 से 25 सालों से बंद हैं। उन्होंने दलील दी कि एसआरबी ऐसे कैदियों दोषियों के भविष्य का फैसला लेते हुए अपने सामने रखे गए एजेंडा, सिनॉप्सिस और अन्य चीजों पर गौर करता है और उस पर विचार करने के बाद अपनी सिफारिशें सक्षम प्राधिकार के पास भेजता है, जो अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए उन पर फैसला लेता है। आरोप है कि यहां इस प्रक्रिया का पालन ही नहीं हो रहा। एसआरबी की सिर्फ सिफारिशों को ही एलजी तक पहुंचाया जा रहा है, उन तथ्यों को नहीं जिनके आधार पर वो राय कायम की गई।
MANNUAL SCAVENGING
कैसे तमाम दावों के बावजूद दिल्ली जल बोर्ड बदइंतजामी की मिसाल बनता दिख रहा है
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष हैं और इसकी कार्यप्रणाली चुस्त-दुरुस्त करने को लेकर वे बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं देश की राजधानी दिल्ली में हाल के सालों में बार-बार सीवरों की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मचारियों और मज़दूरों की मौत हुई है. इस सिलसिले में ताज़ा घटना बीते पखवाड़े पश्चिमी दिल्ली के केशोपुर बस डिपो के पास हुई. यहां दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) की एक सीवर पाइपलाइन की मरम्मत के दौरान तीन मज़दूर हादसे का शिकार हो गए. घटना की वजह नई नहीं थी.
एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका दायर की है। ‘सरकारी मौज’ और लापरवाही के अलावा दिल्ली जल बोर्ड भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है. राजधानी की जनसंख्या जैसे साल-दर-साल बढ़ रही है, उसी तरह यहां पानी की किल्लत भी बढ़ती जा रही है. हालांकि बीते सालों में दिल्ली के कई इलाकों में पानी की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन की व्यवस्था शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी भी कई इलाकों में पीने के पानी के लिए लंबी लाइनें लगती हैं, जिनमें अक्सर लोगों के बीच झगड़े होते हैं. टैंकर माफ़िया के लिए यह आदर्श स्थिति है. वे सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अभी भी पानी बेच रहे हैं.
एडवोकेट अमित साहनी ने याचिका दायर की है। ‘सरकारी मौज’ और लापरवाही के अलावा दिल्ली जल बोर्ड भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है. राजधानी की जनसंख्या जैसे साल-दर-साल बढ़ रही है, उसी तरह यहां पानी की किल्लत भी बढ़ती जा रही है. हालांकि बीते सालों में दिल्ली के कई इलाकों में पानी की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन की व्यवस्था शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी भी कई इलाकों में पीने के पानी के लिए लंबी लाइनें लगती हैं, जिनमें अक्सर लोगों के बीच झगड़े होते हैं. टैंकर माफ़िया के लिए यह आदर्श स्थिति है. वे सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अभी भी पानी बेच रहे हैं.
मैनुअल स्कैवेंजिंग: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव जारी रहना दुर्भाग्यपूर्ण
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता और जस्टिस एम. आर. शाह व जस्टिस बी. आर. गवई की सदस्यता वाली बेंच ने यह टिप्पणी एडवोकेट अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। दरअल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से 2018 के अपने एक फैसले को वापस लेने की मांग की है, जिसमें एससी/एसटी अधिनियम के तहत दायर एक शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी के कठोर प्रावधानों और आरोपियों के लिए कोई अग्रिम जमानत नहीं दी थी। बेंच ने केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि यहां सीवर सफाईकर्मी हर रोज मर रहे हैं और उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा रही है। इसके बावजूद संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, जो सफाईकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने में लापरवाही बरतते है। बेंच ने सरकार से पूछा, 'मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए आपने क्या किया है? किसी भी अन्य देश में लोग बिना सुरक्षात्मक यंत्र के मैनहोल में प्रवेश नहीं करते हैं। आपने इसके बारे में क्या किया है?'
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि यहां सीवर सफाईकर्मी हर रोज मर रहे हैं और उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा रही है। इसके बावजूद संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, जो सफाईकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने में लापरवाही बरतते है। बेंच ने सरकार से पूछा, 'मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए आपने क्या किया है? किसी भी अन्य देश में लोग बिना सुरक्षात्मक यंत्र के मैनहोल में प्रवेश नहीं करते हैं। आपने इसके बारे में क्या किया है?'
सीवर में मौतों पर हाईकोर्ट ने सरकार व एजेंसियों से मांगा जवाब
न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार, स्थानीय निकायों, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली छावनी परिषद, लोक निर्माण विभाग व सरकारी एजेंसियों को फटकार लगाते हुए कहा कि दो सप्ताह में हलफनामा पेश कर बताएं कि मानवीकृत रूप से मैला साफ करने को रोकने वाले कानून प्रोहिबिशेन ऑफ मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड देयर रिहेबीलिटेशन को लागू करने के लिए कदम उठाए गए हैं और अब तक सीवर व टैंक साफ करने के लिए सफाई कर्मियों को क्यों भाड़े पर लिया जाता है।
खंडपीठ ने कहा कि मानवीकृत तरीके से सीवर की सफाई होने से लोग मर रहे हैं और संबंधित विभाग व अधिकारी संबंधित कानून को लागू नहीं कर रहे हैं। अगर मौतें हो रही हैं तो किसी को तो जेल जाना होगा। सरकार चुनाव के प्रचार का मोटा पैसा करती है उसे कुछ पैसा इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने पर भी करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने यह नाराजगी मानवीकृत तरीके से मैला साफ करने वालों के पुनर्वास के लिए एडवोकेट अमित साहनी की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।
खंडपीठ ने कहा कि मानवीकृत तरीके से सीवर की सफाई होने से लोग मर रहे हैं और संबंधित विभाग व अधिकारी संबंधित कानून को लागू नहीं कर रहे हैं। अगर मौतें हो रही हैं तो किसी को तो जेल जाना होगा। सरकार चुनाव के प्रचार का मोटा पैसा करती है उसे कुछ पैसा इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने पर भी करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने यह नाराजगी मानवीकृत तरीके से मैला साफ करने वालों के पुनर्वास के लिए एडवोकेट अमित साहनी की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।
सीवर में मौतों पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
दिल्ली जल बोर्ड के साथ राजधानी में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है. मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि बोर्ड ख़ुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अधीन है जो पानी और सीवर की सफ़ाई के मुद्दे पर अभूतपूर्व काम करने का दावा करते हैं. उनकी सरकार ने ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध एवं उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के तहत अगस्त, 2017 में दिल्ली में हाथ से सीवरों की सफ़ाई यानी मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस क़ानून का एक अहम प्रावधान यह है कि सीवरों की सफ़ाई (या मरम्मत) के लिए मज़दूरों को बिना सुरक्षा उपकरण के नीचे न भेजा जाए.
INTEREST ON ROAD ACCIDENT RELIEF FUND
सड़क हादसे मुआवजे के ब्याज पर कर के प्रावधान के विरूद्ध अदालत में याचिका दायर की गयी
दिल्ली उच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर कर आयकर कानून के उस प्रावधान को खारिज करने की मांग की गयी है जो सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति के मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर कर लगाने को अनिवार्य करता है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भमभानी की पीठ के सामने यह याचिका पेश की गयी। इस याचिका पर मंगलवार को उपयुक्त पीठ के समक्ष सुनवाई होने की संभावना है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत करयोग्य नहीं है अतएव मोटर दुर्घटना दावे के तहत ब्याज करयोग्य नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा, ‘‘लेकिन बीमा कंपनियां मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत...... टीडीएस काट लेती हैं।’’ याचिका में कहा गया है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत स्थापित एमएसीटी के फैसले में मुआवजा पीड़ित की संभावित आय के नुकसान की भरपाई का विकल्प होता है और ज्यादातर मामलों में यह उसकी आय का गुणक होता है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजे का उद्देश्य हादसे के फलस्वरूप हुए दुख-दर्द के असर को कम करना है ताकि घायल या आश्रित को पीडि़त की आय बंद हो जाने की वजह से जीवन की दुश्वारियों का सामना न करना पड़े।
मुआवजे में मिलने वाली रकम पर लगने वाले टैक्स को खत्म करने का निर्णय ले केंद्र : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को सड़क हादसे में पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे के ब्याज पर आयकर लगाए जाने के प्रावधान को खत्म करने के बारे में बारे में उचित निर्णय लेने का आदेश दिया है।
जस्टिस एस. मुरालीधर और आईएस मेहता की पीठ ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को 30 जून तक याचिका को पूरक प्रतिवेदन मानते हुए समुचित निर्णय लेने को कहा है। इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2018 में सरकार को प्रतिवेदन देकर इस प्रावधान को खत्म करने की मांग की थी। पीठ ने मंत्रालय और सीबीडीटी को निर्णय लेने से पहले याचिकाकर्ता व पेशे से अधिवक्ता अमित साहनी का पक्ष सुनने और विस्तृत आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
जस्टिस एस. मुरालीधर और आईएस मेहता की पीठ ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को 30 जून तक याचिका को पूरक प्रतिवेदन मानते हुए समुचित निर्णय लेने को कहा है। इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2018 में सरकार को प्रतिवेदन देकर इस प्रावधान को खत्म करने की मांग की थी। पीठ ने मंत्रालय और सीबीडीटी को निर्णय लेने से पहले याचिकाकर्ता व पेशे से अधिवक्ता अमित साहनी का पक्ष सुनने और विस्तृत आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
सड़क हादसे में मुआवजे पर टैक्स खत्म करने की मांग
हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर आयकर कानून के उस प्रावधान को खारिज करने की मांग की गयी है जो सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति के मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगाने को जरूरी बनाता है।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भमभानी की बेंच ने इस याचिका पर मंगलवार को सही बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेज दिया है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत टैक्स लगाने के लायक नहीं है इसीलिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम के तहत ब्याज कर लगाने लायक नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा कि लेकिन बीमा कंपनियां मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए जे भमभानी की बेंच ने इस याचिका पर मंगलवार को सही बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेज दिया है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा आयकर कानून के तहत टैक्स लगाने के लायक नहीं है इसीलिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम के तहत ब्याज कर लगाने लायक नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने कहा कि लेकिन बीमा कंपनियां मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल (एमएसीटी)द्वारा अपने फैसले में सुनायी गयी मुआवजा राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं।
मुआवजे में मिलने वाली रकम पर लगने वाले टैक्स को खत्म करने का निर्णय ले केंद्र : हाईकोर्ट
अधिवक्ता अमित साहनी ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि सड़क हादसा के पीड़ितों को मिलने वाला मुआवजा आयकर कानून के तहत कर योग्य नहीं है। ऐसे में मोटर दुर्घटना दावे के तहत ब्याज को भी कर मुक्त किया जाना चाहिए। अधिवक्ता साहनी ने याचिका में दावा किया कि बीमा कंपनियां मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा अपने फैसले में सुनाई गई मुआवजे की राशि पर बने ब्याज पर आयकर अधिनियम -1961 के तहत टीडीएस काट लेती हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि मोटर वाहन अधिनियम- 1988 के तहत दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के फैसले में मुआवजा पीड़ित की संभावित आय के नुकसान की भरपाई का विकल्प होता है और ज्यादातर मामलों में यह उसकी आय का गुणक होता है।
अदालत ने केन्द्र से दुर्घटना मुआवजे के ब्याज पर कर लगाने के खिलाफ याचिका का जवाब देने को कहा
India News: नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) का जवाब मांगा जिसमें सड़क दुर्घटना के पीड़ित को मिले मुआवजे की राशि से प्राप्त ब्याज पर कर कटौती के प्रावधान को खत्म करने की मांग की गई है। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ ने प्राधिकारों से इस याचिका पर अपने जवाब देने को कहा और इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए छह नवंबर की तारीख तय की। अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने सीबीडीटी के 26 जून के उस आदेश को निरस्त करने की मांग की जिसमें यह कहा गया था कि मोटर दुर्घटना दावा निपटारा न्यायाधिकरण द्वारा मंजूर मुआवजे पर मिले ब्याज पर आयकर उचित एवं तर्कसंगत है।
मुआवजा राशि के ब्याज पर कर के खिलाफ याचिका पर केंद्र, सीबीडीटी करे फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सड़क दुर्घटना के पीड़ित को मुआवजा राशि पर मिलने वाले ब्याज पर कर कटौती के मुद्दे को लेकर केंद्र और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को फैसला करने का मंगलवार को निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका को अधिकारियों द्वारा पूरक अभिवेदन के तौर पर देखा जाये। याचिका में आयकर कानून के उस प्रावधान को रद्द करने की मांग की गयी है, जो मुआवजा राशि पर ब्याज संबंधी कर कटौती को अनिवार्य बनाता है। अदालत ने वित्त मंत्रालय और सीबीडीटी को पूरक अभिवेदन और दिसंबर 2018 में याचिकाकर्ता द्वारा दिये गये अभिवेदन पर 30 जून तक फैसला करने तथा इस संबंध में विस्तृत आदेश देने को कहा। अदालत ने अधिकारियों को कहा कि जरूरत पड़ने पर वे याचिकाकर्ता के वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी का भी पक्ष जानें और लिये गये फैसले के बारे में उन्हें सूचित करें। अदालत का यह आदेश सीबीडीटी की ओर से पेश हुए वकील की दलील के बाद आया। सीबीडीटी के वकील ने अपनी दलील में कहा था कि याचिकाकर्ता का इससे पहले का अभिवेदन अधिकारियों के समक्ष लंबित है। याचिका में कहा गया है कि आयकर कानून के तहत मुआवजे की रसीद कर योग्य आय में नहीं आती, इसलिए मोटर दुर्घटना दावा के तहत मिलने वाली ब्याज की राशि कर योग्य नहीं होनी चाहिए।
PRISONERS RIGHT
कैदियों के अधिकार से जुड़ी PIL पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
कैदियों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ी हुई जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से पूछा कि दिल्ली प्रीजन एक्ट के तहत नियमों का पालन कैदियों के अधिकारों के लिए क्यों नहीं हो पा रहा है. एक्ट के मुताबिक दिल्ली की हर जेल में अब तक लॉ ऑफिसर की भर्ती क्यों नहीं हो पाई है. दिल्ली प्रीजन एक्ट के सेक्शन 6 के हिसाब से दिल्ली की हर जेल में कैदियों के लिए ऑफिसर होना जरूरी है. फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही डायरेक्टर जनरल को नोटिस जारी कर चुका है. पेशे से वकील अमित साहनी की तरफ से लगाई गई इस याचिका में बताया गया है कि 2016 से 2019 के बीच में कैदियों के संवैधानिक हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी लॉ ऑफिसर नियुक्त नहीं किया गया था.
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब
April 23, 2019 नई दिल्ली (उत्तम हिन्दू न्यूज): दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की। अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है। साहनी ने कहा कि कानून अधिकारियों को छोड़कर, सभी नियुक्तियों का पालन किया जा रहा है। तीन कारागारा परिसरों -तिहाड़, रोहिणी और मंडोली- के अंतर्गत 16 जेल हैं। तिहाड़ में नौ जेल हैं। रोहिणी में एक और मंडोली कारागार परिसर में छह जेल हैं। साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की। अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है। साहनी ने कहा कि कानून अधिकारियों को छोड़कर, सभी नियुक्तियों का पालन किया जा रहा है। तीन कारागारा परिसरों -तिहाड़, रोहिणी और मंडोली- के अंतर्गत 16 जेल हैं। तिहाड़ में नौ जेल हैं। रोहिणी में एक और मंडोली कारागार परिसर में छह जेल हैं। साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब - आईएएनएस न्यूज़
नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है।साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
मौजूदा समय में, एक विधि अधिकारी दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों को देख रहा है।
अधिनियम के तहत सभी जेलों में एक विधि अधिकारी, एक अधीक्षक, एक उपाधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी और एक कल्याण अधिकारी होना अनिवार्य है।साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे।
मौजूदा समय में, एक विधि अधिकारी दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों को देख रहा है।
दिल्ली की सभी 16 जेलों के कानूनी मामलों की जिम्मेदारी सिर्फ एक लॉ ऑफिसर पर, HC ने मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है. अमित साहनी की याचिका में कहा गया है कि जेल मुख्यालयों में अगस्त 2016 से फरवरी 2019 तक कोई विधि अधिकारी नहीं रहा है और कानूनी मामलों को उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी देखते थे
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब - Samacharnama | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
विधि अधिकारी की नियुक्ति के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मांगा जवाब
याचिका में राष्ट्रीय राजधानी में एक निश्चित समय सीमा के भीतर राज्य की सभी 16 जेलों में से प्रत्येक में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने का आदेश देने की मांग की गई है.
यह याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है. उनका आरोप है कि दिल्ली कारागार अधिनियम, 2000 में स्पष्ट कहा गया है कि प्रत्येक कारागार में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी जबकि वर्तमान में राज्य की सभी 16 जेलों के लिए एक ही विधि अधिकारी नियुक्त किया गया है.
यह याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की है. उनका आरोप है कि दिल्ली कारागार अधिनियम, 2000 में स्पष्ट कहा गया है कि प्रत्येक कारागार में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी जबकि वर्तमान में राज्य की सभी 16 जेलों के लिए एक ही विधि अधिकारी नियुक्त किया गया है.
दिल्ली हाई कोर्ट का सुझाव- 16 जेलों में कॉन्ट्रैक्ट पर रखें लॉ ऑफिसर
नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए स्थायी अधिवक्ता (आपराधिक) राहुल मेहरा ने पीठ से कहा कि कारागार के महानिदेशक से सलाह-मशविरा किया गया है और विधि अधिकारियों को नियुक्त करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू होगी। उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि राज्य में 16 जेलें हैं जिनमें से तिहाड़ परिसर में नौ, रोहिणी जेल परिसर में एक और मंडोली जेल परिसर में छह जेलें हैं।यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए स्थायी अधिवक्ता (आपराधिक) राहुल मेहरा ने पीठ से कहा कि कारागार के महानिदेशक से सलाह-मशविरा किया गया है और विधि अधिकारियों को नियुक्त करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू होगी। उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि राज्य में 16 जेलें हैं जिनमें से तिहाड़ परिसर में नौ, रोहिणी जेल परिसर में एक और मंडोली जेल परिसर में छह जेलें हैं।यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब
नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
उच्च न्यायालय ने सभी जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति का दिया सुझाव, सरकार ने जवाब के लिए माँगा वक़्त
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी की सभी 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में ‘अच्छा’ मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा। वकील ने कहा कि दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के जरिए विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में वक्त लग सकता है। इसलिए अन्य विकल्पों पर भी गौर किया जा रहा है। संक्षिप्त सुनवाई के बाद, आप सरकार ने जनहित याचिका पर जवाब दायर करने के लिए वक्त मांगा। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर तक स्थगित कर दी। यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है।
दिल्ली की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर जवाब तलब - RTINews | DailyHunt
नई दिल्ली, 23 अप्रैल | दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में विधि अधिकारियों की नियुक्ति की मांग को लेकर एक याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशकों से जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 29 अगस्त को तय कर दी।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
अदालत वकील अमित साहनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। साहनी ने अपनी याचिका में दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 की धारा 6 का पालन सुनिश्चित करते हुए दिल्ली की सभी जेलों में एक विधि अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की।
जेलों में क्यों नहीं हुई लॉ ऑफिसर की नियुक्ति, HC ने मांगा जवाब
जस्टिस ए. के. चावला ने दिल्ली सरकार के गृह विभाग और जेल अधिकारियों को इस मुद्दे पर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी। यह याचिका एडवोकेट अमित साहनी ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि अधिकारियों ने हाई कोर्ट के 27 सितंबर 2019 के निर्देश का जानबूझकर पालन नहीं किया। कोर्ट ने 12 हफ्ते के भीतर हर जेल में विधिक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने सितंबर का वह आदेश साहनी की ही जनहित याचिका पर दिया था। याचिका के मुताबिक दिल्ली में 16 जेल हैं, लेकिन अगस्त 2016 से ही इन सभी जेलों के लिए केवल एक लॉ ऑफिसर है।
16 जेलों में कॉन्ट्रैक्ट पर रखें लॉ ऑफिसर: दिल्ली हाई कोर्ट
नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में से हरेक में एक विधि अधिकारी नियुक्त करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका में अच्छा मुद्दा उठाया गया है और दिल्ली सरकार को मामले को देखने को कहा।
यह याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि दिल्ली कारागार अधिनियम 2000 में हर जेल में एक विधि अधिकारी का होना अनिवार्य है। बावजूद इसके फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी की 16 जेलों में एक केवल एक विधि अधिकारी है जो तिहाड़ जेल में कारागार मुख्यालय में बैठता है।
कैदियों के अधिकार से जुड़ी PIL पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने हर जेल में एक सुपरिटेंडेंट डिप्टी सुपरिटेंडेंट एक मेडिकल ऑफिसर लॉ ऑफिसर कैदी कल्याण ऑफिसर और इसी तरह के और ऑफिसर्स की नियुक्ति को सरकार ने जरूरी बताया है. फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही डायरेक्टर जनरल को नोटिस जारी कर चुका है. पेशे से वकील अमित साहनी की तरफ से लगाई गई इस याचिका में बताया गया है कि 2016 से 2019 के बीच में कैदियों के संवैधानिक हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी लॉ ऑफिसर नियुक्त नहीं किया गया था.
PERIPHERIAL EXPRESS WAY
पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर मूलभूत सुविधाएं देने का आदेश
प्रमुख संवाददाता, नई दिल्ली
\Bदिल्ली हाई\B कोर्ट ने एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर जल्द से जल्द शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस और इमरजेंसी समेत सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। दो साल पहले यह एक्सप्रेसवे चालू हुआ था। हर दिन यहां से हजारों गाड़ियां गुजरती हैं और टोल का भुगतान करती हैं। याचिका में कहा गया, हालांकि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेसवे पर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं।
\Bदिल्ली हाई\B कोर्ट ने एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर जल्द से जल्द शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस और इमरजेंसी समेत सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। दो साल पहले यह एक्सप्रेसवे चालू हुआ था। हर दिन यहां से हजारों गाड़ियां गुजरती हैं और टोल का भुगतान करती हैं। याचिका में कहा गया, हालांकि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेसवे पर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हाईकोर्ट ने केएमपी-केजीपी एक्सप्रेस वे पर बुनियादी सुविधाएं देने के मुद्दे पर सरकार से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।
याची ने इन दोनों पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सेवा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश सरकार को देने की मांग की गई है। दिल्ली से जुडने वाली अन्य हाइवे पर सरकार ने यह सुविधा प्रदान कर रखी है।
याची ने इन दोनों पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सेवा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश सरकार को देने की मांग की गई है। दिल्ली से जुडने वाली अन्य हाइवे पर सरकार ने यह सुविधा प्रदान कर रखी है।
HC ने पूर्वी और पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेसवे पर बुनियादी सुविधाओं के लिए याचिका पर NHAI का जवाब मांगा | Housing News
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल, 2019 को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (HSIIDC) से शौचालय सहित बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की याचिका पर जवाब मांगा। , पूर्वी और पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर, पेट्रोल पंप, एम्बुलेंस और आपातकालीन सुविधाएं। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने याचिका पर एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी को नोटिस जारी किया, और सूचीबद्ध किया।26 अगस्त, 2019 को आगे की सुनवाई के लिए मामला।अदालत अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेसवे या कुंडली पर कोई ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है –
राजमार्गों पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाब किया तलब
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है. जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए.
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब - आईएएनएस न्यूज़
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से राजामार्गो पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन और बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की मांग वाली एक याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा।जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि हजारों वाहन रोजाना वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से गुजरते हैं, लेकिन टोल का भुगतान करने के बावजूद उन्हें कोई भी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि हजारों वाहन रोजाना वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से गुजरते हैं, लेकिन टोल का भुगतान करने के बावजूद उन्हें कोई भी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
ईस्टर्न-वेस्टर्न पेरिफेरल-वे पर नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं'
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस व आपात सुविधाएं सुनिश्चित कराने की मांग को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) और हरियाणा औद्योगिक एवं आधारभूत संरचना निगम (एचएसआइआइडीसी) से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने एनएचआइए व एचएसआइआइडीसी को नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।
अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि दो साल पहले शुरू किए गए वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे व कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे पर रोज हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन अब तक वहां पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस जैसी आपात सुविधाएं नहीं हैं।
अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने याचिका में कहा कि दो साल पहले शुरू किए गए वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे व कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे पर रोज हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन अब तक वहां पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस जैसी आपात सुविधाएं नहीं हैं।
पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर मूलभूत सुविधाएं देने का आदेश
चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने कहा कि अगर ये सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध कराई जा रही हैं तो इनका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए। इसके लिए एनएचएआई और एचएसआईआईडीसी (हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड) इन सुविधाओं का बेहतर रखरखाव करें। कोर्ट का यह आदेश कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के साथ-साथ कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेसवे पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एंबुलेंस, आपात सुविधाएं, ढाबे-रेस्त्रां और पुलिस की गश्त जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग वाली एक याचिका का निपटारा करते समय आया। यह याचिका वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की ओर से दायर की गई थी। उनका कहना था कि वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे या कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
[DELHI-NCR] - हाईकोर्ट ने केएमपी-केजीपी एक्सप्रेस वे पर बुनियादी सुविधाएं देने के मुद्दे पर सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने पूर्वी व पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे पर शौचालय, पेट्रोल पंप, एंबुलेंस व दूसरी आपात बुनियादी सुविधाओं की मांग करने वाली याचिका पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) व हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कोरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।.
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख तय की है। पेश याचिका में कहा गया है कि पूर्वी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, गाजियाबाद, पलवल-केजीपी) का उद्घाटन पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में किया था। यहां पर कुछ बुनियादी सुविधाएं दी गई है लेकिन दो साल पहले शुरु हुए पश्चिमी पेरीफेरल एक्सप्रेस वे (कुंडली, मानेसर, पलवल-केएमपी) पर इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस एक्सप्रेस वे पर रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं।.
ईस्टर्न, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराये एनएचएआई, एचएसआईआईडीसी : अदालत
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि अगर ये सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध करायी जा रही हैं तो इनके प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एचएसआईआईडीसी)उनका रखरखाव करे। अदालत का यह आदेश कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के साथ-साथ कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेसवे पर पेट्रोल पंप, शौचालय परिसर, एंबुलेंस, आपात सुविधाएं, ढाबे-रेस्त्रां और पुलिस की गश्त जैसी सुविधाओं की उपलब्धता की मांग करने वाली एक याचिका का निस्तारण करते समय आया। पीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादियों (प्राधिकरणों) को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने अन्य लंबित कार्यों की प्राथमिकता और व्यावहारिक रूप से कोष की उपलब्धता को देखते हुए बताये गये एक्सप्रेसवे पर रिट याचिका में जिक्र की गयी सुविधाओं की उपलब्धता जल्द से जल्द सुनिश्चित करें।’’
राजमार्गो पर बुनियादी सुविधाओं को लेकर एनएचएआई से जवाब तलब - Samacharnama | DailyHunt
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से राजामार्गो पर पेट्रोल पंप, शौचालय, एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन और बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की मांग वाली एक याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने हरियाणा राज्य औद्योगिक और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एचएसआईआईडीसी) से भी याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।
जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की है, जिन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे की सुविधाओं को अभिन्न रूप से नियोजित और विकसित किया जाना चाहिए और ऐसे राजमार्गों पर टोल संग्रह शुरू किए जाने से पहले सभी भावी परियोजनाएं संचालित हो जानी चाहिए।